कण्टक शनि है साढ़े साती का दूसरा प्रकार
>> Thursday, November 11, 2010
जब गोचर का शनि चन्द्र राशि से चौथे, सातवें एवं दसवें भाव में भ्रमण करता है तो उसको कण्टक शनि कहा जाता है। यह साढ़े साती का दूसरा प्रकार है।
कण्टक शनि में मानसिक दु:खों की वृद्धि होती है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से चौथे शनि होने से स्वास्थ्य खराब रहता है और निवास स्थान में परिवर्तन होता हैा अनियमित रक्तचाप, हृदय रोग, सम्बन्धियों से वियोग व पारिवारिक सुख में कमी आती है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से सातवें शनि होने से परदेश वास, पत्नी व माता को शारीरिक कष्ट, मानसिक चिन्ताएं, मूत्र व जननांग सम्बन्धी रोग, मान-सम्मान में कमी, कार्यक्षेत्र में उथल-पुथल एवं यात्रा में कष्ट होता है। यदि चर राशि मेष, कर्क, तुला, मकर हो तो यह फल निश्चित रूप से होता है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से दसवें शनि होने से नौकरी, व्यवसाय या आजीविका में बाधाएं आती हैं और कार्य में असफलताएं मिलती हैं। घर-सम्पत्ति एवं मान-सम्मान की चिन्ता रहती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि फलित करते समय साढ़े-साती से कम महत्व कण्टक शनि को नहीं देना चाहिए।
कण्टक शनि में मानसिक दु:खों की वृद्धि होती है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से चौथे शनि होने से स्वास्थ्य खराब रहता है और निवास स्थान में परिवर्तन होता हैा अनियमित रक्तचाप, हृदय रोग, सम्बन्धियों से वियोग व पारिवारिक सुख में कमी आती है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से सातवें शनि होने से परदेश वास, पत्नी व माता को शारीरिक कष्ट, मानसिक चिन्ताएं, मूत्र व जननांग सम्बन्धी रोग, मान-सम्मान में कमी, कार्यक्षेत्र में उथल-पुथल एवं यात्रा में कष्ट होता है। यदि चर राशि मेष, कर्क, तुला, मकर हो तो यह फल निश्चित रूप से होता है।
चन्द्र राशि या जन्म राशि से दसवें शनि होने से नौकरी, व्यवसाय या आजीविका में बाधाएं आती हैं और कार्य में असफलताएं मिलती हैं। घर-सम्पत्ति एवं मान-सम्मान की चिन्ता रहती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि फलित करते समय साढ़े-साती से कम महत्व कण्टक शनि को नहीं देना चाहिए।
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