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सदाचार

>> Sunday, May 1, 2011


निरंहसः पिपृता निरवद्यात्‌।-ऋग्वेद 1.115.6
हे देवों! हमें पाप और दुर्गणों से बचाओ।
पाप से घृणा करनी चाहिए नाकि पापी से। जब सब पाप और दुर्गणों से दूर रहने लगेंगे तो वे सदाचार का पालन ही करेंगे। ऐसे में विवेक सम्मत बुद्धि का अनुसरण होगा। गलतियां होंगी ही नहीं और सदैव सुकार्य होंगे जिसका प्रतिफल ईश्वर दर्शन ही होगा।
दोष मुक्त जीवन जीने से साधना का पथ सरल हो जाता है जिसके प्रतिफल में ईश्वर की कृपा या उनके दर्शन हो जाते हैं और उनका सानिध्य मिलता है।    
कुकृत्य के न बनो कभी दास। सदाचार रखेगा प्रभु पास॥

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