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वास्तु सलाह अवश्य लें! - पं. ज्ञानेश्वर

>> Friday, June 25, 2010


    आजकल सम्पत्ति खरीदना या भूखण्ड खरीदना अत्यन्त महंगा हो गया है। भवन खरीदना हंसी खेल नहीं है। बहुतों का जीवन ही निकल जाता है और वे सेवा निवृत्त होने के बाद भी मकान नहीं बना पाते हैं। सारा जीवन बिना अपने मकान के व्यतीत कर देते हैं। उनकी मनोंकांक्षा मन में ही रह जाती है, वे चाहकर भी मकान नहीं बना पाते हैं। कुछ बना लेते हैं लेकिन वे सेवा समाप्त करने के बाद ही जो पैसा मिलता है उससे बनाते हैं। जब भवन इतना कीमती हो तो उसे बनाने से पूर्व वास्तु सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
वास्तु सलाह क्यों लें?
    वास्तु सलाह इसलिए लेनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक यही चाहता है कि वह सुख संग जीवन जिए और उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हों, उसका जीवन बाधा रहित न हो। 
    यह तो आप भी जानते हैं कि सही ढंग से न किया गया कार्य व्यर्थ ही जाता है और उसके लिए किया गया श्रम भी व्यर्थ हो जाता है।
    भवन बनाते समय वास्तु सलाह इस लिए आवश्यक है क्योंकि रोग व बाधाकारी भवन जीवन को नष्ट कर देता है। 
    यदि आपका भवन वास्तु-सम्मत नहीं है तो आप सुखकारी एवं बाधारहित जीवन नहीं जी पाएंगे।
    यह तो सब जानते हैं कि कोई घर इतना भाग्यशाली होता है कि उसमें रहते ही वारे-न्यारे हो जाते हैं और जीवन को एक दिशा मिल जाती है। सारे कार्य चुटकियों में बन जाते हैं। समस्त दिशाओं से लाभ एवं सबका सहयोग मिलता जाता है। सपनों से भी अधिक मिल जाता है। यह सब अच्छे भवन एवं सुभाग्य वश ही होता है।
जब सब काम बनें, काइ रुकावट न आए तो समझ लें कि आपके ग्रह अच्छे चल रहे हैं, ग्रहदशा अच्छी है। आप अच्छे भवन में निवास कर रहे हैं। तभी तो आप चहुंमुखी विकास एवं चारों दिशाओं से लाभ  पाते हैं।  
वास्तु है क्या बला?
    वास्तु कोई बला नहीं है, एक ज्ञान है जो विशिष्ट ज्ञान है। इसमें दिशाओं के अनुकूल भवन में निर्माण होता है जिससे जीवन में सबकुछ सहज होता है और उन्नतशील होता है। 
    आपको इतने महंगे भवन को बनाने से पहले वास्तुविद से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। अब लोग ऐसा करने भी लगे हैं। वे भवन में आने वाली लागत में वास्तु सलाह का बजट भी जोड़ने लगे हैं।
    वास्तु सलाहकार आपको यह बताता है कि दस दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, आकाश, पाताल) से कैसे भरपूर लाभ होगा।
    इसके लिए वह आपके भवन में इस प्रकार निर्माण कराएगा कि वह वास्तु के अनुसार होगा। दिशा के अनुरूप       भवन बनाने से जीवन में सुख, धन, सम्मान एवं सुअवसर आते हैं, बाधाएं आती नहीं है और यदि आ भी जाती हैं तो स्वतः दूर होने का मार्ग निकाल लेती हैं।   
    यह भली-भांति जान लें कि पूर्व एवं उत्तर दिशा हल्की एवं खुली होनी चाहिएं। इस दिशा में जल को स्थान देना चाहिए। देवता को स्थान देना चाहिए। 
    देवता के लिए पूर्व-उत्तर दिशा सर्वोत्तम है, उत्तर एवं पूर्व भी शुभ होती है। ईशान में भवन का देवता वास करता है, इसलिए इस स्थान पर पूजा या देवस्थल अवश्य बनाना चाहिए। इसे खुला और हल्का बनाना चाहिए। इसमें स्टोर या वजन रखने का स्थान कदापि नहीं बनाना चाहिए। इस स्थान को साफ रखना चाहिए। इस स्थान को प्रतिदिन साफ रखने से जीवन उन्नतिशील एवं सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है। 
    किचन दक्षिण या दक्षिण पूर्व में बनानी चाहिए। किचन में सिंक या हाथ धोने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। रात्रि में किचन में झूठे बर्तन नहीं होने चाहिएं। यदि शेष रहते हैं तो एक टोकरे में भरकर किचन से बाहर आग्नेय कोण में रखने चाहिएं। पीने योग्य जल का भंडारण भी ईशान कोण में होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि कभी भी आग्नेय कोण में जल का भंडारण न करें। गैस के स्लैब पर पानी का भंडारण तो कदापि न करें, वरना गृहक्लेश अधिक होगा। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होने लगेंगे। गृहक्लेश अधिक होता है तो किचन में चैक करें अवश्य जल और अग्नि एक साथ होंगे। अथवा ईशान कोण में वजन अधिक होगा या वह अधिक गंदा रहता होगा। गीजर या माइक्रोवेव ओवन आग्नेय कोण के निकट ही होने चाहिएं। इसी प्रकार मिक्सी, आटा चक्की, जूसर आदि भी आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा की ओर रखने चाहिएं। यदि किचन में रेफ्रीजिरेटर भी रख रहे हैं तो उसे सदैव आग्नेय, दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें। ईशान या नैर्ऋत्य कोण में कदापि नहीं रखना चाहिए। यदि रखेंगे तो परिवार में वैचारिक मतभेद अधिक रहेंगे और कोई किसी की सुनेगा नहीं।
     आप वास्तु सम्मत भवन बनाने के लिए वास्तुसलाह अवश्य लें क्योंकि जीवन में जो चाह आपकी है उसमें पूर्णता तभी आएगी जब आप समुचित ढंग से उसके लिए सक्रिय होंगे। वास्तु इस दिशा में सहयोगी का कार्य निभाता है। 

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