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क्‍या कुण्‍डली का आठवां भाव अशुभ होता है?

>> Sunday, March 6, 2011


         
   
    आठवां भाव बाधा, अड़चन, असफलता, प्रतिरोध, षडयन्‍त्र, कपट, कुचक्र, रोग, मृत्‍यु एवं इस तरह की अशुभता का प्रतीक है।
    आठवें भाव का स्‍वामी नवम् भाव से द्वादश होने के कारण सदैव अशुभ होता है क्‍योंकि वह भाग्‍य की हानि करता है।
    अष्‍टमेश नवम्बर भाव के समस्‍त सुखों(भाग्‍य, धर्म, पिता, शुभकार्य आदि) की हानि करता है जोकि जातक की महाहानि है।
    आठवें भाव का स्‍वामी उदासीन होता है और उसकी विशेष प्रवृत्ति अशुभ करने की होती है। यदि अष्‍टमेश लग्‍नेश या त्रिकोणेश भी हो तो उसमें शुभता आ जाती है और यदि वह अशुभ है तो शुभ फल की आशा की जा सकती है।
    अष्‍टमेश यदि तीन, छह ग्‍यारहवें भाव का भी स्‍वामी है तो वह अति अशुभ हो जाता है। ऐसी स्थिति वृष, कन्‍या, वृश्चिक एवं मीन लग्‍न में बनती है।
    सूर्य या चन्‍द्र यदि अष्‍टमेश है तो वे अशुभ्‍ा नहीं होते हैं ऐसा पाराशर का मत है। यह स्थिति धनु एवं मकर लग्‍न में बनती है। रोग विचार में यह तथ्‍य व्‍यवहार में सत्‍य नहीं होता है। जो ग्रह केन्‍द्र या त्रिकोण भाव के स्‍वामी होते हैं, वे योगकारक बन जाते हैं।
   

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