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आपकी कुण्डली और योग(भाग-3)-पं.सत्यज्ञ

>> Saturday, June 12, 2010



एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। पूर्व दो भागों में 26योगों की चर्चा कर चुके हैं। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
27. शक्ति योग-यह आकृति योग है। सप्तम से चार भावों में दशम तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक निर्धन, विफलताओं से दुःखी, नीच, आलसी, दीर्घायु, युद्ध में निपुण, स्थिर तथा खूबसूरत होता है।
28. दण्ड योग-यह आकृति योग है। दशम से पहले भाव तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक पुत्रा व स्त्राी से विहीन, निर्धन, निर्दयी, आत्मीयजनों से बहिष्कृत, दुःखी, नीच तथा दास वृत्ति वाला होता है।
29. नौका योग-यह आकृति योग है। पहले भाव से लगातार सात भाव में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जलीय जीवों या पदार्थों से जीविका चलाने वाला, बहुत महत्वकांक्षा रखने वाला, यशस्वी, दुष्ट, कंजूस, मलिन हृदय वाला एवं लालची होता है। 
30. कूट योग-यह आकृति योग है। चतुर्थ भाव से निरन्तर सात राशियों में सभी ग्रह रहने से यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक असत्य बोलने वाला, जेलर, ठग, क्रूर, अकिंचन, पहाड़ व किलों में रहने वाला होता है।
31. छत्र योग-यह आकृति योग है। सप्तम भाव से लगातार सात भाव में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक स्वजनों का भरण-पोषण करने वाला, दयालु, राजगण प्रिय, उत्कृष्ट बुद्धि से युक्त, प्रारम्भ एवं वृद्धावस्था में सुखी रहने वाला व दीर्घायु होता है। 
32. चाप योग-यह आकृति योग है। दशम से लगातार सात भावों में सूर्यादि सात ग्रह रहने पर यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक झूठ बोलने वाला, कारागार का स्वामी, चोर, धूर्त, जंगल में घूमने वाला, भाग्यहीन, मध्यावस्था में सुखी रहता है। 
33-40. अर्धचन्द्र योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से भिन्न आठ भावों में सातों ग्रह हों तो आठ प्रकार का अर्धचन्द्र योग होता है-                         
दूसरे से अष्टम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो प्रथम अर्धचन्द्र योग होता है।
पंचम से एकादश भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो द्वितीय अर्धचन्द्र योग होता है। 
अष्टम से द्वितीय भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो तृतीय अर्धचन्द्र योग होता है। 
एकादश से पंचम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो चतुर्थ अर्धचन्द्र योग होता है। 
तृतीय से नवम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो पंचम अर्धचन्द्र योग होता है। 
षष्ठ से द्वादश भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो षष्ठ अर्धचन्द्र योग होता है। 
नवम से तृतीय भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो सप्तम अर्धचन्द्र योग होता है। 
द्वादश से षष्ठ भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो अष्टम अर्धचन्द्र योग होता है।    
फल-इन आठ में से किसी एक योग में उत्पन्न जातक सेनापति, सुन्दर तन वाला, राजवल्लभ,बली मणि, स्वर्ण तथा भूषणों से युक्त होता है। 
41. चक्र(चन्द्र) योग-यह आकृति योग है। लग्न से 1,3,5,7,9,11 इन छह भावों में सभी ग्रह हों तो चक्र योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक नतममस्तक राजगण के मुकुट रत्नों की कान्ति से उज्ज्वल चरण वाला चक्रवर्ती राजा होता है।
42. समुद्र योग-यह आकृति योग है। द्वितीय भाव से 2,4,6,8,10,12 इन छह भावों में सभी ग्रह हो तो समुद्र योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक रत्नों से परिपूर्ण, धनी, भोगी, जनप्रिय, पुत्रवान्‌, स्थिर, विभव वाला एवं साधु स्वभाव का होता है।
43. गोल योग-यह संख्या योग है। जब सभी ग्रह एक ही भाव में हों तो गोल योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक बली, निर्धन, विद्या व विज्ञान से रहित, मलिन हृदय वाला, सतत्‌ दुःखी होता है।
44. युग्म योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब दो भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक पाखण्डी, धनहीन, समाज से बहिष्कृत, माता, पुत्र, धर्म से रहित होता है।
अन्य योगों की चर्चा अगले अंक में करेंगे। जिससे ज्योतिष योगों का ज्ञान आपका बढ़ सके।(क्रमशः)

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