भाग्य किए कर्मों का परिणाम है!(भाग-2)
>> Friday, April 1, 2011
आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, संघर्ष अधिक करना पड्ता है, राज्य भय सताता है, निर्दोष होते हुए भी दण्ड मिलता है तो आप स्वऋण से परेशान हैं। आपका पांचवा भाव निर्बल या अशुभ हो सकता है अर्थात् इस भाव में पापी ग्रह स्थित हो सकते हैं। इसका उपाय यह है कि कुटुम्ब में जहां तक रक्त का सम्बन्ध ज्ञात हो सबसे बराबर बराबर भाग रुपए लेकर हवन कराने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है और उक्त परेशानियों से मुक्ति मिलती है। हरविंश पुराण के नियमित पाठ से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है। सूर्य उपासना भी लाभकारी है।
माता का ध्यान न रखना, उनका अपमान करना, सन्तान लाभ के उपरान्त उन्हें बेघर कर देने से मातृ ऋण होता है। यह ऋण चौथे भाव में केतु या पापग्रह हो तभी होता है। इसके होने से धन बिना बात खर्च होता है, किसी से सहायता नहीं मिलती है, सभी प्रयास निष्फल हो जाते हैं, सर्वाधिक धन रोग व ऋण चुकाने पर खर्च होता है और सदैव असन्तोष व अशान्ति रहती है। यदि आपके साथ भी ऐसा है तो आप मातृ ऋण से परेशान है, इससे मुक्ति पाकर ही आप उक्त कष्टों से मुक्त हो सकेंगे। माता की सेवा करने से, उनकी देखभाल करके और उनका सम्मान करके इस दोष से मुक्त हो सकते हैं। शिव उपासना करने से भी लाभ होता है। कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य बराबर भाग में रुपए लेकर उसकी चांदी लेकर एक ही दिन में सूर्यास्त से पूर्व बहते पानी में बहाने पर इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
यदि आप सफल हो जाते हैं और तुरन्त सबकुछ समाप्त हो जाता है या असफलता का पुन: मुख देखना पड़ता है, सदैव दु:ख से घिरे रहते हैं और सुख पास नहीं फटकता है, मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। यह सब युवावस्था में ही भोगना पड़ता है। पहले, दूसरे, तीसरे एवं आठवें व ग्यारहवें भाव में पापग्रह राहु या केतु हों तो सम्बन्धी ऋण होता है। कुटुम्ब के सदस्यों से धन बराबर भाग में एकत्र करके किसी वैद्य को दान में देने से अथवा उन पैसों से धर्मार्थ औषधालय खोलने या मुफ्त दवाईयां बांटने से इस दोष से मुक्ति मिलती है। मंगल उपासना या हनुमान उपासना करने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है। भाईयों से अथवा कुटुम्ब के लोगों से अच्छे सम्बन्ध रखने से भी दोष में कमी आती है।
शेष ऋणों की चर्चा कल करेंगे। (क्रमश:)
माता का ध्यान न रखना, उनका अपमान करना, सन्तान लाभ के उपरान्त उन्हें बेघर कर देने से मातृ ऋण होता है। यह ऋण चौथे भाव में केतु या पापग्रह हो तभी होता है। इसके होने से धन बिना बात खर्च होता है, किसी से सहायता नहीं मिलती है, सभी प्रयास निष्फल हो जाते हैं, सर्वाधिक धन रोग व ऋण चुकाने पर खर्च होता है और सदैव असन्तोष व अशान्ति रहती है। यदि आपके साथ भी ऐसा है तो आप मातृ ऋण से परेशान है, इससे मुक्ति पाकर ही आप उक्त कष्टों से मुक्त हो सकेंगे। माता की सेवा करने से, उनकी देखभाल करके और उनका सम्मान करके इस दोष से मुक्त हो सकते हैं। शिव उपासना करने से भी लाभ होता है। कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य बराबर भाग में रुपए लेकर उसकी चांदी लेकर एक ही दिन में सूर्यास्त से पूर्व बहते पानी में बहाने पर इस ऋण से मुक्ति मिलती है।
यदि आप सफल हो जाते हैं और तुरन्त सबकुछ समाप्त हो जाता है या असफलता का पुन: मुख देखना पड़ता है, सदैव दु:ख से घिरे रहते हैं और सुख पास नहीं फटकता है, मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। यह सब युवावस्था में ही भोगना पड़ता है। पहले, दूसरे, तीसरे एवं आठवें व ग्यारहवें भाव में पापग्रह राहु या केतु हों तो सम्बन्धी ऋण होता है। कुटुम्ब के सदस्यों से धन बराबर भाग में एकत्र करके किसी वैद्य को दान में देने से अथवा उन पैसों से धर्मार्थ औषधालय खोलने या मुफ्त दवाईयां बांटने से इस दोष से मुक्ति मिलती है। मंगल उपासना या हनुमान उपासना करने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है। भाईयों से अथवा कुटुम्ब के लोगों से अच्छे सम्बन्ध रखने से भी दोष में कमी आती है।
शेष ऋणों की चर्चा कल करेंगे। (क्रमश:)
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