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भवन और लालकिताब -पं.ज्ञानेश्वर (भाग-3)

>> Monday, May 31, 2010


लाल किताब के द्वारा पूर्व लेख भाग एक व दो में भवन की चर्चा प्रारम्भ करी थी। अब उसे आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि भवन योग किस प्रकार का होगा। लालकिताब जन्मकुंडली में  शनि की स्थिति को देखकर भवन के विषय में बताती है। उसके अनुसार भवन का सीधा सम्बन्ध भवन से होता है। शनि ही भवन बनवाता है और शनि ही भवन को नष्ट करता है। भूतल को नियन्त्रण करने वाला ग्रह शनि ही है। यदि भवन कारक शनि उच्च का होगा तो भवन बनेंगे और नीच का होगा या किसी अन्य ग्रह से पीड़ित होकर प्रभावहीन या नीच का हो रहा है तो भवन बने बनाए नष्ट करता है। भूकम्प या भूचाल आने का सम्बन्ध भी शनि से है। 
यदि शनि प्रथम भाव में हो तो जातक भवन बनाए तो निर्धन हो जाएगा अर्थात्‌ सबकुछ बर्बाद हो जाएगा। सूर्य प्रकाश के स्थान पर अन्धकार, सुख के स्थान पर दुःख होगा। यदि सप्तम भव एवं दशम भाव रिक्त हो ते प्रथम भाव का शनि शुभ फल करेगा और जातक भवन बनाएगा तो भवन ठीक रहेगा।
यदि शनि द्वितीय भाव में हो तो जातक को भवन जैसा बन रहा है बनने दें, जब भी भवन बनेगा उत्तम ही होगा। यहां द्वितीय भाव का सम्बन्ध शनि के तप एवं आशीर्वाद से है। शनि यहां पर शान्त भव से सुखमयी मुद्रा में आकर अपनी माता के साथ प्रसन्नता सहित रहता है। गुरु की सेवा करता है। शुभ फलदायी है। 
यदि शनि तीसरे भाव में हो तो जातक निर्धन ही रहता है। उसका भवन नहीं बन पाता है। कोई न कोई बाधा भवन बनाने में आती रहती है। यदि तीन कुत्तों को जातक घर में रखकर पाले तो मकान बनेगा।
यदि शनि चौथे भाव में हो तो जातक भवन बनाता है। वह भवन उसकी माता के परिवार वालों एवं ससुराल वालों के लिए अच्छा नहीं रहता है। जैसे ही भवन की नींव खुदेगी, मामा के परिवार एवं ससुराल में गड़बड़ प्रारम्भ हो जाएगी और हानि प्रारम्भ हो जाएगी। अतः शनि चतुर्थ को कदापि भवन नहीं बनाना चाहिए।
यदि शनि पांचवे भाव में हो तो जातक भवन बनाएगा तो उसे पुत्रा की हानि उठानी पड़ेगी। यदि बच्चे भवन बनाते हैं तो यह भवन जातक के लिए शुभ रहेगा।यदि जातक को भवन बनाना ही पड़ रहा है तो उसे 48वर्ष की आयु के बाद ही बनाना चाहिए।   भैसां घर पर ले आएं और उसे खिलापिलाकर दाग लगाकर छोड़ दें और उसके बाद भवन बनाएं।
यदि शनि छठे भाव में हो तो जातक भवन बनाए तो 36वर्ष के उपरान्त या 39वर्ष के बाद ही बनाना चाहिए। यदि पहले भवन बनाएगा तो लड़की के रिश्तेदारों को बर्बाद कर देगा।
यदि शनि सातवें भाव में हो तो जातक को बने-बनाए भवन मिलेंगे जो शुभ रहेंगे। यदि भवन बिकने लगें तो सबसे पुराने भवन की पुरानी चौखट या भवन की दहलीज संभालकर रख ले तो उतने ही भवन फिर बन जाएंगे।
यदि शनि आठवें भाव में हो तो जातक जैसे ही भवन बनाना प्रारम्भ करेगा वैसे ही मृत्यु का साया उसके सिर पर मंडराने लगेगा। यह प्रभाव राहु व केतु के शुभाशुभता पर निर्भर है। 
यदि शनि नौवें भाव में हो तो जातक निज आय से भवन बनाना प्रारम्भ कर दे तो निज स्त्राी या मामा के गर्भ में बच्चा हो तो पिता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। जब जातक के तीन भवन बन जाएंगे तो पिता की मृत्यु निश्चित है। 
यदि शनि दसवें भाव में हो तो जब तक जातक भवन नहीं बनाता है तब तक खूब धन रहता है। यदि भवन बनाना प्रारम्भ कर दे तो धन खूब आएगा और जब पूरा भवन बन जाए तो जातक निर्धन हो जाएगा। यदि शनि अशुभ हो तो भवन बीच में ही              अधूरा रह जाएगा।
यदि शनि ग्यारहवें भाव में हो तो जातक को 55वर्ष के बाद ही भवन बनाना चाहिए। कभी भी दक्षिण द्वार वाले भवन में नहीं रहना चाहिए। यदि रहेगा तो रोगी रहेगा और सड़गल कर मरेगा।
यदि शनि बारहवें भाव में हो तो जातक जो भवन बनाएगा तो शुभ रहेगा। भवन बिना बाधा के बन जाएगा। बिना इच्छा के बन जाएगा। चाहे शनि के साथ सूर्य ही क्यों न हो। यदि भवन बन रहा हो तो उसे रोकें नहीं बन जाने दें। सदैव चौकोर भवन बनाएं।
भवन कहां नहीं बनाएं?
   भवन की नींव रखने से पूर्व चन्द्र की वस्तुएं भरकर 43 दिन तक उसे दबाएं। उसके बाद शुभ या अशुभ फल देखें क्योंकि बर्तन दबाने के दिन से प्रारम्भ करके जन्म कुण्डली के जिस भाव में शनि हो तो उस भाव तक की संख्या के दिन तक शनि अपना अच्छा या बुरा प्रभाव अवश्य दिखलाएगा। जैसे रोग, मुकदमा, झगड़ा, कोई झूठा आरोप लगेगा। जब ऐसा होने लगे तो बर्तन को निकालकर नदी या नाले में बहा देंगे तो बुरा असर बन्द हो जाएगा। जातक को भवन ऐसी जगह नहीं बनाना चाहिए। यदि बनाएगा तो कुटुम्ब की बर्बादी का कारण बनेगा। यह भली-भांति जान लें कि भवन नींव डालने के दिन से तीन वर्ष या 18वर्ष तक भवन का प्रभाव अवश्य
दिखलाता है।

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