सन्तानहीनता हो तो क्या करें?
>> Saturday, March 5, 2011
यदि चिकित्सीय दृष्टि से सब ठीक हो और सन्तान न हो रही हो तो नागपंचमी व्रत करके मनोकांक्षा पूर्ण की जा सकती है।
प्रत्येक मास की शुक्ल्पक्ष पंचमी को नागपंचमी का व्रत होता है और एक वर्ष पर्यन्त चलता है।
वैसे तो नागपंचमी श्रावण शुक्ल पंचमी को प्रशस्त मानी गई है। यह व्रत किसी भी मास से प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रत्येक मास में शुक्लपक्ष पंचमी के दिन पंचमुख नाग रजत या आटे को बनाकर उसका पूजन किया जाता है।
पहले मास में अन्नत, दूसरे मास में वासुकी,, तीसरे मास में शेष, चतुर्थ मास में पद्मनाभ, पांचवे मास में कंबलक, छठे मास में कर्कोटक, सातवें मास में अश्वतर, आठवें मास में धृतराष्ट्र, नौवें मास में शंखपाल, दसवें मास में कालीय, ग्याहरवें मास में तक्षक और बारहवें मास में कपिल नाम से उस नाग का पूजन करना चाहिए।
प्रत्येक पंचमी को ब्राह्मण को खीर का भोजन करवाकर श्रद्धानुसार दक्षिणा देनी चाहिए।
इस प्रकार एक वर्ष तक व्रत करके नारायण बली पूर्वक नागबलि की विधि करें। स्वर्ण, रजत, ताम्र नाग का दान करें और व्रत का उद्यापन करें। इस व्रत से नागवध या सर्पशाप को दोष दूर होकर पुत्र सन्तति की प्राप्ति होती है।
प्रत्येक मास की शुक्ल्पक्ष पंचमी को नागपंचमी का व्रत होता है और एक वर्ष पर्यन्त चलता है।
वैसे तो नागपंचमी श्रावण शुक्ल पंचमी को प्रशस्त मानी गई है। यह व्रत किसी भी मास से प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रत्येक मास में शुक्लपक्ष पंचमी के दिन पंचमुख नाग रजत या आटे को बनाकर उसका पूजन किया जाता है।
पहले मास में अन्नत, दूसरे मास में वासुकी,, तीसरे मास में शेष, चतुर्थ मास में पद्मनाभ, पांचवे मास में कंबलक, छठे मास में कर्कोटक, सातवें मास में अश्वतर, आठवें मास में धृतराष्ट्र, नौवें मास में शंखपाल, दसवें मास में कालीय, ग्याहरवें मास में तक्षक और बारहवें मास में कपिल नाम से उस नाग का पूजन करना चाहिए।
प्रत्येक पंचमी को ब्राह्मण को खीर का भोजन करवाकर श्रद्धानुसार दक्षिणा देनी चाहिए।
इस प्रकार एक वर्ष तक व्रत करके नारायण बली पूर्वक नागबलि की विधि करें। स्वर्ण, रजत, ताम्र नाग का दान करें और व्रत का उद्यापन करें। इस व्रत से नागवध या सर्पशाप को दोष दूर होकर पुत्र सन्तति की प्राप्ति होती है।
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