बुध-आदित्य योग-ईश्वर पुर्सनाणी
>> Sunday, June 13, 2010
ज्योतिष में सैकड़ों शुभाशुभ योग हैं। इनमें से एक योग बुध-आदित्य योग है। जब कुण्डली में सूर्य-बुध की युति कहीं भी हो तो यह योग होता है। यह योग अधिकांश कुंडलियों में पाया जाता है। बुध ही एक ऐसा ग्रह है जिसका प्रभाव सूर्य के साथ क्षीण नहीं होता है। यह अवश्य ध्यान रखें कि बुध 13अंश से कम ने हो।
बुध-आदित्य योग का सामान्य फल इस प्रकार है-जातक बुद्धिमान, प्रत्येक कठिनाईयों, समस्याओं को चतुराई से हल करने में समर्थ होता है। अपने कार्यक्षेत्र में विख्यात होता है। प्रायः सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। फल में राशि व अन्य ग्रह-सम्बन्ध से भी अन्तर आता है। लेकिन प्रायः उक्त फल देखने को मिलता है। इस योग के कारक ग्रह सूर्य व बुध हैं। इसका फल इन ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा में मिलता है।
प्रायः शास्त्रों में यही फल मिलता है। किन्तु अनुभव के आधार पर, इस योग का फल द्वादश भावों में विशिष्ट होता है जोकि इस प्रकार है-
बुध-आदित्य योग प्रथम भाव में हो तो जातक का कद माता-पिता के बीच का होता है। लग्न में वृष, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु या कुम्भ राशि हो तो कद लम्बा होता है। जातक भूरे बाल वाला, कठोर, साहसी, कुशाग्र बुद्धि, आत्मसम्मानी एवं क्षमाशील होता है। स्त्री जातक में चिड़चिड़ापन होता है। बचपन में आंख, कान, नाक व गले के रोग से कष्ट होता है।
बुध-आदित्य योग दूसरे भाव में हो तो जातक की अभिव्यक्ति तार्किक, श्रेष्ठता मनोग्रन्थि का रोगी, इंजीनीयर, घूसखोर एवं ऋण लेकर व्यवसाय करने वाला होता है।
बुध-आदित्य योग तीसरे भाव में हो तो जातक परिश्रमी, भाई-बहिनों में आत्मीयता न रखने वाला, मौसी के लिए कष्टकारी, भाग्योदय के अनेक अवसर खो देता है एवं परिवार की खुशहाली में बाधक होता है। तीसरे भाव में इस योग का फल सामान्य ही होता है।
बुध-आदित्य योग चौथे भाव में हो तो जातक को आशातीत सफलता दिलाता है। माता का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है। पत्नी के भाग्य का सहारा मिलता है। निज सम्पत्ति होते हुए भी दूसरों की या सरकारी भवन व वाहन का उपयोग करने वाला। तार्किक बुद्धि, संस्था प्रधान, इंजीनियर, कुलपति, न्यायाधीश या नेता होता है। चतुर्थ या लग्न भाव पाप प्रभावित हो तो उच्च कोटि का अपराधी भी बन सकता है।
बुध-आदित्य योग पांचवे भाव में हो तो जातक प्रतिभावान, बड़ी बहिन या भाभी से वैचारिक मतभेद होते हैं, चित्त उद्विग्न, वात रोगी, यकृत विकार होता है। मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु या मीन राशि में हो तो अल्प संतति होती है।
बुध-आदित्य योग छठे भाव में हो तो जातक को शत्रु चिन्ता रहती है, लेकिन आत्मविश्वास बना रहता है। बचपन में मामा पक्ष से लाभ। आवश्यकता पड़ने पर सहयोग प्राप्त नहीं होता है।
बुध-आदित्य योग सातवें भाव में हो तो जातक कामुक, यौन रोग से पीड़ित, जीवन साथी की उपेक्षा कर दूसरों के प्रति आकृष्ट होता है। यदि मेष या सिंह राशि में बने तो एकनिष्ठ होता है। अधिकांशतः चिकित्सक व अभिनेताओं की कुंडलियों में यह योग पाया जाता है।
बुध-आदित्य योग आठवें भाव में हो तो यह योग अशुभफलदायक होता है। दूसरों को सहायता व सहयोग देने के चक्कर में स्वयं उलझ जाते हैं। दुर्घटना का भय बना रहता है। किडनी स्टोन, आमाशय में जलन, आंतों में विकृति की संभावना रहती है।
बुध-आदित्य योग नौवें भाव में हो तो जातक स्वाभिमानी, अहंकारी, पैतृक सम्पत्ति का त्याग करने वाला, शिव शक्ति का उपासक एवं स्वअर्जित सम्पत्ति का सुख भोगता है।
बुध-आदित्य योग दसवें भाव में हो तो जातक बुद्धिमान, साहसी, संगीत प्रेमी, धन कमाने में निपुण, धार्मिक स्थानों का निर्माण करने वाला एवं ख्याति प्राप्त करता है।
बुध-आदित्य योग ग्यारहवें भाव में हो तो जातक यशस्वी, ज्ञानी, रूपवान, संगीत प्रेमी और धन-धान्य से सम्पन्न होता है। जातक लोक सेवा में तत्पर रहता है।
बुध-आदित्य योग बारहवें भाव में हो तो बारहवें भाव में अशुभ फल देता है। जुआ, शेयर, सट्टा, अचानक धनलाभ के चक्कर में फंसकर अपना सर्वस्व लुटा बैठता है। चाचा व ताऊ से विरोध तथा अपनी सम्पत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है।
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