भवन और लालकिताब-पं. ज्ञानेश्वर (भाग-4)
>> Wednesday, June 2, 2010
लाल किताब के द्वारा लेखों में भवन की चर्चा प्रारम्भ करी थी। अब उसे आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि कुण्डली के अनुसार पहले भाव से नौवें भाव तक के ग्रह भवन में प्रवेश करते समय दाएं भाग पर एवं दसवें से बारहवें भाव के ग्रह प्रवेश करते समय भवन के बाएं भाग पर अपना प्रभाव दिखाते हैं। सातवां भाव भवन सुख एवं दूसरा भाव भवन की हालत(स्थिति) बताता है।
पुष्य नक्षत्र में भवन निर्माण प्रारम्भ करके इसी नक्षत्र में पूर्ण किया जाए तो ऐसा भवन अति उत्तम होता है। जब भवन पूर्ण हो जाए तो वास्तु पूजा भी अवश्य करानी चाहिए।
भवन के कोने और उसका प्रभाव
भवन बनाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भूखण्ड एवं भवन के कोने अर्थात् कोण कितने हैं।
चार कोण (900) वाला भवन सर्वोत्तम है।
आठ कोण वाला भवन रोग या मृत्यु संबंधी यानि मातमी शोक देने वाला है।
अठारह कोण वाला भवन सोना, चांदी, धन आदि सम्पत्ति को नष्ट करने वाला है।
तीन या तेरह कोण वाला भवन भाईयों व बहिनों को परेशानी, कष्ट, बाधाएं, मृत्यु, आग, फांसी देने वाला होता है।
पांच कोण वाला भवन सन्तान को कष्ट, बरबादी एवं अवनति देता है।
मछली के पेट सदृश मध्य में उठा भवन कुटुम्ब घटाने वाला होता है। ऐसे भवन में रहने वाला निसन्तान एवं अकेला होता है। भवन में अंग भंग युक्त व्यक्ति भी रहता है।
उजड़े एवं खण्डहर भवन अर्थात् शव सदृश भवन में विवाह हो तो कई मौत हों, स्त्री विधवा हो।
भवन का क्षेत्रफल
भवन बनाते समय कोण पर विचार करने के बाद दीवारों का क्षेत्रफल और नींव छोड़कर प्रत्येक भाव या कमरे का अन्तः क्षेत्रफल पर विचार करने के साथ-साथ भूस्वामी के हाथों का क्षेत्रफल भी विचारा जाना चाहिए। भवन के स्वामी को अपने हाथों की नाप के अनुसार पैमाना मानना चाहिए। अब चाहे उसका हाथ कितने भी इंच का हो। मध्यमा तक की नाप उत्तम है। अब चाहे यह नाप 17 से 20 इंच तक कुछ भी हो। बाजू के सिरे की हड्डी या कोहनी के प्रारम्भ से अनामिका या मध्यमा अंगुली तक की नाप उत्तम है।
क्षेत्रफल का विचार करते समय लम्बाई में चौड़ाई जोड़कर तीन से गुणा करके और फिर उसमें से 1 घटाकर आठ से भाग देने पर जो शेष बचे उसके अनुसार शुभाशुभ फल विचारना चाहिए। इसका सूत्र इस प्रकार बनता है-क्षेत्रफल शुभाशुभ विचार सूत्र-लम्बाई और चौड़ाई को जोड़कर तीन से गुणा करें और गुणनफल में से एक घटाकर आठ से भाग दीजिए जो शेष बचे उससे शुभाशुभ विचारना चाहिए।
मान लो किसी भवन के कक्ष या भूखण्ड की लम्बाई 16हाथ और चौड़ाई 8 हाथ है तो सूत्रानुसार लम्बाई व चौड़ाई का जोड़ 24 आया उसमें 3 का गुणा किया तो 72 आया इसमें से एक घटाया तो 71 बचा इसमें 8 का भाग दिया तो यहां भागफल 8 एवं शेष 7 आया। अतः भवन शुभ है।
यदि 1, 3, 5, 7 बचे तो भवन या कक्ष शुभ है और यदि 2, 4, 6, 8 बचे तो भवन या कक्ष अशुभ है। शेष का विस्तृत फल इस प्रकार समझना चाहिए-
1 शेष बचे तो पहले भाव में सूर्य व गुरु होंगे अर्थात यह भवन सर्वोत्तम होगा। भवनों में राजमहल सदृश होगा।
2 शेष बचे तो गुरु व शुक्र छठे भाव में होगा। यह अशुभ है। ऐसे में छठे भाव के केतु का उपाय करना चाहिए। छठे भाव के शुक्र या गुरु का उपाय करना चाहिए। वरना जातक निर्धन हो जाएगा और कूकर सदृश जीवन हो जाएगा।
3 शेष बचे तो मंगल व गुरु तीसरे भाव में होंगे। यह स्थिति शुभ है। यह पुरुषों के लिए या व्यापार के लिए शुभ एवं स्त्री व बच्चों के लिए अशुभ है। किन्तु निसन्तान दम्पत्ति के लिए शुभ है। यदि बच्चे साथ रखने हैं तो गुरु के पीले पुष्पों को स्थापि करके ही रहें। यदि स्त्री बच्चों से अलग सोएगी तो अशुभ फल नहीं होगा। संतान युक्त दम्पत्ति के लिए शुभ नहीं है।
4 शेष बचे तो शनि व चन्द्र चौथे भाव में हो तो गधे सदृश दिन-रात परिश्रम के उपरान्त भी रोटी मिलना कठिन हो। चन्द्र व शनि के चौथे भाव का उपाय करें।
5 शेष बचे तो सूर्य व गुरु पांचवे भाव में हो तो गाय के समान स्त्री, बच्चे व सभी लोग सुखी हों और समस्त सुख पाएंगे।
6 शेष बचे तो सूर्य व शनि छठे भाव में हो तो न माता, पिता और सन्तान को सुख, न मित्रा का साथ, जातक मारा-मारा फिरे। छठे भाव के सूर्य व शनि का उपाय करना चाहिए।
7 शेष बचे तो चन्द्र व शुक्र सातवें भाव में हाथी सदृश उत्तम हो।
यदि 8 या 0 शेष बचे तो मंगल व शनि आठवें भाव में हो तो भवन चीता सदृश मृत्यु का मुख्यालय हो। आठवें भाव के मंगल व शनि का उपाय करें।
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