लौह भस्म अनुपम औषधि है - डॉ. सत्येन्द्र तोमर
>> Friday, July 9, 2010
लौह भस्म अनुपम औषधि है तभी तो कहा गया है-
आयु प्रदाता बलवीर्य कर्त्ता रोगो पद्धति मदनस्य कर्त्ता। अयः समानं न हि किंचिदस्ति रसायन श्रेष्ठ तम् नराणाम्॥ अर्थात् लौह भस्म आयुवर्द्धक, बल और वीर्य को बढ़ाने वाली, रोगों का नाश करने वाली और कामोत्तेजक गुण वाली है। इस लौह भस्म के समान उत्तम रसायन मनुष्यों के लिए कोई ओर नहीं है।
लौह भस्म के सेवन में परहेज
लौह भस्म या लौह भस्म मिश्रित औषध सेवन काल में तिल का तेल, राई, शराब, खट्टे पदार्थ, ककड़ी, तरबूज, करौंदा, करेला, कड़वा तेल, ज्यादा तापमान में रहना, मैथुन, धूम्रपान, विदाही भोजन, तेज मिर्च मसाले, लहसुन, प्याज प्रकृति विरूद्ध आहार-विहारों का त्याग करना चाहिए।
लौह भस्म का उपयोग
लौह भस्म के सेवन से लाल रक्त कणों की वृद्धि होती है। रक्त की निस्तेजता दूर होती है। लौह भस्म के सेवन से रक्ताल्पता दूर होती है। रक्ताल्पता के लिए लौह भस्म अनुपम औषधि है। पाण्डु रोग अर्थात् पीलिया विशेषतः पित्तज पाण्डु पर लौह भस्म का कार्य उत्तम है। कृमि जन्य पाण्डु रोग में अन्य कृमिदन औषधि जैसे कृमि कुठार रस आदि के साथ लौह भस्म देने पर लाभ होता है। वात वाहनियों, मांसपेशियों या स्नायुओं के संकोच या वात विकार के कारण तीव्र वेदना उत्पन्न होती है इसका शमन करने के लिए बाजीकरण लौह भस्म और सिंगरक से मारण की हुई लौह भस्म उत्तम है। परिणाम से अधिक रक्तस्राव होने से रक्त वाहनियों, मस्तिष्क अथवा अन्य अवयवों में शून्यता आ जाने तथा घबराहट, निर्बलता, चक्कर आदि लक्षण प्रतीत होने पर इसका सेवन उत्तम है। यदि यह रक्त पित्त के कारण हो तो लौह भस्म को रक्तचन्दनादि क्वाथ के साथ दें या लोहासव को सेवन कराएं। पित्त प्रकोप होने पर जिसमें नेत्रा लाल हो जाना, मुंह तथा हाथ-पैरों पर तुरन्त पसीना आ जाना, शरीर लाल हो जाना, थोड़े समय बाद घबराहट होकर शरीर निस्तेज एवं गरम हो जाना सारे शरीर तथा रक्त वाहिनियों में अति वेग से रक्त प्रवाह बढ़ना, हृदय की गति एवं नाड़ी के वेग में वृद्धि हो जाना, मानसिक बेचैनी होना, त्वचा उष्ण हो जाना आदि पित्त प्रकोप के लक्षण होने पर लौह भस्म अति लाभदायक है। पित्ताशय को आवश्यक रक्त न मिलने अथवा पित्त के परिणाम में कमी हो जाने से अपचन, अफारा, बार-बार खट्टी डकारें आना तथा चिकनी कफ-मिश्रित थोड़ी-थोड़ी वमन होना आदि लक्षण होने पर लौह भस्म उत्तम औषधि है। पाचन शक्ति की निर्बलता या सर्वत्रा धातु परिपोषण क्रम की अशक्ति के कारण शरीर में सेन्द्रिय विष का संचय होता है जो लौह भस्म के सेवन से नष्ट हो जाता है। लौह भस्म सर्वत्र शोथ विकार में अत्यन्त उपयोगी औषधि है। सर्वत्र शोथ, त्वचा के नीचे के भाग में लसिका का संचय होना, यहां तक कि शेथ पर अंगुली दबाने से गहरा गड्ढा पड़ जाना, अति पाण्डुता, घबराहट, मुंह पर अधिक शुष्कता आदि में ताम्र भस्म एवं लौह भस्म मिलाकर देना अत्युत्तम है। पित्त प्रधान कुष्ठ रोग में भी इसका सेवन उत्तम है। पित्त प्रधान कुष्ठ में दाद, लाली तथा त्वचा अंगुली काले या जख्मों से जल के समान पहला स्राव, थोड़ा घाव होने पर पक जाना, उसमें दुर्गन्ध युक्त चिकना पीप निकलना आदि लक्षण होते हैं। इस रोग में यदि त्वचा पर व्रण लाल या काला हो उसमें छोटी-छोटी फुंसियां हों, खाज तथा दाह आदि लक्षण हो तब लौह भस्म और त्रिफला चूर्ण का प्रयोग लाभप्रद है।
किसी भी व्याधि से मुक्त हाने के उपरान्त क्षीणता आ जाती है जोकि लौह भस्म के सेवन से कम हो जाती है। मूलतः लौह भस्म पित्त और वात दोष, रक्त, मांस, समस्त धातुओं, द्रव्यों, हृदय, यकृत, पाचन संस्थान आदि में विशेष रूप से लाभ पहुंचाती है।
लौह भस्म के प्रमुख योग उपलब्ध हैं जोकि निम्न हैं-आरोग्यवर्धिनी वटी, ताप्यादिलौह, नवायस लौह, लौह पर्पटी, कफकुठार रस, योगराज गुग्गल, प्रदारान्तक लौह, चन्द्रप्रभावटी, लोहासन, विडंगादि लौह आदि। इनके अतिरिक्त अनेक योगों में भसम का उपयोग किया जाता है। लौह भस्म का सेवन अपने वैद्य की सलाह लेकर ही करना चाहिए। उचित अनुपात में उचित ढंग से लौह भस्म का सेवन स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करने वाला है।
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