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भवन और लालकिताब -पं.ज्ञानेश्वर (भाग-1)

>> Saturday, May 29, 2010


    लाल किताब कुण्डली के बारह भावों में बारह राशियों को स्थापित करके लग्न को पूर्व दिशा का मध्य एवं सप्तम भाव को पश्चिम दिशा का मध्य माना गया है। चतुर्थ भाव को उत्तर दिशा एवं दशम भाव को दक्षिण दिशा माना गया है। 
    सूर्य को विष्णु माना गया है और वे पालनकर्त्ता होने के कारण सबकी सहायता करते हैं। सूर्य पूर्व में उदय होता है और पश्चिम में अस्त होता है। पश्चिम में सूर्य को अस्त नीच तुला राशि में माना जाता है क्योंकि तुला राशि वायु तत्त्व प्रधान है। 
     दूसरी राशि वृष का सम्बन्ध चन्द्रमा से है और चन्द्र यहां उच्च का होता है। तृतीय भाव में मिथुन एवं चौथे भाव में कर्क राशि  में गुरु उच्च का माना जाता है। गुरु का सीधा सम्बन्ध धन से होता है। यदि मनुष्य विवेकी नहीं होगा तो वह धन की वृद्धि नहीं करेगा। मनुष्य को व्यापारिक बातें उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिएं।
चन्द्र जल तत्त्व से संबंधित है और दूसरा घर मन्दिर का है और आठवां घर श्मशान का जो अग्नितत्त्व से संबंधित है। चन्द्रमा आठवें भाव में नीच का फल देगा। यहां शिव का साम्राज्य है। एक ओर मन्दिर है तो दूसरी ओर श्मशान। आठवें भाव में यमराज का आधिपत्य है जोकि शनि का छोटा भाई है। पंचम भाव में अग्नि तत्त्व राशि सिंह और यहां ब्रह्मा का स्थान है, छठे भाव में कन्या राशि बुध यानि बुद्धि का स्थान है और यह स्थान गायत्री का है। कुम्भ राशि में कोयला, शत्रु का सामान रखने को कहा गया है।  दक्षिण में मंगल को मकर राशि में उच्च कहा गया है। शनि अन्तःकरण है, छाया पुत्र है और स्त्री कारक है। इसी कारण शनि को पश्चिम में उच्च का माना गया है और शुक्र को मीन राशि में उच्च का माना गया है। माता लक्ष्मी को मीन राशि कहा गया है जोकि शुक्र का उच्च स्थान है। 
द्वादश भाव से किसका भवन देखें?
     कुण्डली के पहले भाव से अपने बनाए भवन की स्थिति, दूसरे भाव से ससुराल के भवन की स्थिति, तीसरे भाव से भाईयों के भवन की स्थिति, चौथे भाव से माता के वंश के भवन की स्थिति, पांचवे भाव से सन्तान द्वारा बनाए भवन की स्थिति, छठे भाव से चाचा-चाची, मौसी के भवन की स्थिति, सातवें भाव से पुत्री के संबंधियों के भवन की स्थिति, आठवें भाव से श्मशान के भवन की स्थिति, नौवें भाव से पैतृक भवन की स्थिति, दसवें भाव से भागीदार के भवन की स्थिति, एकादश भाव से स्वयं द्वारा खरीदे भवन की स्थिति एवं द्वादश भाव से पड़ोसी के भवन की स्थिति का भान किया जा सकता है। अतः कुण्डली से भवन का विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए और उसी के अनुसार निर्णय लेना चाहिए।
कुण्डली, द्वादश और भवन की स्थिति
     लालकिताब कुण्डली के द्वादश भाव से भवन की स्थिति का भान करती है। द्वादश भाव क्या कहते हैं, देखें-
पहला भाव प्रकाश की शक्ति, दूसरा भाव खुली हवा, तीसरा भाव, अग्नि की स्थिति, चौथा भाव जल की स्थिति, पांचवा भाव सूर्य की स्थिति, छठा भाव शोरगुल, सातवां भाव हरियाली, आसपास एवं मिट्टी, आठवां भाव शत्रु एवं दुःख की स्थिति, नौवां भाव जातक के पैतृक भवन की और उसके अपने स्वास्थ्य की स्थिति, दसवां भाव आय, गृहस्थी, सुख-दुःख, प्रसन्नता, ग्यारहवां भाव सभी को अपने दायरे में लाने के लिए एवं बारहवां भाव आकाश व उसके रंग की स्थिति बताता है।
      पहले से आठवें भाव तक के गह जातक के भवन के दाएं भाग की स्थिति बताते हैं। द्वादश से नवम भाव तक के भाव जातक के  भवन के बाएं भाग की स्थिति बताते हैं।
भाग्य स्थान का ग्रह जिस भाव में मिले उसी भाव से संबंधित भवन से कुण्डली के समस्त ग्रहों का रख-रखाव ज्ञात होगा।
     जिस ग्रह का भवन ज्ञात होगा उसी का निर्णय मान्य होगा क्योंकि उसका ही अधिकार चलता है।
भवन के कोने के दिए गए ग्रह अपने-अपने भवन में अपना-अपना प्रभाव दिखलाते हैं जैसे कि वे जातक की कुण्डली में स्थित हैं। सभी नवग्रह के भवन एवं उसके लक्षण होते हैं। 
     सूर्य का भवन सूर्य के प्रकाश के मार्ग को बतलाता है, भवन का द्वार पूर्व की ओर होगा, आंगन भवन के मध्य में होगा, आग का संबंध आंगन से होगा, आंगन में भवन से बाहर निकलते हुए पानी का संबंध दायीं ओर होगा।
चन्द्र धन का स्वामी है और वह सूर्य से चलता है। चन्द्र के भवन में भवन की चारदीवारी के साथ नल या नलकूप होगा। भवन के पास चलता हुआ पानी या पानी का स्थान चौबीस कदम के मध्य होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुदरती पानी आसपास अवश्य होगा। बनावटी नल चन्द्र नहीं मान जाएगा। बहता हुआ कुदरती जल ही चन्द्र है। 
    अगले भाग में अन्य ग्रहों के भवन की चर्चा करेंगे जिससे आप अपनी कुण्डली द्वारा लालकिताब के वास्तु नियमों को समझकर लाभ उठा सकें। जो बता रहे हैं उसे ध्यान से समझ लें तभी आप आगे का ज्ञान प्राप्त कर लाभ उठा सकेंगे।(क्रमशः) 

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