गुरु सर्वोपरि है!-पं. रामहरी शर्मा
>> Saturday, August 21, 2010
हमारी हिन्दु संस्कृति में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने इस श्लोक का श्रवण न किया हो-गुरु ब्रह्मा गुरूविष्णु गुरुदेवोमहेश्वरः गुरुसाक्षातपरम ब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नमः।
अर्थात् गुरु ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं, वे साक्षात परम ब्रह्म हैं, उनको नमस्कार हो।
गुरु सर्वोपरि हैं। गुरु परमावश्यक है, इनके बिना सुपथ का भान नहीं होता है। गुरु शैक्षिक एवं आध्यात्मिक होता है।
शिक्षा देकर शिक्षित करने वाला शिक्षा गुरु एवं जीवन में सुपथ पर अग्रसर करने के लिए परम व सत्य ज्ञान का दर्शन कराने वाला अध्यात्मिक गुरु होता है।
प्रत्येक के जीवन में कोई न कोई गुरु अवश्य होता है। गुरुओं के सम्मान एवं पूजन के लिए अनादि काल से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। गुरुओं में श्रीवेदव्यास का नाम सर्वोपरि है, इसीलिए इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं।
इस दिन ब्रज क्षेत्रा मथुरा के गोवर्धन स्थिति गिरिराज पर्वत पर एक बहुत बड़ा मेला लगता है जोकि तीन दिन तक चलता है। इस मेले में ब्रज क्षेत्रा में रहने वाले सन्यासी एकत्रिात होकर जुलूस निकालते हुए श्री गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं और अपने दीक्षा गुरु के साथ यह पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं।
यह पर्व आषाढ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 25जुलाई को है। जो व्यक्ति गुरु के द्वारा दीक्षित है, उसे अपने गुरु के सानिध्य में जाकर गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए। शेष को नित्य कर्म से निवृत्त होकर नित्य पूजा-अर्चना करके परम्परा सहित व्यास पूजा करनी चाहिए एवं अपने अग्रजों का सम्मान करना चाहिए। इस पूजा से व्यक्ति ऋषि-ऋण से मुक्त होता है।
गुरु की महत्ता कितनी है इसका वर्णन कबीरदास जी ने अपने इस दोहे में कर दिया है-गुरु गोविन्द दोउ खड़ें, काके लागूं पाए। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताए॥
आज सच्चे गुरु का मिलना कठिन है। अच्छा गुरु भी भाग्य से मिलता है। प्रत्येक मनुष्य को गुरु की आवश्यकता है क्योंकि जीवन के सत्य से परिचित कराकर उन्नति मार्ग वही प्रशस्त करता है।
आजकल पाखण्डी व ढोंगी गुरुओं की भरमार है। प्रत्येक व्यक्ति को सतर्क होकर गुरु बनाना चाहिए। गुरु निर्धारित करके बार-बार नहीं त्यागा जाता है। व्यक्ति निज श्रद्धानुसार अपना गुरु निर्धारित कर सकता है। गुरु का सदैव आदर करना चाहिए। उनके आशीष से जीवन में सुपथ मिल जाता है। भाग्य में सच्चा गुरु मिलना हो तो ईशकृपा से व्यक्ति स्वतः उस तक पहुंच जाता है।
हमारे जीवन में एक लकीर खिचीं है सदियों से उसे ही पीटते चले आ रहे हैं। जीवन में कुछ विशेष नहीं करते हैं। जन्म से मृत्यु तक की इस यात्राा को शिक्षा, नौकरी, विवाह, सन्तान, फिर उनकी शिक्षा, नौकरी, विवाह और उनकी सन्तान रूपी लकीर का पीछा करते हुए यूं ही जीवन यात्राा को पूर्ण कर चले जाते हैं।
जीवन का सत्य क्या है और जीवों में सर्वोपरि मनुष्य जन्म किस लिए है। जीवन की सार्थकता क्या है? हम इस जगत् में क्यों आए हैं और हमारा लक्ष्य क्या है?
जब तक हम इस खिचीं परम्परागत लकीर से कुछ अलग नहीं करते हैं तब तक हमारा जीवन सार्थक नहीं होता है।
कुछ अलग करने के लिए ही सच्चे मार्गदर्शक, सुपथप्रर्दशक गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु सुपथ दिखलाता है और जीवन के सत्य को बताकर जीवन की सार्थकता सिद्ध करने का निर्देश देता है।
जीवन सदैव लक्ष्य सहित जीएं, लक्ष्य हीन जीवन भटकाव लाता है। जीवन की सार्थकता लक्ष्य सहित होती है। जीवन में असंख्य लोग दूसरों के विकास के लिए नित नए शोध के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं। कल्पना कर देखें कि यदि वे ऐसा नहीं करते तो इतना विकास सम्भव नहीं था। वे कुछ अतिरिक्त तभी कर पाते हैं जब वे ये जान जाते हैं कि जीवन का परम लक्ष्य क्या है, हमें क्या करना है, जीवन को सार्थक कर वे लोग अमर हो जाते हैं, उनका नाम सदियों तक लिया जाता है। इन जैसे लोगों के कारण ही हमारा जीवन विकसित एवं सुख-सुविधा पूर्ण हैं।
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