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प्रयत्‍न

>> Monday, September 6, 2010


मैं अपने गांव के एक इंटर पास लड़के को जानता हूं। वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहता था। लेकिन उसके माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उसकी पढ़ाई का भार उठा नहीं सकते थे। वह गांव से शहर में चला आया और काम की खोज में इधर-उधर घूमने लगा। दो दिन भटकने के बाद उसने तीसरा दिन नष्‍ट नहीं किय और अखबार बेचना प्रारम्‍भ कर दिया। धीरे-धीरे उसकी इतनी उन्‍नति हो गई कि उसने शहर में किताबों की दुकान खोल ली। अब वह कॉलेज की पढ़ाई भी करने लगा और दुकान भी चलाने लगा। दिन-रात के कठिन परिश्रम के बाद वह शहर का प्रसिद्ध बुकसेलर बन गया। उस लड़के की सफलता के पीछे क्‍या है, उन्‍नति के स्‍वप्‍न को साकार करने के लिए एक प्रयत्‍न ही तो है। धनी व सफल सभी होना चाहते हैं, पर अटूट प्रयत्‍न या परिश्रम कोई नहीं करना चाहता है। प्रयत्‍न एवं परिश्रम से कोई भी अपने स्‍वप्‍न या इच्‍छा को पूर्ण कर सकता है। करना इतना है कि इच्‍छा को स्‍वप्‍न बनाकर उसे पूरा करने के लिए एक लक्ष्‍य बनाकर उसको पाने का सतत् प्रयास या प्रयत्‍न जो एक दिन उसे साकार कर देगा, लेकिन तभी जब उसे अपनी इच्‍छा शक्ति पर दृढ़ विश्‍वास होगा।

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