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कम्‍प्‍यूटर ने अनेक झोलाछाप नीमहकीम ज्‍योतिषियों की फौज लोगों को गुमराह करने के लिए खड़ी कर दी है

>> Tuesday, October 26, 2010


तकनीक के विकास ने कम्‍प्यूटर को जन्‍म दिया। कम्‍प्‍यूटर ने ज्योतिष की गणनाओं को सरल बना दिया है। बाजार में व इन्‍टरनेट पर ज्‍योतिष के प्रोग्रामों की बाढ् ला दी है। इनमें से कुछ खरे हैं तो कुछ खोटे। इन ज्‍योतिष सॉफ्टवेयरों ने कुकरमुत्‍ते की तरह अनेक झोलाछाप नीम-हकीम ज्‍योतिषियों उत्‍पन्‍न कर दिए हैं। इनको पंचांग पढ्ना तो दूर ज्‍योतिष की ए बी सी भी नहीं पता है। लेकिन ये आपको 2से3 डॉलर प्रति मिनट की दर से ऑन लाइन हैं और 24 घंटे उपलब्‍ध हैं। अपने अधकचरे ज्ञान के द्वारा ज्योतिष की 'दुकान' चलाने वाले इन झोलाछाप ज्‍योतिषियों ने ज्‍योतिष की इस प्राचीन विद्या को अपयश के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे लोगों की अज्ञानता व लालच में फँसकर अपनी मेहनत की कमाई लुटाने वालों को जब ज्योतिष के बदले धोखा मिलता है, तो उनकी नजरों में यह पूरी विद्या ही पूर्णतया संदेह के घेरे में आ जाती है। ऐसे में विद्वान ज्योतिषियों को भी सन्‍देह की दृष्टि से देखा जाने लगता है। इन झोलाछाप के हाथों में पड़कर ज्योतिष हास्‍य का विषय बनकर रह गया है। ये अधकचने ज्‍योतिषी अपना 'अर्थ' लाभ तो देखते हैं, पर ज्योतिष का कितना 'अनर्थ' हो रहा है, यह नहीं देखते।
    ज्योतिष में जन्‍म दिनांक, जन्‍म समय, जन्‍म स्‍थान के बिना कोई कुण्‍डली नहीं बनती है। ये तीन अशुद्ध हैं या हैं नहीं तो ज्‍योतिषी का कथन कदापि सत्‍य नहीं हो सकता है। हवा में यूं ही तीर चलाए जाने से कोई लाभ नहीं है। यह नहीं है तो प्रश्‍न कुण्‍डली से प्रश्‍न का उत्‍तर दिया जाता है। गणना में जरा भी कमी रह जाए, तो इसका परिणाम भी गलत ही होगा। ज्‍योतिषी स्‍वयं बताते हैं कि कंप्यूटर से ज्योतिष का काम बहुत आसान हो जाता है। इससे गणना जल्‍दी और सही हो जाती है और इसका बहुत लाभ मिलता है, लेकिन इस पर पूरी तरह से विश्‍वास नहीं किया जा सकता है।
    यदि सॉफ्टवेयर में गलतियां हैं तो उनसे सही गणना भी नहीं करी जा सकती। कहने का तात्‍पर्य यह है कि सॉफ्टवेयर गलत तो चलाने वाला गलत गणना ही करेगा जिससे कई बार कंप्यूटर के परिणामों में भयंकर भूलें हो जाती है। ऐसे में झोलाछाप या इस सॉफ्टवेयर को चलाने वाला ज्‍योतिषी कभी सही कथन नहीं कर सकता है। कई बार सॉफ्टवेयर होते हुए भी उसे चलाने की पूरी समझ नहीं होती है तो भी भंयकर भूलें हो जाती हैं, और परिणाम गलत। वैसे भी ज्‍योतिष के समस्‍त सॉफ्टवेयर जो बाजार में उपलब्‍ध हैं, वे चाहे जितने दावे करें 'फलित' में सभी हास्‍यापस्‍द परिणाम देते हैं। कम्‍प्‍यूटर के इन सॉफ्टवेयर का प्रयोग गणना में किया जा सकता है पर फलित में कदापि नहीं।
ये झोलाछाप को ज्‍योतिष का ज्ञान नहीं है, इसलिए उन्‍हें नहीं पता कि कुंडली वगैरह में कहाँ क्या गलती हो रही है। पता तो तब चलता है जब भविष्यवाणियाँ बेकार सिद्ध होती हैं। ऐसे में भले ही ज्योतिष के प्रति लोगों के भरोसे की धज्जियाँ उड़ती हों। ज्योतिष-विज्ञान का जो उपहास हो रहा है, इसका कारण अल्प ज्ञानी ज्योतिषी हैं। गणित के बाद फलादेश से ही ज्योतिष का महत्‍ता प्रकट होती है। ज्‍योतिष शास्‍त्र महासागर है, इसकी गहराई में सूत्र रूप में अनेक मोती छिपे हैं, इन्‍हें वही चुनकर निकाल सकता है जोकि गहरे पानी पैठ सकता है, यानि इसका गहन अध्‍ययन कर सकता है।

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