पुरुषार्थ
>> Thursday, January 13, 2011
एक राही को बहुत भूख लग रही थी। उसने सामने आम्र-वृक्ष देखा तो आम खाने के लिए पत्थर मारकर उसे तोड़ने लगा। उसने जितनी बार पत्थर मारा उतनी बार फल गिरा।
उसको ऐसा करते देख वृक्ष ने कहा-'तुम जितनी बार पत्थर मारोगे उतनी बार उपहार में फल दूंगा। यह तो मेरा व्रत है। पत्थर का उत्तर पत्थर से देना मुझे नहीं आता है। भले ही मुझे घायल होना पड़े।'
पथिक उसकी बात सुनकर कुढ़ गया और बोला-'तुम इतने आम लादे यूं खड़े हो और मैं यूं भूखा रहूं। यह तुम्हारा और तुम्हारे ईश्वर का कैसा न्याय है?'
आम्र-वृक्ष हंसकर बोला-'इतनी ईर्ष्या क्यों करते हो! तुम्हें पता है कि मैंने पतझड़ के कष्टों को कैसे झेला है, देखते तो पता चलता, ये फल कितने धैर्य और तपश्चर्या से प्राप्त हुए हैं। तुम भी मेरे सदृश पुरुषार्थ करके देखो। तब तुम्हें पता चलेगा कि कैसे एक पुरुषार्थी अपनी सफलता का पथ स्वयं कैसे प्रशस्त करता है।'
उन्नति प्रतीक्षा करने से नहीं आती है, प्रयास या पुरुषार्थ करने से आती है। जो भी जीवन में सफल हुआ है, अपने पुरुषार्थ के बल पर हुआ है। पुरुषार्थी सदैव सफल होते हैं, किसी विरले का पुरुषार्थ ही निष्फल होता है।
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