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व्रत क्यों और किसलिए(भाग-3)

>> Thursday, March 24, 2011

      
   
   
    व्रत धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना।  एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए। पूर्व अंक की चर्चा को आगे  बढ़ाते हैं। पिछले अंक में प्रबोधिनी एकादशी की चर्चा की थी। अब अन्य व्रतों की चर्चा करेंगे।
    पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।  यह व्रत सन्तानदायी है। इस व्रत के रखने से पुत्र प्राप्ति या सन्तान सुख में वृद्धि होती है।  यदि पति व पत्नी दोनों मिलकर विधि-विधान से व्रत रखते हैं तो शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है। इस व्रत से सन्तान सुख के साथ-साथ शान्ति, विद्या, यश और धन की प्राप्ति होती है।
    देवशयनी एकादशी का व्रत मनोकामना पूर्ति, सुख व समृद्धि पाने के लिए रखा जाता है। इस व्रत के करने से पापों का नाश होता है और ईश्वर की कृपा संग पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। विष्णु जी ने पराक्रमी शंखासुर का नाश किया था और थककर क्षीरसागर में जाकर आराम के लिए शयन किया था। विष्णु जी शेष-शय्या पर चार मास तक शयन करते हैं। सन्यासी लोग इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं और व्रत रखते हैं।
    निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। इस दिन पानी पीना वर्जित है अर्थात्‌ निर्जल रहकर व्रत किया जाता है। यह व्रत विधिपूर्वक करने से सम्पूर्ण 14 एकादशी का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत को रखकर द्वादशी में जलयुक्त कलश का दान करके भोजन करना चाहिए। इससे आयु वृद्धि एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है।
    मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस व्रत से पाप  व दुःखों से मुक्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है। व्रती को नित्य कर्म से निवृत्त होकर श्रीराम का विधि-विधान से पूजन करना चाहिए।
    पापमोचिनी एकादशी का व्रत चैत्रा कृष्ण एकादशी को किया जाता है। इस व्रत के रखने से पापों से मुक्ति, शान्ति एवं ब्रह्महत्या के पाप से भी मुक्ति मिलती है। विधि विधान से इस दिन भगवान्‌ विष्णु का पूजन करना चाहिए।
    षटतिला एकादशी का व्रत माघ कृष्ण एकादशी को किया जाता है। इस व्रत के करने से दरिद्रता से मुक्ति मिलती है और धनवैभव  संग सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत से समस्त भौतिक सुख-साधनों की प्राप्ति होती है।
    कामदा एकादशी का व्रत चैत्र शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से पापों का क्षय होता है। मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और ब्रह्महत्या जैसे घोर पाप से भी मुक्ति मिल जाती है।
    वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख कृष्ण एकादशी के दिन किया जाता है। इस व्रत के करने से इह और परलोक दोनों सुधरते हैं। इस व्रत के दिन क्रोध नहीं करना चाहिए एवं समस्त कुकर्मों से दूर रहना चाहिए।
    अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत में विष्णु जी की उपासना विधि-विधान से करनी चाहिए। पापों से मुक्ति के साथ-साथ कायरता से मुक्ति मिलती है। सभी प्रकार के पापकर्मों से मुक्ति मिलती है।
    योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत के करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति के साथ-साथ गोहत्या के पाप से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन विधि-विधान से विष्णु उपासना करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
    कामिका या पवित्रा एकादशी का व्रत श्रावण कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, भ्रूण हत्या, पापों से मुक्ति के साथ-साथ नरकलोक से मुक्ति मिलती है और अच्छी योनि में जन्म होता है।
    अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत को करने से दैहिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।  इस व्रत से पूर्व जन्म की बाधाएं तक दूर हो जाती है।
        पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी का व्रत भाद्रपद शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत के करने से व्रती की मनोरथ सिद्धि के साथ-साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।  इस दिन लक्ष्मी जी एवं विष्णु जी की उपासना विशेष फलदायी है। इस दिन विष्णु शय्या पर करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते है। (क्रमशः)





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