जल तत्त्व की स्थापना के लिए क्या करें?
>> Saturday, May 28, 2011
शरीर के लिए कहा भी जाता है कि यह पंच तत्त्वों से निर्मित है। जल तत्त्व की महत्ता सर्वविदित है। हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में 70 प्रतिशत जल ही होता है। जल प्यास बुझाने के अतिरिक्त बहुत से कार्यों में प्रयोग किया जाता है। जीवन जीने के लिए प्राण वायु के साथ-साथ जल की भी आवश्यकता है। जल एवं वायु के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।
जल तत्त्व की स्थापना के लिए क्या करें, अब इसकी चर्चा करते हैं-
भवन में सवमर्सिबल (मोटर पम्प) तथ हैंडपंप को ईशान, पूर्व तथा उत्तर दिशा में वास्तु पुरुष के मर्म स्थलों को छोड़कर लगाना उचित होता है।
भवन की चारदीवारी के भीतर ईशान कोण में बोरिंग या नल लगाना उचित है।
भवन के ब्रह्म स्थान में नल या बोरिंग नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से गृह स्वामी को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
भवन के आग्नेय कोण में नल या बोरिंग कदापि नहीं लगाना चाहिए, यदि लगाएंगे तो अनेक अशुभ फलों का सामना करना पड़ेगा, शत्रु बढ़ेंगे और शारीरिक एवं मानसिक कष्टों को झेलना पड़ेगा। भवन में रहने वालों का परस्पर सामंजस्य नहीं होता है और वाद-विवाद की स्थिति बनती है। सभी अलग-अलग दिशा में सोचते हैं।
इसी प्रकार दक्षिण दिशा में नल या बोरिंग नहीं लगाना चाहिए वरना घर में रहने वाली स्त्रियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और कष्ट से असन्तोष, कष्ट एवं विवादों को झेलना पड़ता है। शत्रुओं के सताने या भयभीत करने से सदैव मन में असुरक्षा बनी रहती है।
नैऋत्य कोण में बोरिंग या नल होने से घर की महिलाओं में परस्पर बनती नहीं है और उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है।
पश्चिम दिशा में बोरिंग या नल होने पर स्थिर संपत्ति की तो वृद्धि होती है, लेकिन अनेक कष्टों व बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है। मन सदैव परेशान रहता है।
वायव्य कोण में बोरिंग या नल लगाने से परिवार में परस्पर वैचारिक मतभेद होने के कारण सदैव गृहक्लेश बना रहता है। घर की बरकत खतम हो जाती है और आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। परिवार में बंटवारा या टूटने की कगार पर आ जाता है।
भवन या भूखण्ड में जल तत्त्व की स्थापना करते समय उक्त बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
जल तत्त्व की स्थापना के लिए क्या करें, अब इसकी चर्चा करते हैं-
भवन में सवमर्सिबल (मोटर पम्प) तथ हैंडपंप को ईशान, पूर्व तथा उत्तर दिशा में वास्तु पुरुष के मर्म स्थलों को छोड़कर लगाना उचित होता है।
भवन की चारदीवारी के भीतर ईशान कोण में बोरिंग या नल लगाना उचित है।
भवन के ब्रह्म स्थान में नल या बोरिंग नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से गृह स्वामी को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
भवन के आग्नेय कोण में नल या बोरिंग कदापि नहीं लगाना चाहिए, यदि लगाएंगे तो अनेक अशुभ फलों का सामना करना पड़ेगा, शत्रु बढ़ेंगे और शारीरिक एवं मानसिक कष्टों को झेलना पड़ेगा। भवन में रहने वालों का परस्पर सामंजस्य नहीं होता है और वाद-विवाद की स्थिति बनती है। सभी अलग-अलग दिशा में सोचते हैं।
इसी प्रकार दक्षिण दिशा में नल या बोरिंग नहीं लगाना चाहिए वरना घर में रहने वाली स्त्रियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और कष्ट से असन्तोष, कष्ट एवं विवादों को झेलना पड़ता है। शत्रुओं के सताने या भयभीत करने से सदैव मन में असुरक्षा बनी रहती है।
नैऋत्य कोण में बोरिंग या नल होने से घर की महिलाओं में परस्पर बनती नहीं है और उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है।
पश्चिम दिशा में बोरिंग या नल होने पर स्थिर संपत्ति की तो वृद्धि होती है, लेकिन अनेक कष्टों व बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है। मन सदैव परेशान रहता है।
वायव्य कोण में बोरिंग या नल लगाने से परिवार में परस्पर वैचारिक मतभेद होने के कारण सदैव गृहक्लेश बना रहता है। घर की बरकत खतम हो जाती है और आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। परिवार में बंटवारा या टूटने की कगार पर आ जाता है।
भवन या भूखण्ड में जल तत्त्व की स्थापना करते समय उक्त बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
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