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उन्मनी मुद्रा

>> Saturday, August 14, 2010


मुद्रा बनाने की रीति-पद्मासन में स्थिर होकर बैठ जाएं और दृष्टि को नासिका से ऊपर भ्रूमध्य में स्थिर करके आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित करें। मन में कोई विचार न आने दें और निरन्तर आज्ञा चक्र पर ही ध्यान एकाग्र करें। 
कब करें-यह मुद्रा प्रातः या सायं कर सकते हैं। इसे पांच मिनट से 15मिनट तक कर सकते हैं। 
लाभ-इसके अभ्यास से मन एकाग्र होता है और चेहरे पर ओज बढ़ता है। आत्मविश्वास बढ़ता है। मानसिक शान्ति मिलती है। मन की चंचलता शान्त होती है। सात्विक विचारों की उत्पत्ति होती है। ध्यान करने में यह मुद्रा अत्यन्त सहायक है। सभी इन्द्रियां और मन निष्क्रिय हो जाते हैं, जिससे प्रत्याहार, अवस्था होकर बुद्धि स्थिर हो जाती है। समाधि की स्थिति  बनने लगती है। ज्ञान प्रकाश का उदय होता है और ऋतम्भरा का आभास होने लगता है।

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