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विवेकहीनता-हरिशंकर

>> Monday, August 16, 2010

    
एक धनी व्यक्ति ने हब्शी नौकर रखा। उसने पहले कभी हब्शी देखा नहीं था। उसका रंग कालास्याह था। धनी ने सोचा यह कभी नहाता नहीं होगा इसलिए मैल जम जाने से इसका रंग काला हो गया है। 
उसने बिना सोचे-समझे अपने अन्य नौकरों को आदेश दिया कि इसे अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर तब तक नहलाओ जब तक यह स्वच्छ और श्वेत न हो जाए।
नौकरों ने मालिक की आज्ञा का पालन किया। विलम्ब तक साबुन रगड़ते रहने पर भी शरीर का रंग नहीं बदला। इतना अवश्य हो गया कि देर तक नहलाते रहने से वह हब्शी मालिक की विवेकहीनता का शिकार हो गया और बीमार होकर मर गया।
मानव जीवन में सत्य-असत्य के निर्णय का बहुत महत्त्व है। यदि मालिक ने सद् विवेक से निर्णय लिया होता तो वह हब्शी नहीं मरता।
     विवेकहीनता से बचना चाहिए अन्यथा हानि उठानी पड़ सकती है। विवेकी पुरुष ही सही निर्णय ले पाता है और कठिन परिस्थितियों से स्वयं को निकाल ले जाता है। 

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना August 16, 2010 at 12:09 PM  

विवेकहीन जीवन तो मृत्‍यु से भी बदतर है। अच्‍छा लेख है।

माधव( Madhav) August 16, 2010 at 12:59 PM  

nice

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