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व्रत क्यों और किसलिए(भाग-2)

>> Wednesday, March 23, 2011

  
   
   
    व्रत  धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना।  एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए। पूर्व अंक की चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
व्रत के लाभ
    व्रत में सर्वप्रथम सप्तवार की चर्चा में बता चुके हैं कि इनसे क्या लाभ होता है। सत्यनारायण एवं प्रदोष व्रत के लाभ भी बता चुके हैं। अब अन्य व्रतों के लाभ बताते हैं।
    महाशिवरात्रि के व्रत से शिव की भक्ति के साथ-साथ मन की शुद्धि होती है और पापों का नाश होता है।
    गुरुड़ व्रत का पालन करने से विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
    नव संवत्सर की प्रतिपदा में व्रत रखने से वर्ष शुभ होता है और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
    भैया दूज या यम द्वितीया के व्रत से भाई के सुखी जीवन एवं दीर्घायु होती है। इसी संकल्प से यह व्रत किया जाता है।
    अक्षय तृतीया का व्रत रखने से यश वृद्धि होती है, कीर्ति बढ़ती है और पितरों की शान्ति होती है।
    कजली व्रत को रखने से जीवन के चार उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
    गौरी तृतीया का व्रत स्त्रियां रखती है इस  मनोकामना के साथ कि अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हो।
    गणेश चतुर्थी का व्रत विन विनाशक होता है। समस्त बाधाओं की मुक्ति के लिए इसे रखा जाता है।
    मनोकामना पूर्ति के लिए मनोरथ चतुर्थी का व्रत रखा जाता है।
    करवा चौथ का व्रत प्रति की दीर्घायु  अखण्ड सौभाग्य के लिए रखा जाता है।
    नाग पंचमी का व्रत नाग देवता की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। इसके करने से सर्पदंश से रक्षा एवं सर्पशाप से मुक्ति मिलती है।
    बसन्त पंचमी का व्रत श्रेष्ठ विद्या की प्राप्ति, बुद्धि एवं सुखी गृहस्थ जीवन के लिए रखा जाता है।
    ऋषि पंचमी का व्रत कायिक, वाचिक एवं मानसिक पापों से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है।
    स्कन्द षष्ठी का व्रत शत्रु नाश के लिए रक्षा जाता है।
    छठ पर्व का व्रत सूर्य उपासना के लिए रखा जाता है। इसके रखने से सन्तान का लाभ होता है एवं सूर्य के कुप्रभाव से बचाव होता है।
    गंगा सप्तमी का व्रत पितरों की शान्ति के लिए रखा जाता है।
    अचला सप्तमी का व्रत पापों के नाश के लिए रखा जाता है।
    कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत कृष्ण जी की उपासना एवं उनकी कृपा प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत के रखने से मनोकामना की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
    अहोई अष्टमी का व्रत माताएं इसलिए रखती है कि उनके पुत्रों की दीर्घायु हो और वे बाधाओं से मुक्त हों।
    श्रीराधा अष्टमी का व्रत सुख एवं समृद्धि के लिए रखा जाता है।
    शीतला अष्टमी का व्रत शीतला रोग के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है।
    भैरव अष्टमी का व्रत सौभाग्य वृद्धि के साथ पितरों के तर्पण के लिए रखा जाता है।
    महानवमी का व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए रखा जाता है।
    श्रीसीता नवमी का व्रत तप शक्ति की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत से तप करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है।
    रामनवमी का व्रत वे रखते हैं जो अपनी मर्यादा को बनाए रखना चाहते हैं। वैसे यह व्रत मनोकामना पूर्ति में सहायक है।
    दशहरा अर्थात्‌ विजयादशमी का व्रत रखने से श्री राम जी की भक्ति होती है और उनकी कृपा प्राप्त होने से सर्वकार्यों की सिद्धि होती है।
    पापांकुशा एकादशी का व्रत पापों से बचने एवं उनमें अंकुश लगाने के लिए रखा जाता है।
    मोक्षदा एकादशी का व्रत पापों के शमन एवं भगवद् भक्ति के लिए किया जाता है।
    सफला एकादशी का व्रत कार्यों की पूर्ति  एव मनोरथों की पूर्ति के लिए रखा जाता है।
    विजया एकादशी का व्रत मानसिक ताप के शमन के लिए रखा जाता है।
    प्रबोधिनी एकादशी का व्रत पापों के नाश एवं मनोकामना पूर्ति हेतु रखा जाता है। देवशयनी एकादशी में देव शयन करते हैं और इस दिन देव उठते हैं।(क्रमशः)

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