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व्रत क्यों और किसलिए(भाग-1)

>> Friday, March 18, 2011

      
   
   
    व्रत शब्द का अर्थ श्री वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत कोशानुसार यह है कि 1. भक्ति या साधना का धार्मिक कृत्य, प्रतिज्ञा का पालन, प्रतिज्ञा, भिन्न-भिन्न पुराणों में अनेक व्रतों का वर्णन किया गया है, परन्तु उनकी संख्या निश्चित नहीं हो सकी क्योंकि  निरन्तर नए-नए व्रतों की रचना प्रतिदिन होती रहती है। 2. इसे संकल्प, प्रतिज्ञा, दृढ़ निश्चय। इसी प्रकार सत्यव्रत, दृढ़व्रत इत्यादि। 3. भक्ति या आस्था का पदार्थ, भक्ति, जैसा कि पतिव्रता। 4. संस्कार, अनुष्ठान, अभ्यास। 5. जीवनचर्या, आचरण, चालचलन। 6. अध्यादेश, विधि, नियम।    7. यज्ञ, 8. कर्म, करतब, कार्य। किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अनशन करना। धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना।   
    एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए।
    यह जान लें व्रत में कम प्रयास से अधिक फल की प्राप्ति होती है। व्रत कोई भी कर सकता है। व्रती को निम्न दस गुणों का पालन करना चाहिए-क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इन्द्रियनिग्रह, देवपूजा, हवन, सन्तोष एवं अस्तेय। व्रत के दिन मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। पतित, पाखण्डी व नास्तिकों से दूर रहना चाहिए। सात्विक जीवन का पालन एवं प्रभु-सुमिरन करना चाहिए। मन में कल्याणकारी भावना का पालन करना चाहिए।
    व्रत तीन प्रकार के होते हैं-
    1. नित्य(नित्य व्रत ईश्वर की प्रसन्नता हेतु निरन्तर कर्त्तव्य भाव से किया जाता है।),           
    2. नैमित्तिक(किसी निमित्त से किया जाता है।) एवं              
    3. काम्य(किसी विशेष मनोकांक्षा की पूर्ति हेतु किया जाता है।)।
    तीनों प्रकार के व्रत में उक्त दस नियमों का पालन अनिवार्य है।
    व्रत में ध्यान रखें!
    व्रत में अधोलिखित नौ नियमों का विशेष रूप से ध्यान करना चाहिए-
    1. संकल्प रहित व्रत अधूरा है। व्रत करने से पूर्व संकल्प लेना चाहिए कि व्रत किस लिए, कब और कितनी बार करना है।
    2. व्रत शुभ मुहूर्त्त में प्रारम्भ करना चाहिए जिससे बिना बाधा के पूर्ण हो सके।
    3. व्रत के दिन पूर्वोक्त दस नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए एवं बड़े-बुर्जुगों का आशीर्वाद लेना चाहिए।
    4. व्रत रीति के अनुसार ही करना चाहिए। उसे अपनी सुविधा के लिए उसके नियमों को बदलना नहीं चाहिए।
    5. व्रत के मध्य में सूतक लग जाए तो व्रत पुनः प्रारम्भ करना चाहिए।
    6. व्रत पूर्ण होने पर उसका उद्यापन नियमानुसार करना चाहिए। हवन, विप्र भोजन एवं श्रद्धानुसार दानादि करके विप्र से आशीर्वाद लेना चाहिए।
    7. व्रत से पूर्व अपने पूर्वजों का स्मरण करने से उनका भी आशीर्वाद मिल जाता है।
    8. किसी कारणवश व्रत छूट जाए, कोई बाधा आ जाए तो क्षमायाचना संग प्रायश्चित करें। 
    9. व्रत के दिन उपवास अवश्य रखना चाहिए और  सात्‍िवक आहार लेना चाहिए या फलाहार करना चाहिए अथवा व्रतानुसार निर्दिष्ट भोजन लेना चाहिए।
व्रत के लाभ
    सबसे पहले सप्तवार के व्रतों की चर्चा करते हैं। प्रत्येक वार के अनुसार व्रत रखा जाता है।
    रविवार के व्रत से स्वास्थ्य लाभ या नीरोगिता, यश, अधिकार की प्राप्ति, राज्यलाभ एवं ग्रहबाधा से मुक्ति के अलावा आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
    सोमवार के व्रत से भाग्य वृद्धि, मनोकामना पूर्ति, सन्तान सुख एवं मन की एकाग्रता के साथ-साथ अस्थिरता व बेचैनी से मुक्ति मिलती है।
    मंगलवार के व्रत से रोग एवं शत्रु से मुक्ति, ऊर्जा में वृद्धि के साथ पराक्रम, साहस एवं बल भी बढ़ता है।
    बुधवार के व्रत से बुद्धि, विद्वता, शिक्षा, यश एवं ऐश्वर्य के साथ सम्पन्नता मिलती है।
    गुरुवार के व्रत से सम्मान, सुख, भाग्य, सम्पन्नता, यश एवं पुत्र प्राप्ति अथवा सन्तान सुख मिलता है।
    शुक्रवार के व्रत से मनोकामना पूर्ति, विवाह, धनलाभ, मांगलिक कार्यों या उद्श्यों की पूर्ति होती है।
    शनिवार के व्रत से परिपक्वता आती है और शनि के कुप्रभावों का शमन होता है।
    श्री सत्यनारायण की व्रत कथा से मानसिक शान्ति, वैभव, पवित्रता, सुकर्मता एवं धार्मिक आस्था में प्रबलता आती है।
    प्रदोष व्रत से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।(क्रमशः)

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