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पाया शब्द पाद(पैर) से बना है। पाया का अर्थ स्तम्भ भी होता है। प्राय: बच्चे के जन्म होने के उपरान्त माता-पिता यह जानना चाहते हैं कि वह किस पाए में उत्पन्न हुआ है? पाया जानने की तीन रीतियां लोक-प्रचलित हैं। प्रथम दो रीतियां अधिक प्रचलित हैं और शेष एक रीति ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है।
पहली रीति के अनुसार सर्वप्रथम जन्म कुण्डली में देखें कि चन्द्रमा किस भाव में स्थित है। यदि चन्द्रमा 1, 6, 11वें भाव में स्थित है तो सोने का पाया, 2, 5, 9वें भाव में स्थित है तो चांदी का पाया, 3, 7, 10वें भाव में स्थित है तो तांबे का पाया और 4, 8, 12वें भाव में स्थित है तो लोहे का पाया होता है।
दूसरी रीति के अनुसार यह देखना होता है कि बालक का जन्म किस नक्षत्र में हुआ है। यदि बालक का जन्म आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वामि नक्षत्र में हुआ है तो चांदी का पाया, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा व मूला नक्षत्र में हुआ है तो लोहे का पाया, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुआ है तो तांबे का पाया एवं रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी व म़गशिरा नक्षत्र में जन्म हुआ है तो सोने का पाया है।
तीसरी रीति में जन्म नक्षत्र के मान को चार बराबर भागों में विभाजित करके यह देखते हैं कि बालक का जन्म किस भाग में हुआ है। यदि पहले भाग में है तो सोने का पाया, दूसरे भाग में जन्म है तो चांदी का पाया, तीसरे भाग में जन्म है तो तांबे का पाया एवं चौथे भाग में जन्म है तो लोहे का पाया होता है। यह रीति अधिक प्रचलित व प्रमाणिक नहीं है।
प्रथम दो रीतियां मान्य व लोक-प्रचलित हैं। चांदी का पाया सर्वोत्तम, तांबे का पाया उत्तम, सोने का पाया सामान्य अशुभ एवं लोहे का पाया अधिक अशुभ होता है। यदि प्रथम दो रीतियों से ज्ञात दोनों पाये शुभ तो जन्म अच्छा होता है, एक शुभ व एक अशुभ हो तो सामान्य अशुभ एवं दोनों पाये अशुभ हो तो जन्म अधिक अशुभ व अरिष्टकारक होता है।
1 comments:
wah kya knowledge hai aapki......lagta hai poore jyotish bhandar aapki site m samaya hua h
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