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संयम

>> Wednesday, May 4, 2011

 
श्रृतास इद् वहन्तस्तत्‌ समाशत।-ऋग्वेद 9.83.1
संयमी एवं परिपक्व बुद्धि वाले ही ब्रह्म को पा सकते हैं!
     संयमी कौन है? जो नियमों का पालन जागरूक रहकर करता है। परिपक्व बुद्धि उसी की होती है जो प्राप्त ज्ञान को व्यवहार में लाकर अनुभूत कर लेता है। जो संयमी है और उसकी बुद्धि परिपक्व है वह निश्चय ही अपने परम लक्ष्य ब्रह्म को पा लेता है।
     दूजे शब्दों में संयमित कर्मयोगी अपनी परिपक्व बुद्धि से लक्ष्य को साधने के लिए निरन्तर संलग्न रहता है तो उसे सिद्ध कर ही लेता है।   
संयमी बने कर्म प्रवीण। बजाकर जीत की बीन॥

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