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भवन और लालकिताब- पं. ज्ञानेश्‍वर (भाग-5)

>> Friday, June 4, 2010


लाल किताब के पूर्व चार लेखों में भवन की चर्चा प्रारम्भ करी थी। अब उसे आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि मुख्य द्वार और उसका फल क्या होगा? आईए इसकी चर्चा करें-
पूर्व में मुख्य द्वार हो तो उत्तम फल मिलता है, घर में सुजन आते हैं और सुख बढ़ता है। यह द्वार सर्वश्रेष्ठ होता है।
पश्चिम में द्वार दूसरे स्थान पर आता है। इसे श्रेष्ठ कह सकते हैं। यह घर भी भौतिक सुखकारी होता है।
उत्तर दिशा में द्वार हो तो उत्तम रहता है। लम्बी यात्रा होती है, सुकार्य होते हैं, परलोक सुधरता है, पूजा पाठ में मन लगता है।
दक्षिण दिशा में द्वार अशुभ होता है। यह स्त्री के लिए कष्टकारी, कुंआरों, विधवाओं एवं विधुरों के अफसोस की जगह है।   यह शुभफलदायी नहीं है। इसका उपाय यही है कि वर्ष में एक बार बकरी का दान करें। बुध की वस्तुएं शाम को दान करें ताकि शारीरिक कष्ट एवं धनहानि से बचाव हो सके।
भवन सम्बन्धी इन बातों का ध्यान रखें!
भवन बनाते समय यहां दी गई बातों का ध्यान रखने से सुफल होते हैं-
 भवन के पास पीपल का पेड़ नहीं होना चाहिए। यदि है तो उसकी जड़ों में प्रतिदिन जल अवश्य देना चाहिए। पीपल की छाया भवन पर कदापि नहीं पड़नी चाहिए। अन्यथा उसकी छाया जहां तक जाएगी वहां तक बरबादी आएगी। यह परेशानी एवं तबाही का कारण बनेगी। भवन के पास के कुंए में श्रद्धा भाव से दूध डाला जाए तो शुभफल अन्यथा अशुभफल एवं तबाही होगी। बबूल या कीकर के पेड़ में सूर्योदय से पूर्व 43 दिन तक जल चढ़ाने से बचाव होगा।
भवन में मंदिर बना लें या मूर्ति स्थापित हो जाए तो जातक की सन्तान मनोनुकूल विकसित नहीं होगी। जातक सन्तान हीन होगा या वंश वृद्धि रुक जाएगी। घर के पूजा स्थल में चित्र या फोटो रख सकते हैं बस मूर्ति स्थापित नहीं करनी है।
यदि घर में बिल्कुल भी कच्चा भाग न हो तो समझ लें कि मनोनुकूल गृहस्थ सुख, स्त्रियों का मान-सम्मान एवं धन सुरक्षित नहीं रहेगा। कच्चा भाग अवश्य रखें। यदि नहीं रख पा रहे हैं तो  शुक्र की वस्तुएं अवश्य घर पर रखें ऐसा करने से भौतिक सुख व साधन सुलभ होते हैं तथा स्त्रियों का मान व सम्मान, सेहत एवं धन सुरक्षित रहता है।
दक्षिण द्वार स्त्रिायों एवं पुरुषों दोनों के लिए अशुभ होता है। यह केवल अविवाहित स्त्राी व पुरुषों के लिए ठीक रह सकता है। यदि आपका मुख्य द्वार दक्षिण में है तो उसे वहां से हटाकर किसी अन्य दिशा में कर लें क्योंकि दक्षिण द्वार से शुभ फल कम ही होते हैं।
भवन में जेवरात व नकदी के लिए छिपे गड्ढे न बनाएं  वरना आपकी कही बात का किसी पर कोई असर नहीं होगा। बनाएं तो उसमें रखें अवश्य वरना उसमें बादाम और छुआरे डालकर मिट्टी से भर दें।
भवन के पिछले दाएं भाग में कोई अंधेरी कोठरी हो और उसमें हवा के प्रवेश का कोई मार्ग न हो तो ऐसी कोठरी का दीपक द्वार पर रखकर रोशनी करें तो वंश बरबाद हो जाएगा, उन्नति के मार्ग बन्द हो जाएंगे, यदि ऐसी कोठरी पर छत बदलनी पर पड़े तो पहले पहली छत पर नई छत बनाएं फिर पुरानी छत गिरा दें।
भवन निर्माण में भवन के चारों ओर खुली जगह रखना आवश्यक है। पूर्व दिशा में अधिक खुला स्थान एवं पूर्व की अपेक्षा पश्चिम में कम खुला भाग रखना चाहिए। इसी प्रकार उत्तर में अधिक खुली जगह और इसके विपरीत दख्ज्ञिण में कम खुला स्थान होना चाहिए।
यदि भवन दो मंजिला है तो पूर्व एवं उत्तर में भवन की ऊंचाई कम रखनी चाहिए।
भवन में खुली छत या ओपन टू स्काई अवश्य होना चाएिह जोकि पूर्व एवं उत्तर में ही होना चाहिए।
उत्तर एवं पूर्व में द्वार एवं खिड़कियां अधिक होने चाहिएं तथा द्वार एवं खिड़कियों की संख्या सम होनी चाहिए।
पश्चिम व दक्षिण में खिड़कियां छोटी-छोटी एवं कम होनी चाहिएं।
दक्षिण एवं पश्चिम की मोटी दीवारें होनी चाहिएं।
मुख्य द्वार एवं अन्य द्वार में एक के ऊपर एक नहीं रखना चाहिए। यदिरखना पड़े तो ऊपरी द्वार की ऊंचाई कम कर लें। द्वार की संख्या सम ही रखनी चाहिए।
भवन की चहारदीवारी दक्षिण एवं पश्चिम में ऊंची एवं मोटी बनाएं जबकि इसके विपरीत उत्तर एवं पूर्व में नीची एवं पतली बनाएं।
भवन में उत्तर-पूर्व में नौकरों के रहने का स्थान कदापि नहीं बनाना चाहिए। मेहमानों का कक्ष उत्तर-पश्चिम में बनाना चाहिए।
बुजुर्गों का शयनकक्ष पश्चिम या दक्षिण में रखें। कन्याओं का वायव्य में रखें और छोटों का पूर्व या उत्तर में रखना चाहिए।

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