भाग्य किए कर्मों का परिणाम है!
>> Thursday, March 31, 2011
भाग्य पूर्वजन्मों के कर्मों के लेखाजोखा का शेष शुभकर्मों का है तो भाग्य अच्छा होता है और जन्म भी ऐसे परिवार में होता है जिसमें जीवन में सारे भौतिक सुख-साधन उपलब्ध होते हैं और जीवन उन्नति पथ पर अग्रसर रहता है। इसके विपरीत यदि पूर्वजन्मों के कर्मों का लेखाजोखा शेष में अशुभ कर्म दर्शाता है तो दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड्ता है और जन्म भी ऐसे परिवार में होता है जहां अभाव व संघर्ष अधिक होता है।
यह जान लें कि परिवार का प्रत्येक सदस्य एक दूजे को प्रभावित करता है। वैसे भी यदि एक से अधिक लोग एक स्थान पर रहते हैं तो वे परस्पर एक दूजे को प्रभावित करते हैं। अच्छी प्रवृत्ति हो तो शुभ प्रभाव और दुष्प्रवृत्ति हो तो अशुभ प्रभाव पड़ता है। किसी भी सदस्य का भाग्य परस्पर जुड़ा रहता है और एक दूजे को प्रभावित करता है।
संयोग से किसी सदस्य का भाग्य अच्छा नहीं है तो वह दूसरे अच्छे भाग्य वाले सदस्य को भी प्रभावित करता है। प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करता है। जब पूरा परिवार संघर्ष करता है या परेशान रहता है तो सभी की कुण्डली में समय खराब चल रहा होता है, ऐसा देखने में आता है। यदि एक व्यक्ति विशेष के लिए सभी पारिवारिक सदस्यों की कुण्डली में समय खराब चल रहा हो तभी उसका अनिष्ट अधिक होता है। यदि उसका समय खराब चल रहा है और अन्य सदस्यों की कुण्डली में समय उसके लिए प्रतिकूल नहीं है तो कम परेशानी या अनिष्ट की आशंका की जा सकती है। अधिक अनिष्ट तभी होता है, जब सबकी कुण्डली में उसके लिए समय खराब चल रहा हो। पुरुषार्थ से ही भाग्य फलीभूत होता है, पुरुषार्थ नहीं तो भाग्य भी सुप्त रहता है। क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, कर्म है तो फल भी होगा।
कुण्डली में लग्न शरीर है, सूर्य आत्मा एवं चन्द्रमा मन है। ज्योतिष भाग्यवादी नहीं बनाता है। कुण्डली कर्मों के लेखेजोखे का सूचना पत्र है। इसमें जो किया है उसका क्या फल होगा यह अंकित होता है। दैवज्ञ कितना इसको बांच पाता है यह उसकी योग्यता एवं परमशक्ति द्वारा प्राप्त आशीष पर निर्भर है। उसकी इच्छा होगी तो दैवज्ञ उस संकेत को समझ जाएगा और आपको सुमार्ग दिखा देगा। आपके आत्मबल को बढ़ा देगा जिससे आप कठिन से कठिन परिस्थिति से स्वयं को निकालकर अपना पथ प्रशस्त कर सकें।
उपाय से भाग्य नहीं बदलता है। उपाय तो आपके मार्ग को सहज बना देते हैं। वर्षा को आप नहीं रोक सकते हैं परन्तु छाता लेकर पूर्णतया भीगने से बच सकते हैं।
परिवार के प्रत्येक सदस्य का सम्बन्ध उसके वर्तमान एवं पूर्व जन्म से अवश्य होता है। कई बार बच्चा जन्म लेते ही मर जाता है और कई बार शिक्षा के बाद नौकरी करके और विवाह के लिए रिश्ता करने के उपरान्त अचानक मृत्यु को पा जाता है। यह प्रभु द्वारा दिया गया दण्ड एवं परस्पर एक दूजे के कर्मों के हिसाब-किताब को बराबर करने के लिए होता है। सृष्टि का रचयिता उसे चलाने के लिए अपनी अदालत से प्रत्येक को उसके कर्मों के अनुसार दंड देकर उसका सौभाग्य या दुर्भाग्य बनाता है।
कुण्डली के बारह भाव परिवार के किसी न किसी सदस्य के संकेतक हैं।
पहला भाव स्वयं के विषय में बताता है। दूसरा भाव आर्थिक स्थिति के विषय में बताता है। तीसरा भाव अनुजों अर्थात् छोटे भाई-बहिनों एवं चचेरे भाई-बहिनों व सलज के विषय में भी बताता है। चौथा भाव माता एवं सास का है। पांचवा भाव संतान, छोटे साले व सालियों, भाभी व दादा का द्योतक है। छठा भाव मामा व ननिहाल से संबंधित होता है। सातवां भाव पत्नी एवं भागीदार का होता है। आठवां भाव ससुराल एवं नौवां पिता व बड़े साले-सालियों के अलावा छोटी भाभी का भी होता है। दसवां भाव भी पिता के अलावा सास का होता है। ग्याहरवां भाव से बड़े भाई व बहिन, बुआ, चाचा का विचार होता है। बारहवें भाव से खर्च, दैविक शक्ति, शयन सुख एवं नाना से संबंधित होता है।
पूर्व जन्मों के कारण कई प्रकार के ऋण मिल जाते हैं जिनके कारण कई कार्य नहीं बनते हैं। व्यक्ति बहुत बीमार रहता है और चाहकर भी शरीर के कारण जीवन में सफल नहीं हो पाता है। कई प्रकार के ऋण होते हैं जिनके कारण व्यक्ति वर्तमान में सुखी नहीं रहता है, आशानुकूल सफलता नहीं पाता है। परिवार के किसी सदस्य की कुण्डली में ऋण है तो वह पूरे परिवार के भाग्य को प्रभावित करता है।
ऋण से मुक्ति न हो तो वे पीड़ी दर पीड़ी आगे बढ़ते जाते हैं। ऋण भाग्य को बिगाड़ देते हैं। भाग्य अनुकूलता के लिए ऋण मुक्ति आवश्यक है। ऋण मुक्ति के लिए ऋणों को जानना आवश्यक है। अत: कल ऋणों की चर्चा और उनसे मुक्ति के उपाय की चर्चा करेंगे।(क्रमश:)
यह जान लें कि परिवार का प्रत्येक सदस्य एक दूजे को प्रभावित करता है। वैसे भी यदि एक से अधिक लोग एक स्थान पर रहते हैं तो वे परस्पर एक दूजे को प्रभावित करते हैं। अच्छी प्रवृत्ति हो तो शुभ प्रभाव और दुष्प्रवृत्ति हो तो अशुभ प्रभाव पड़ता है। किसी भी सदस्य का भाग्य परस्पर जुड़ा रहता है और एक दूजे को प्रभावित करता है।
संयोग से किसी सदस्य का भाग्य अच्छा नहीं है तो वह दूसरे अच्छे भाग्य वाले सदस्य को भी प्रभावित करता है। प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करता है। जब पूरा परिवार संघर्ष करता है या परेशान रहता है तो सभी की कुण्डली में समय खराब चल रहा होता है, ऐसा देखने में आता है। यदि एक व्यक्ति विशेष के लिए सभी पारिवारिक सदस्यों की कुण्डली में समय खराब चल रहा हो तभी उसका अनिष्ट अधिक होता है। यदि उसका समय खराब चल रहा है और अन्य सदस्यों की कुण्डली में समय उसके लिए प्रतिकूल नहीं है तो कम परेशानी या अनिष्ट की आशंका की जा सकती है। अधिक अनिष्ट तभी होता है, जब सबकी कुण्डली में उसके लिए समय खराब चल रहा हो। पुरुषार्थ से ही भाग्य फलीभूत होता है, पुरुषार्थ नहीं तो भाग्य भी सुप्त रहता है। क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, कर्म है तो फल भी होगा।
कुण्डली में लग्न शरीर है, सूर्य आत्मा एवं चन्द्रमा मन है। ज्योतिष भाग्यवादी नहीं बनाता है। कुण्डली कर्मों के लेखेजोखे का सूचना पत्र है। इसमें जो किया है उसका क्या फल होगा यह अंकित होता है। दैवज्ञ कितना इसको बांच पाता है यह उसकी योग्यता एवं परमशक्ति द्वारा प्राप्त आशीष पर निर्भर है। उसकी इच्छा होगी तो दैवज्ञ उस संकेत को समझ जाएगा और आपको सुमार्ग दिखा देगा। आपके आत्मबल को बढ़ा देगा जिससे आप कठिन से कठिन परिस्थिति से स्वयं को निकालकर अपना पथ प्रशस्त कर सकें।
उपाय से भाग्य नहीं बदलता है। उपाय तो आपके मार्ग को सहज बना देते हैं। वर्षा को आप नहीं रोक सकते हैं परन्तु छाता लेकर पूर्णतया भीगने से बच सकते हैं।
परिवार के प्रत्येक सदस्य का सम्बन्ध उसके वर्तमान एवं पूर्व जन्म से अवश्य होता है। कई बार बच्चा जन्म लेते ही मर जाता है और कई बार शिक्षा के बाद नौकरी करके और विवाह के लिए रिश्ता करने के उपरान्त अचानक मृत्यु को पा जाता है। यह प्रभु द्वारा दिया गया दण्ड एवं परस्पर एक दूजे के कर्मों के हिसाब-किताब को बराबर करने के लिए होता है। सृष्टि का रचयिता उसे चलाने के लिए अपनी अदालत से प्रत्येक को उसके कर्मों के अनुसार दंड देकर उसका सौभाग्य या दुर्भाग्य बनाता है।
कुण्डली के बारह भाव परिवार के किसी न किसी सदस्य के संकेतक हैं।
पहला भाव स्वयं के विषय में बताता है। दूसरा भाव आर्थिक स्थिति के विषय में बताता है। तीसरा भाव अनुजों अर्थात् छोटे भाई-बहिनों एवं चचेरे भाई-बहिनों व सलज के विषय में भी बताता है। चौथा भाव माता एवं सास का है। पांचवा भाव संतान, छोटे साले व सालियों, भाभी व दादा का द्योतक है। छठा भाव मामा व ननिहाल से संबंधित होता है। सातवां भाव पत्नी एवं भागीदार का होता है। आठवां भाव ससुराल एवं नौवां पिता व बड़े साले-सालियों के अलावा छोटी भाभी का भी होता है। दसवां भाव भी पिता के अलावा सास का होता है। ग्याहरवां भाव से बड़े भाई व बहिन, बुआ, चाचा का विचार होता है। बारहवें भाव से खर्च, दैविक शक्ति, शयन सुख एवं नाना से संबंधित होता है।
पूर्व जन्मों के कारण कई प्रकार के ऋण मिल जाते हैं जिनके कारण कई कार्य नहीं बनते हैं। व्यक्ति बहुत बीमार रहता है और चाहकर भी शरीर के कारण जीवन में सफल नहीं हो पाता है। कई प्रकार के ऋण होते हैं जिनके कारण व्यक्ति वर्तमान में सुखी नहीं रहता है, आशानुकूल सफलता नहीं पाता है। परिवार के किसी सदस्य की कुण्डली में ऋण है तो वह पूरे परिवार के भाग्य को प्रभावित करता है।
ऋण से मुक्ति न हो तो वे पीड़ी दर पीड़ी आगे बढ़ते जाते हैं। ऋण भाग्य को बिगाड़ देते हैं। भाग्य अनुकूलता के लिए ऋण मुक्ति आवश्यक है। ऋण मुक्ति के लिए ऋणों को जानना आवश्यक है। अत: कल ऋणों की चर्चा और उनसे मुक्ति के उपाय की चर्चा करेंगे।(क्रमश:)
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