भारतीय वर्ष कैलण्डर पूर्णतः प्राकृतिक है! -सतीश चन्द्र(ज्योतिष रत्न)
>> Saturday, July 10, 2010
वैदिक काल से ज्ञानाधार में भारतवर्ष सर्वोपरि रहा है। मूलतः भारतीयों का बुद्धिबल, ज्ञान-विज्ञान की विचारधारा तथा पृथ्वी एवं ब्रह्माण्ड में उपलब्ध ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए मनुष्य सुस्वास्थ्य, दीर्घायु के लिए विशेष सूत्रों का प्रतिपादन करता रहा है।
मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य शरीर की रक्षाकरते हुए इसे स्वस्थ रखते हुए दीर्घायु प्राप्त करने का प्रयास करना है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारतीय वैज्ञानिकों (ऋषियों) ने शरीर को स्वस्थ रखने एवं दीर्घायु प्राप्त करने के लिए अनेक आवश्यक नियमों का प्रतिपादन किया जिनमें से एक नियम भारतीय वर्ष कैलण्डर है जो पूर्णतः ब्रह्माण्डीय वातावरण में प्राण ऊर्जा के परिवर्तन एवं उसके सदुपयोग पर अधारित होने के कारण पूर्णतः प्राकृतिक है।
प्रत्येक मनुष्य को प्राण ऊर्जा पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा एवं अन्य ग्रह तथा तारा समूह मण्डल से मिलती है। इन सबके आभा मण्डल से मिलकर एक वातावरण तैयार होता है। यह वातावरण पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों की गति एवं भ्रमण-पथ अलग-अलग होने के कारण परिवर्तित होता रहता है। इस परिवर्तित होते ब्रह्माण्डीय वातावरण को ध्यान में रखते हुए भारतीय वर्ष कैलण्डर की संरचना की गयी है।
पृथ्वी अपने पथ पर जितने समय में सूर्य का एक चक्कर पूर्ण करती है, वह समय सौर वर्ष कहलाता है। भारतीय वर्ष कैलण्डर में बारह मास निम्न प्रकार होते हैं-
चैत्रा(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र के समीप रहता है।) वैशाख(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन विशाखा नक्षत्र के समीप रहता है।) ज्येष्ठ(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र के समीप रहता है।) आषाढ़(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के समीप रहता है।) श्रावण(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र के समीप रहता है।) भाद्रपद(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के समीप रहता है।) आश्विन(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन अश्विनी नक्षत्र के समीप रहता है।) कार्तिक(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन कृत्तिका नक्षत्र के समीप रहता है।) मार्गशीर्ष(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन मृगशिरा नक्षत्र के समीप रहता है।) पौष(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र के समीप रहता है।) माघ(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन मघा नक्षत्र के समीप रहता है।) फाल्गुन(चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के समीप रहता है।)
पृथ्वी द्वारा सूर्य का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी के पथ पर पड़ने वाले बड़े मुख्य तारा समूह जिन्हे राशि भी कहा जाता है तथा जो अपने आकार एवं उत्सर्जित ऊर्जा के कारण विशेष प्रभाव लिए हुए है, निम्न प्रकार है-मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं मीन।
उपरोक्त राशियों के मध्य प्रभावशाली छोटे तारा समूह जिन्हे नक्षत्र कहा जाता है तथा जो देखने में दूरी के कारण छोटे नजर आते है लेकिन ये सूर्य से भी कई गुणा विशालकाय अग्निपिण्ड है तथा जो अपनी विशिष्ट ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं, ये संख्या में 27 होते हैं जोकि निम्न प्रकार हैं-
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती।
प्रत्येक भारतीय मास में सूर्य एक विशिष्ट तारा समूह(राशि) पर होता है तथा चन्द्रमा एक विशिष्ट क्रम में नक्षत्रों पर चलता है जिसकी चर्चा पूर्व में कर चुके हैं। भारतीय वर्ष कैलण्डर के प्रत्येक मास का नामकरण नक्षत्रों के अनुसार किया गया है जो पूर्णतः वैज्ञानिक है।
बारह राशियों के आधार पर बारह मास में बारह विभिन्न वातावरण ब्रह्माण्ड में बनते हैं तथा चन्द्रमा की एक पूर्णिमा के पश्चात कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से दूसरी पूर्णिमा तक का समय एक भारतीय मास है। सूर्य से चन्द्रमा की 12अंश की दूरी को एक तिथि भी कहते है तथा पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा सूर्य से 180अंश की दूरी पर होता है। एक मास में चन्द्रमा लगभग 15दिन घटता है तथा लगभग 15दिन बढ़ता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के कारण वातावरण में परिवर्तन आता रहता है।
इस प्रकार भारतीय वर्ष कैलण्डर के प्रत्येक मास का अपना एक विशिष्ट वातावरण होता है तथा भारतीय वर्ष कैलण्डर से पृथ्वी की सभी ऋतु जुड़ी हैं। पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन पृथ्वी के अपने अक्ष पर 23.5अंश झुकी होने के कारण होता है। ऋतुओं का सम्बन्ध फसलों से भी रहता है। चैत्र मास का प्रारम्भ उस दिन से होता है जिस दिन सूर्य भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर प्रस्थान करता है। भारतीय वर्ष कैलण्डर के माह भाद्रपद में सूर्य पुनः भूमध्य रेखा पर आकर दक्षिण की ओर प्रस्थान करता है और माह चैत्रा में सूर्य दक्षिण से भूमध्य रेखा पर पुनः आ जाता है।
इस प्रकार भारतीय मनीषियों ने अपने वर्ष कैलण्डर को प्रकृति के सभी नियमों के अनुरूप पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर निर्मित किया है जो कि विश्व में अद्वितीय और पूर्ण प्राकृतिक है।
पर्वों का निर्धारण भी चन्द्र मासानुसार किया गया है। मुख्य पर्व खुले जल में स्नान से सम्बन्धित हैं क्योंकि जल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को सर्वाधिक सोखता है। अतः मनुष्यों द्वारा इन पर्वों पर घर से बाहर निकलकर खुले जल में स्नान करने से तथा भ्रमण करने से अधिक से अधिक ब्रह्माण्डीय प्राण ऊर्जा का लाभ स्वास्थ्यवर्धन तथा दीर्घायु प्राप्त करने के लिए उठाया जा सकता है। कुछ मुख्य स्नान इस प्रकार हैं-कुम्भ स्नान, माघ स्नान, वैशाख स्नान, गंगादशहरा, कार्तिक स्नान आदि।
भारतीय वर्ष कैलण्डर के समयानुसार अनेक आयुर्वैदिक दवाओं का निर्माण किया जाता है और इसके लिए सर्वप्रथम शुभ मुहूर्त्त पर उन्हें एकत्र किया जाता है जोकि मानव कल्याण के लिए बहुपयोगी है।
स्पष्ट है कि भारतीय वर्ष कैलण्डर पूर्णतः प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक है जोकि ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से पूर्णतः लाभ पहुंचाता है।
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