उदारता-लक्ष्मी पुरी
>> Friday, June 17, 2011
एक साधु ने अपने सो सकने जितने आकार की झोपड़ी बनाई। उसमें अकेला रहता था। वर्षा की रात में एक साधु कहीं से आया।
उसने उससे जगह मांगी।
झोपड़ी वाले ने कहा-'इसमें सोने की जगह एक के लिए है, पर इसमें दो बैठे रह सकते हैं। आ जाओ। बैठकर रात काटेंगे।'
अभी आधी रात ही कटी थी कि इतने में एक तीसरा साधू कहीं से भीगता हुआ आया। वह भी वर्षा से बचने के लिए आश्रय चाहता था।
झोपड़ी वाले साधू ने फिर कहा-'जगह तो कम है, पर खड़े होकर हम तीनों रात काट सकते हैं। तुम भी आ जाओ।'
तीनों साधू खड़े रहकर वर्षा से बचाव करते रहे।
यदि मन में उदारता हो तो कम साधनों में भी अधिक व्यक्तियों का निर्वाह संभव है। सबको उदार हृदयी होना चाहिए। उदारता से कई कार्य बन जाते हैं। उदारता से कम में अधिक का भाव रहता है। सबका ध्यान रहता है। किसी को कम अधिक देने की बात ही नहीं होती है।
1 comments:
सुंदर सन्देश .इसको कल बगीची कि चर्चा मैं शामिल किया जा रहा है.
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