यह ब्‍लॉग आपके लिए है।

स्‍वागत् है!

आपका इस ब्‍लॉग पर स्‍वागत है! यह ब्‍लॉग ज्‍योतिष, वास्‍तु एवं गूढ वि़द्याओं को समर्पित है। इसमें आपकी रुचि है तो यह आपका अपना ब्‍लॉग है। ज्ञानवर्धन के साथ साथ टिप्‍पणी देना न भूलें, यही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है। आपके विचारों एवं सुझावों का स्‍वागत है।

उदर रोग और ज्योतिष -पं. योगानन्द

>> Saturday, June 5, 2010


कहते हैं कि सभी रोग पेट से उत्पन्न होते हैं। जब तक पाचन शक्ति अच्छी रहती है जातक स्वस्थ रहता है।  अच्छी पाचनशक्ति अच्छे स्वास्थ्य की परिचायक है।  कहते हैं कि रोग वात, पित्त एवं कफ की कमी या अधिकता से होते हैं। उदर विकार का ज्योतिष से विचार करने के लिए कुछ चर्चा करेंगे जिनसे आप समझ जाएंगे कि कैसे कुंडली से जाने कि जातक उदर विकार से पीड़ित होगा।
उदर विकार कैसे होता है?
चन्द एवं गुरु यकृत के कारक माने जाते हैं। यकृत से उत्पन्न पित्त से ही भोजन का पाचन होता है। यदि चन्द्र व गुरु शुभ होकर निर्बल हों तो पित्त की कमी के कारण भोजन का पाचन सही नहीं होगा।
यदि दोनों ग्रह अशुभ होकर बली हों तो पित्त की अधिकता के कारण पाचन तन्त्र विकृत हो जाएगा। 
उक्त दोनों स्थितियों में उदर विकार होने की संभावना बढ़ जाती है। 
यदि जातक की कुण्डली में गुरु व चन्द्र बली हों एवं शुभ हों तो जातक को शुभफल की प्राप्ति होती है और पाचन शक्ति ठीक रहती है। 
उदर विकार के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
लग्नेश, षष्ठेश व बुध की युति हो तो पित्त जनित रोग से उदर विकार होता है। 
लग्नेश, षष्ठेश व शनि एकत्रा हों तो जातक गैस व्याधि से पीड़ित होता है। 
लग्नेश, षष्ठेश, बुध व शनि का परस्पर कोई संबंध बने तो पित्त के बढ़ने एवं गैस से पीड़ा होती है। अक्सर जातक अम्लता के रोग से पीड़ित होता है। 
मंगल लग्न में हो व षष्ठेश निर्बल हो तो अजीर्ण और लग्न में पापग्रह व शनि हो तो कुक्षि पीड़ा से जातक परेशान रहता है। 
लग्न में पापग्रह राहु हो या केतु हो तो इनकी दृष्टि पंचम भाव पर होगी और अष्टम भाव में स्थित शनि की दृष्टि भी पंचम पर होगी और ऐसे में गुरु भी पीड़ित हो तो जातक एपेंण्डिसाइटिस रोग से ग्रस्त होता है। 
सप्तम में राहु या केतु का होना या लग्न में चन्द्र व अष्टम में शनि का होना भी उदर रोग कारक है। 
यदि पंचम भाव में शुभ ग्रह बली होकर स्थित हों व पंचमेश व पंचम भाव बील हो तो जातक को उदर विकार नहीं होता है। 
लग्नेश शत्रु राशि में हो या नीच का हो एवं मंगल चौथे भाव में हो व शनि से दृष्ट हो तो जातक उदर शूल से परेशान होता है। 
सूर्य व चन्द्र छठे भाव में हों तो वायु विकार से पाण्डु रोग और इनके साथ मंगल की युति हो तो जातक को उदर शूल होता है।
लग्न में राहु व बुध एवं सप्तम में शनि-मंगल की युति हो या लग्नेश त्रिक भाव में हो तो जातक अतिसार रोग से पीड़ित होता है। 
सप्तम भाव में शुक्र पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक संग्रहणी रोग से पीड़ित होता है। 
द्वितीय भाव में शनि या राहु हो या काककांश कुंडली में पंचम भाव में केतु हो तो भी जातक को संग्रहणी रोग होता है। 
लग्नेश व बुध या गुरु की युति त्रिक भाव(6, 8 या 12) में हो या लग्नेश व गुरु त्रिक भाव में हों तो जातक अतिसार रोग से पीड़ित होता है।
लग्नेश व बुध या गुरु की युति त्रिक भाव में हो या पंचम भाव में नीच का बुध हो या गुरु स्थित हो तो जातक पित्त का रोगी होता है। 
छठे या बारहवें भाव में शनि व मंगल हों या सिह राशि में चन्द्र पापग्रह से पड़ित हो या लाभेश तृतीय भाव में हो या केन्द्र त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक शूल रोग से ग्रस्त होता है। 
   षष्ठेश चन्द्र पापग्रह से युत हो या पंचम भाव में शनि व चंद्र हो या लग्नेश व सप्तमेश चन्द्र पर पापग्रहों की दृष्टि हो या सूर्य व मंगल के मध्य चन्द्र हो व सूर्य मकर राशि में हो तो जातक प्लीहा रोग से ग्रस्त होता है। कुंडली से उदर रोग का विचार कर जातक को सचेत कर सकते हैं।

0 comments:

आगुन्‍तक

  © Blogger templates Palm by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP