कहीं आपकी कुण्डली में वाणी दोष तो नहीं
>> Thursday, March 17, 2011
कभी-कभी आपकी कुण्डली में वाणी दोष होता है जिस कारण आप गूंगे हो सकते हैं या बोल नहीं पाते हैं! वाणी दोष होने पर आप अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं। विचारों की अभिव्यक्ति वाणी द्वारा ही होती है। मधुरभाषी सदैव सबको प्रिय होता है! नाम के बाद वाणी ही उसकी पहचान बनाती है। वाणी दोष हो तो जीवन में एक अभाव सा रहता है, जीवन में एक प्रकार से कुछ खो सा जाता है जो सदेव सालता रहता है। यह दोष व्यक्ति में पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण ही होता है।
दूसरा भाव वाणी का प्रतिनिधत्व करता है और बुध ग्रह वाणी का कारक कहलाता है। दूसरा भाव, दूसरे भाव का स्वामी एवं वाणी कारक ग्रह बुध यदि पाप ग्रह से युत, दृष्ट या अशुभ भाव में स्थित हो तो वाणी दोष होता है। वाणी दोष जांचने के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
1. दूसरे भाव से त्रिक भाव में वाणी कारक बुध स्थित हो तो यह योग होता है। अथवा द्वितीयेश त्रिक भावों में हो तो वाणी दोष होता है। यहां त्रिक भावों की गिनती द्वितीय भाव से होगी।
2. चन्द्र लग्न या लग्न से त्रिक भाव में द्वितीयेश या वाणी कारक बुध स्थिति हो और पापग्रह से युत या दृष्ट हो और किसी प्रकार की शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।
3. द्वितीयेश बुध व गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो जातक गूंगा होता है।
4. दूसरे भाव में नीच ग्रह स्थित हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वाणी दोष होता है।
5. दूसरे भाव में सूर्य, चन्द्र, राहु व पापयुत शुक्र की युति हो तो वाणी दोष होता है।
6. शनि-चन्द्र की युति दूसरे भाव में हो और उस पर सूर्य व मंगल की दृष्टि पड़े तो वाणी दोष होता है।
7. छठे भाव का स्वामी या बुध चौथे, आठवें या बारहवें स्थित हो और पापग्रह से दृष्ट हो तो वाणी दोष होता है या गूंगा होता है।
8. कर्क, वृश्चिक व मीन राशि में गए हुए बुध को अमावस का चन्द्र देखे तो जातक गूंगा होता है या वाणी में दोष होता है।
9. बुध एवं छठे भाव का स्वामी जब एक साथ युत होते हैं तो भी वाणी में दोष होता है।
10. छठे भाव का स्वामी एवं गुरु ग्रह जब पहले भाव में स्थित हो तो जातक की वाणी में दोष होता है।
11. दूसरे भाव से त्रिक भाव का स्वामी जिस राशि या नवांश में स्थित हो उससे त्रिकोण में जब गोचर में शनि आएगा तब जातक को वाणी संबंधी समस्या से ग्रस्त होना पड़ेगा।
12. दूसरे भाव में पापग्रह स्थित हो और दूसरे भाव का स्वामी नीच या अस्त होकर पापग्रहों से दृष्ट हो व सूर्य-बुध की युति सिंह राशि में हो तो जातक को वाणी दोष होता है।
13. बुधाष्टक वर्ग में बुध से दूसरे भाव में शून्य रेखा हो तो जातक को वाणी दोष होता है या वह गूंगा होता है।
14. छठे भाव का स्वामी और बुध पहले भाव में स्थित हों और पापग्रह से दृष्ट हो तो जातक गूंगा होता है।
उक्त योगों में से एक या एक से अधिक योग होने से वाणी दोष रहता है। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग कारक ग्रह होते हैं। योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में वाणी संबंधी समस्या से ग्रस्त होना पड़ सकता है।
यदि ये योग हों और उन पर किसी भी प्रकार से शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो या योग कारक ग्रह उच्च या स्वराशि में नवांश में हों तो यह योग भंग भी हो सकता है और वाणी दोष की समस्या नहीं भी हो सकती है।
उक्त योगों को किसी भी कुण्डली में विचार करके यह जान सकते हैं कि जातक को वाणी सम्बन्धी दोष होगा या नहीं।
दूसरा भाव वाणी का प्रतिनिधत्व करता है और बुध ग्रह वाणी का कारक कहलाता है। दूसरा भाव, दूसरे भाव का स्वामी एवं वाणी कारक ग्रह बुध यदि पाप ग्रह से युत, दृष्ट या अशुभ भाव में स्थित हो तो वाणी दोष होता है। वाणी दोष जांचने के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
1. दूसरे भाव से त्रिक भाव में वाणी कारक बुध स्थित हो तो यह योग होता है। अथवा द्वितीयेश त्रिक भावों में हो तो वाणी दोष होता है। यहां त्रिक भावों की गिनती द्वितीय भाव से होगी।
2. चन्द्र लग्न या लग्न से त्रिक भाव में द्वितीयेश या वाणी कारक बुध स्थिति हो और पापग्रह से युत या दृष्ट हो और किसी प्रकार की शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।
3. द्वितीयेश बुध व गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो जातक गूंगा होता है।
4. दूसरे भाव में नीच ग्रह स्थित हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वाणी दोष होता है।
5. दूसरे भाव में सूर्य, चन्द्र, राहु व पापयुत शुक्र की युति हो तो वाणी दोष होता है।
6. शनि-चन्द्र की युति दूसरे भाव में हो और उस पर सूर्य व मंगल की दृष्टि पड़े तो वाणी दोष होता है।
7. छठे भाव का स्वामी या बुध चौथे, आठवें या बारहवें स्थित हो और पापग्रह से दृष्ट हो तो वाणी दोष होता है या गूंगा होता है।
8. कर्क, वृश्चिक व मीन राशि में गए हुए बुध को अमावस का चन्द्र देखे तो जातक गूंगा होता है या वाणी में दोष होता है।
9. बुध एवं छठे भाव का स्वामी जब एक साथ युत होते हैं तो भी वाणी में दोष होता है।
10. छठे भाव का स्वामी एवं गुरु ग्रह जब पहले भाव में स्थित हो तो जातक की वाणी में दोष होता है।
11. दूसरे भाव से त्रिक भाव का स्वामी जिस राशि या नवांश में स्थित हो उससे त्रिकोण में जब गोचर में शनि आएगा तब जातक को वाणी संबंधी समस्या से ग्रस्त होना पड़ेगा।
12. दूसरे भाव में पापग्रह स्थित हो और दूसरे भाव का स्वामी नीच या अस्त होकर पापग्रहों से दृष्ट हो व सूर्य-बुध की युति सिंह राशि में हो तो जातक को वाणी दोष होता है।
13. बुधाष्टक वर्ग में बुध से दूसरे भाव में शून्य रेखा हो तो जातक को वाणी दोष होता है या वह गूंगा होता है।
14. छठे भाव का स्वामी और बुध पहले भाव में स्थित हों और पापग्रह से दृष्ट हो तो जातक गूंगा होता है।
उक्त योगों में से एक या एक से अधिक योग होने से वाणी दोष रहता है। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग कारक ग्रह होते हैं। योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में वाणी संबंधी समस्या से ग्रस्त होना पड़ सकता है।
यदि ये योग हों और उन पर किसी भी प्रकार से शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो या योग कारक ग्रह उच्च या स्वराशि में नवांश में हों तो यह योग भंग भी हो सकता है और वाणी दोष की समस्या नहीं भी हो सकती है।
उक्त योगों को किसी भी कुण्डली में विचार करके यह जान सकते हैं कि जातक को वाणी सम्बन्धी दोष होगा या नहीं।
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