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भवन और लालकिताब -पं.ज्ञानेश्वर (भाग-2)

>> Sunday, May 30, 2010


    लाल किताब के द्वारा पूर्व अंक में भवन की चर्चा प्रारम्भ करी थी। अब उसे आगे बढ़ाते हुए अन्य ग्रह के भवनों के लक्षण बताएंगे। सूर्य एवं चन्द्र के भवन की चर्चा पूर्व अंक में कर चुके हैं। लेकिन यहां पुनः बता रहे हैं जिससे नए पाठकों को भी ज्ञात हो जाए।
    सूर्य का भवन सूर्य के प्रकाश के मार्ग को बतलाता है, भवन का द्वार पूर्व की ओर होगा, आंगन भवन के मध्य में होगा, आग का संबंध आंगन से होगा, आंगन में भवन से बाहर निकलते हुए पानी का संबंध दायीं ओर होगा।
चन्द्र धन का स्वामी है और वह सूर्य से चलता है। चन्द्र के भवन में भवन की चारदीवारी के साथ नल या नलकूप होगा। भवन के पास चलता हुआ पानी या पानी का स्थान चौबीस कदम के मध्य होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुदरती पानी आसपास अवश्य होगा। बनावटी नल चन्द्र नहीं मान जाएगा। बहता हुआ कुदरती जल ही चन्द्र है। 
    मंगल शुभ का भवन गुरु, चन्द्र व सूर्य के साथ चलता है। भवन का द्वार उत्तर या दक्षिण की ओर होगा, इसमें कच्चे व पक्के होने की कोई शर्त नहीं है। स्त्री-पुरुषों, पशुओं के आने-जाने की बरकत देगा। अशुभ मंगल का भवन का द्वार दक्षिण में होगा। भवन के साथ या भवन के ऊपर वृक्ष की छाया होगी। अग्नि, हलवाई की दुकान और भट्टी का साथ होगा। भवन में या भवन के साथ श्मशान, कब्रिस्तान होगा, काने पुरुष या निःस्तान का साथ होगा। भाग्य अच्छा होगा तो उसमें रहने का अवसर नहीं मिलेगा।
बुध का भवन के चारों ओर से खाली या खुला होगा। अकेला ही होगा, चौड़े पत्तों के वृक्ष का साथ होगा अब चाहे ये वृक्ष अन्त में, दाएं या बाएं हो पर मध्य में नहीं होंगे। यदि वृक्ष मध्य में होगा तो यह भवन बुध की शत्रुता का पूर्ण प्रमाण देगा।
    गुरु का भवन का वायु के मार्गों से सम्बन्ध होगा, भवन का सेहन किसी एक कोने में होगा चाहे प्रारम्भ में, चाहे अन्त में, चाहे दाएं या बाएं लेकिन मध्य में नहीं होगा। भवन का द्वार उत्तर या दक्षिण में नहीं होगा। यह हो सकता है कि भवन के साथ या भवन के अन्दर पीपल का वृक्ष या कोई धर्मस्थान हो।
शुक्र का भवन सूर्य के विपरीत होगा। ड्योढ़ी का शहतीर उत्तर-दक्षिण में होगा। भवन में कच्चा भाग अवश्य होगा। द्वार भी उत्तर दक्षिण में होंगे। उसका प्रमाण कली, चूने का हिस्सा व पलस्तर से होगा। पीपल का वृक्ष गुरु, बरगद गुरु-चन्द्र, शहतूत या लसड़ा बुध होता है।
    शनि के भवन में चारदीवारी से संबंधित होगा। यह ग्रह सूर्य के विपरीत चलता है। भवन का बड़ा द्वार पश्चिम की ओर होगा। अन्दर के द्वार किसी भी ग्रह में नहीं माने गए हैं। भवन की अन्तिम कोठरी भवन में घुसते समय दायीं ओर होगी। यदि उसमें प्रकाश की व्यवस्था न हो तो शनि का फल शुभ होगा। जब भी थोड़ी रोशनी या प्रकाश आएगा तब से शनि व सूर्य के झगड़े के कारण बरबादी प्रारम्भ होने लगेगी। भवन में पत्थर गढ़ा होगा, पहली दहलीज पुरानी लकड़ी या सीशम, कीकर, बेरी, पलाई आदि की होगी। छत पर भी पुरानी लकड़ी का साथ आम होगा। हो सकता है इस भवन में स्तम्भ या मीनार हो।
    राहु का भवन में अन्दर जाते समय दाएं हाथ में छिपा हुआ गढ़ा होगा। भवन में बालिगो से सम्बन्धित रोग होंगे या झगड़े होंगे। बड़े द्वार की दहलीज के नीचे से पानी बाहर निकलता होगा। भवन के सामने का पड़ोसी सन्तानहीन होगा या उस भवन में कोई नहीं रहता होगा। भवन की छतें बार-बार बदली गई होंगी। लेकिन दीवारें नहीं बदली गई होंगी। भवन के साथ भड़भूजे की भट्टी हो सकती है। गन्दा पानी जमा करने का गड्ढा व कच्चा धुंआ का साथ हो सकता है।
    केतु के भवन में खिड़कियां व द्वार होंगे। बुरी हवा अचानक  आएगी, धोखे कोने का भवन होगा, तीन ओर से खुला और उसका साथी भवन की तीन दिशाएं खुली होंगी। इस भवन में नर सन्तानें तीन से अधिक नहीं होंगी अर्थात्‌ एक लड़का हो तो तीन पोते, तीन  लड़के हों तो एक पोता होगा। भवन के दो तरफ मार्ग होगा, साथ में कोई भवन खण्डहर या टूटा हुआ या खाली मैदान बरबाद सा होगा जिसमें कुत्ते आते-जाते रहेंगे।
प्रत्येक ग्रह के भवन के लक्षणों से आप उसे पहचान सकते हैं जिससे आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि भवन किस ग्रह से संबंधित है।
    प्रत्येक ग्रह की वस्तुएं होती हैं जो भवन के उस भाग में होती हैं, जैसे-गुरु-हवाई मार्ग, द्वार या गुरु का सामान, सूर्य-प्रकाश, धूप, राज दरबार से संबंधित वस्तुएं, चन्द्र-की जानदार या बेजान वस्तुएं, शुक्र-कच्ची दीवार या गाय या दूसरी शुक्र की वस्तुएं, मंगल-खाने व पीने की वस्तुएं, बुध-बुध की जानदार या बेजान वस्तुएं या खाली स्थान, शनि-लकड़ियों का स्थान या शनि का सामान चाहे जानदार हो या बेजान, राहु-भवन की नाली या गन्दा पानी होगा या धुएं की जगह होगी, केतु-रोशनदान होंगे या सबसे कम संख्या जिस कमरे में हो वहीं केतु होगा।(क्रमशः)

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