सर्दी, जुकाम व खांसी का यौगिक उपचार-राजीव शंकर माथुर
>> Sunday, July 25, 2010
ऋतु परिवर्तन होते ही लोगों को सर्दी-जुकाम व खांसी की शिकायत हो जाती है। सर्दियों में इसका प्रकोप अधिक होता है। जुकाम बिगड़ जाने पर निमोनिया, दमा व टी.बी. तक होने का खतरा बढ़ जाता है।
सर्दी-जुकाम व खांसी के आते ही छींके आती हैं, नाक बहती है, सिर भारी रहता है। गले में खराश हो जाती है और बार-बार खांसी होती है। प्रायः सर्दी-जुकाम तीन दिन रहता है और शरीर के समस्त विजातीय द्रव्य बाहर निकल जाते हैं। किन्तु अधिक दिन तक सर्दी-जुकाम बने रहना शरीर के लिए हानिकारक है और रोग के तीव्र होने की सम्भावना बढ़ती जाती है।
प्रायः ठंडा-गर्म होने पर, गरिष्ठ व अधिक अम्लीय पदार्थ खाने पर, चाय-कॉफी व अधिक ध्रूमपान करने से कब्ज बने रहने के कारण यह रोग होता है।
सर्दी में अधिक गर्म कपड़े लादे रहने से एवं अधिक गर्म पानी से नहाने पर शरीर की त्वचा निर्बल हो जाती है जिस कारण सर्दी सहन नहीं हो पाती है। फलतः सर्दी-जुकाम व खांसी का प्रकोप हो जाता है।
व्यायाम न करने वालों को भी यह रोग बार-बार व जल्दी-जल्दी होता है। व्यायाम न करने से शरीर का रक्त-संचार भली-भांति नहीं हो पाता है जिस कारण शरीर में अनेक प्रकार के मल एकत्र हो जाते हैं। ये मल ही सर्दी-जुकाम व खांसी का कारण बन जाते हैं।
रोग दूर करने का सरल उपाय
घी, दूध, दहीं और चावल का सेवन बिल्कुल बन्द कर दें।
गाजर के रस का सेवन करें।
अदरक का रस 10 मिली. एवं शहद 10मिली. अर्थात् सम भाग लेकर गर्म करके नित्य प्रति सेवन करने से दमे की खांसी ठीक हो जाती है।
भस्त्रिका प्राणायाम का नियमित अभ्यास करें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम का 5 से 20 मिनट तक अभ्यास करें।
कुंजल क्रिया एवं जल नेति का प्रतिदिन अभ्यास करें। नेति सर्दी-जुकाम व नजले में रामबाण का कार्य करती है।
जब नाक बहना बन्द हो जाए तो सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, कोणासन, सुप्त वज्रासन, उष्ट्रासन, शलभासन, धनुरासन, मत्स्यासन आदि आसनों का भी अभ्यास करना चाहिए।
इस रोग के दिनों में कोई भी चिकनी चीज दूध, दही एवं घी आदि का प्रयोग कदापि न करें।
खांसी अधिक सताती हो तो शीतली प्राणायाम करे इसे अत्यधिक लाभ होता है।
यह ध्यान रखें कि खाना खाते समय अचानक श्वास-नली में कुछ चला जाए और दम घोंटने वाली खांसी उठे तो तुरन्त नाक को बन्द कर देना चाहिए।
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