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आपकी कुण्डली और योग(भाग-5)-पं. यायावर

>> Wednesday, June 23, 2010


   एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। पूर्व चार भागों में 51 योगों की चर्चा कर चुके हैं! आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
52. हंस महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि बृहस्पति अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।

फल-इस योग में उत्पन्न जातक का चेहरा लालिमायुक्त, ऊंची नाक, शुभ चरण, हंस सदृश स्वर, कफ प्रकृति, गौर वर्ण, सुकुमार पत्नी, कामदेव सदृश सुन्दर, सुखी, शास्त्रों का अध्ययन करने वाला, निपुण, गुणी, उत्तम कार्य और आचार वाला होता है और उसकी आयु 84 वर्ष की होती है। यहां योगकारक ग्रह गुरु है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार बृहस्पति स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो हंस योग बनता है। लेकिन भद्र योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु गुरु की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में गुरु स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो भद्र योग बनता है उसके अनुसार जातक महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।   
53. मालव्य महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि शुक्र अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक स्त्री सदृश चेष्टा(हाथ मटकाना, मटक कर चलना, लज्जा करना आदि), शरीर के जोड़ मृदु और सुन्दर, आकर्षक नेत्र, सुन्दर शरीर, गुणी, तेजस्वी, स्त्री, पुत्र वाहन से युक्त, धनी, विद्वान, उत्साही, प्रभु शक्ति सम्पन्न, चतुर, मन्त्राज्ञ, त्यागी, परस्त्री रत होता है और यहां योगकारक ग्रह शुक्र है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो मालव्य योग बनता है। लेकिन हंस महापुरुष योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु शुक्र की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो हंस योग बनता है उसके अनुसार महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।   
54. शश महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि शनि अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।

फल-इस योग में उत्पन्न जातक राजा या राजा सदृश, वन और पर्वतों से प्रेम करने वाला, बहुतों पर राज करने वाला, क्रूर बुद्धि से युक्त, धातु के व्यापार में कुशल, वाद-विवाद संग विनोद करने वाला, दानी, क्रोध युक्त दृष्टि वाला, तेजस्वी, निज माता का भक्त, शूर, श्याम वर्ण, सुखी, परस्त्रीगामी, और 70 वर्ष तक जीता है। यहां योगकारक ग्रह शनि है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो शश योग बनता है। लेकिन शश महापुरुष योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु शनि की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो शश योग बनता है उसके अनुसार महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।  
55. चन्द्राधि योग-चन्द्रमा से छठे, सातवें तथा आठवें भाव में शुभग्रह हों तो चन्द्राधि योग होता है। यहां योग कारक ग्रह छठे भाव में बुध, गुरु, शुक्र। सातवें भाव में बुध, गुरु, शुक्र, आठवें भाव में बुध, गुरु, शुक्र।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक ग्रहों के बलानुसार राजा, मन्त्री या सेनापति होता है अथवा राजा सदृश सुख का भोक्ता होता है। जीवन सुख संग व्यतीत करता है।

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