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शून्य मुद्रा

>> Tuesday, August 17, 2010


मुद्रा बनाने की रीति-मध्यमा अंगुली को अंगूठे की गद्दी पर रखकर उसे अंगूठे से हल्का सा दबाकर रखने से शून्य मुद्रा बन जाती है। 
कब करें-इस प्रतिदिन चालीस मिनट तक लगातार कर सकते हैं। प्रायः रोग की समाप्ति तक करना चाहिए। कानदर्द हो तो दस मिनट में ही आराम हाने लगता है। कान के बहरे पन या कम सुनने की स्थिति में अथवा कान के पेचीदा रोगों में इसे प्रतिदिन 40 से 60 मिनट तक करना चाहिए। यदि इस मुद्रा से लाभ न हो रहा हो तो आकाश मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। 
लाभ-यदि शरीर में आकाश तत्त्व बढ़ गया हो तो इस मुद्रा के प्रभाव से घटकर सन्तुलित हो जाता है। यह मुद्रा कान के रोगों के लिए उपयोगी है। बहरेपन की चिकित्सा के लिए रामबाण की तरह प्रयोग कर सकते हैं। बहरेपन, कान से कम सुनना, कान का बहना आदि रोगों में डाक्टरी चिकित्सा के साथ-साथ इस मुद्रा को करके भी लाभ उठा सकते हैं। इस मुद्रा से बहरे या गूंगे भी लाभ उठा सकते हैं। जन्मजात गूंगे या बहरे को कोई लाभ नहीं होता है।

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