मंगली दोष विभिन्न प्रश्न और उनके उत्तर -बाबा ज्ञानदेव तपस्वी
>> Thursday, July 8, 2010
मंगली होना लोग अभिशाप समझने लगे हैं। लोग यह भ्रान्तियां फैला देते हैं कि मंगली दोष तो 28 वर्ष की आयु में समाप्त हो जाता है। अब विवाह कर सकते हैं। मंगली दोष को हौवा समझकर लोग बिना मंगली लड़की या लड़के से विवाह तक नहीं करते हैं।
बहुतों लोग मेरे से तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं जिनमें से कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं-
पंडित जी आप बताएं क्या किसी आयु विशेष में मंगल दोष का प्रभाव कम हो जाता है?
कोई कहता है कि वह मंगली तो है पर उसका दोष कम हो गया है?
मंगल दोष है तो है या नहीं है तो नहीं है तो फिर यह कम या अधिक कैसे होता है।
क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?
कुछ लोग शुक्र से भी मंगल का विचार करते हैं, क्या यह करना चाहिए?
भौम पंचक दोष क्या है?
क्या दूसरे मंगल को भी मंगल दोष माना जाए?
द्विगना या त्रिगुना मंगली दोष क्या होता है?
आपके समस्त प्रश्नों के उत्तर में मेरा यही कहना है-
मंगल 28वें वर्ष में विशेष प्रभावी होता है इसलिए कुछ लोगों ने यह भ्रान्ति फैला दी है कि 28वें वर्ष के बाद मंगल का प्रभाव समाप्त हो जाता है। कुछ कहते हैं कि 28वर्ष के उपरान्त लड़का और लड़की समझदार हो जाते हैं तो मंगल उनका क्या बिगाड़ेगा? यह सब कहना तर्क संगत नहीं है।
मंगल दोष यदि है तो वह होगा और यदि नहीं है तो नहीं होगा। यह बात अलग है कि उस मंगल दोष का कोई परिहार मिल रहा है तो मंगल दोष प्रभावहीन हो जाता है या निरस्त हो जाता है जिससे उसका प्रभाव नहीं पड़ता है।
मंगल दोष की सामन्य परिभाषा यह है कि मंगल लग्न कुण्डली से 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में हो तो जातक मंगली होता है।
यदि मंगल इन्हीं भावों में नीच का होकर बैठा हो तो उसका प्रभाव दो गुना हो जाता है जिस कारण उसे डबल मंगली कह सकते हैं। यदि इन भावों में मंगल के साथ-साथ शनि, राहु, केतु या सूर्य में से कोई एक ग्रह स्थित हो तो भी उसे डबल मंगली कहेंगे।
यदि उक्त भावों में मंगल के अतिरिक्त अन्य ग्रह शनि, राहु, केतु या शनि, राहु, सूर्र्य भी हों तो वह कुंडली त्रिगुना मंगली कहलायेगी।
चन्द्रमा मन है, लग्न शरीर है और शुक्र काम है इसलिए हमारे मतानुसार इन तीनों से ही मंगल का विचार करना चाहिए। एक सुखी गृहस्थ जीवन में शरीर, मन और काम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
दूसरे मंगल हो तो उसे मंगलीक विचार करते समय विचार करना कहां तक उचित है? इसके उत्तर में यह कहना गलत नहीं है कि यदि दूसरे मंगल हो तो व्यक्ति का जीवन अशुभ प्रभावों से प्रभावित होता है। इसलिए इसका विचार मंगलीक विचार करते समय कर लेना चाहिए। दूसरे मंगल किस प्रकार प्रभावित करता है उसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि-
जन्मकुण्डली में दूसरा भाव कुटुम्ब, दाहिनी आंख, धन, वाणी, वाकपटुता एवं मारक स्थान माना गया है। दूसरे भाव में मंगल वाणी दोष और कुटुम्ब में कलह कराता है। नेत्र व धन संबंधी भी अशुभता देता है। दूसरे मंगल की पांचवे, आठवें और नौवें भाव पर होती है। इसलिए ऐसा मंगल सन्तान, आयु एवं भाग्य में बाधाकारी है। मंगलीक विचार में इसका विचार करना आवश्यक नहीं है परन्तु सुखद् गृहस्थ के लिए इस पर भी विचार कर लें तो कोई बाधा भी नहीं है।
जब मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर ग्रह मंगल दोष उत्पन्न करते हैं तो उसे भौम पंचक कहते हैं। मंगल की तरह ही अन्य चार क्रूर ग्रहों का विचार कर लेना भी श्रेयस्कर है।
यह जान लें की सप्तमेश यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थित हो तो भी जातक मंगली जैसे प्रभाव से ही ग्रस्त है। यह योग भी पारिवारिक जीवन में विषमता, कष्ट और तनाव अचानक ला देता है।
पहले भाव का मंगल शरीर, सुख, पति व गुप्तांगों को बिगाड़ता है। रति सुख कम करता है। कुल मिलाकर दाम्पत्य जीवन प्रभावित होता है।
सातवें मंगल पति, पिता, शरीर और कुटुम्ब सुख को प्रभावित करता है। पति या पत्नी के बिना, कुटुम्ब के बिना घर तो घर नहीं बन सकता है, ऐसे में गृहस्थ जीवन कैसे सुखी रह सकेगा।
मंगली मिलान ही कुंडली मिलान नहीं है।
गुण मिलान भी कुंडली मिलान नहीं है।
जब तक नवग्रह और बारह राशि के आधार पर सम्पूर्ण कुंडली परस्पर नहीं मिलायी जाती है तब तक कुंडली मिलान पूर्ण नहीं होता है। कुंडली मिलान का लक्ष्य यह है कि लड़के और लड़की का गृहस्थ जीवन सुखद हो।
कुंडली मिलान सदैव योग्य दैवज्ञ से कराना चाहिए। वरना गलत सलाह या नीम हकीम खतरे जान वाली आपकी स्थिति हो जाएगी।
कुंडली का सम्यक अध्ययन कराना चाहिए।
इसके लिए वर और कन्या की सही कुंडलियां लेकर ही विचार करना चाहिए।
विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो उसका उपाय करें।
आयु घटाने की दृष्टि से गलत या नकली कुंडली बनवाकर आप अपनी सन्तान का भविष्य सुधारने की अपेक्षा उसे बिगाड़ रहे हैं। नकली कुंडलियों को मिलाना स्वयं को धोखा देना है। इससे अच्छा तो यही है कि कुंडली मिलाएं ही नहीं।
कुंडली सदैव सही और उचित ही विद्वान दैवज्ञ से मिलाएं। उसका सम्यक अध्ययन कराएं। गुण मिलान को ही मेलापक समझा लेना उचित नहीं है।
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