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आपकी कुण्डली और योग(भाग-2) -पं. यायावर

>> Wednesday, June 9, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व में 12 योगों की चर्चा कर चुके हैं।
तीन सौ ज्योतिष योग
13. शकट योग-यह आकृति योग है। लग्न और सप्तम में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक रोग पीड़ित, बुरे नाखुनों वाला, मूर्ख, गाड़ी चलाकर आजीविका अर्जित करने वाला, निर्धन, मित्राों व आत्मीय जनों से विहीन होता है।
14. विहग योग-यह आकृति योग है। चौथे से दसवें तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक भ्रमणशील, पराधीन, दूत, सुरत से जीविका अर्जित करने वाला, ढीठ व झगड़ालू होता है।
15. वज्र योग-यह आकृति योग है। शुभग्रह लग्न तथा सातवें हों और पापग्रह चौथे व दसवें हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक बचपन व वृद्धावस्था में सुखी, शूर, सुन्दर, निरीह, भाग्यहीन, दुष्ट एवं जनविरोधी होता है।
16. यव योग-यह आकृति योग है। लग्न व सप्तम में पापग्रह हों तथा चौथे व दसवें शुभग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक व्रत, नियम तथा शुभकार्य में संलग्न, मध्यावस्था में सुख, धन व पुत्रा से युक्त, दानी एवं स्थिर बुद्धि होता है।
17. कमल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चारों केन्द्र में हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक ऐश्वर्य तथा गुणों से युक्त, दीर्घायु, यशस्वी, शुद्ध एवं सैकड़ों सत्कर्म करने वाला नृप या नृप सदृश होता है।
18. वापी योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य(पणफर तथा आपोक्लिम भाव) में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
19. वापी पणफर योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य पणफर भावों में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
20. वापी आपोक्लिम योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य आपोक्लिम भाव में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
21. श्रृंगाटक योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह त्रिकोण भाव 1,5,9 में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक युद्धप्रेमी, सुखी, राजवल्लभ, सुन्दर स्त्री युक्त, धनी एवं स्त्री से द्वेष करने वाला होता है।
22. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 2, 6, 10 वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, निर्धन, कृषक, दुःखी, उद्विग्न, बन्धु व मित्रों से युक्त व दास वृत्ति का होता है।
23. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 3, 7, 11वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, चाटुकार, मित्रों से युक्त, लोगों में लोकप्रिय, कृषि कार्य से आजीविका अर्जित करने वाला एवं निर्धनता से दुःखी होता है।
24. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 4, 7, 12वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, चाटुकार, मित्रों से युक्त, लोगों में लोकप्रिय, कृषि कार्य से आजीविका अर्जित करने वाला एवं निर्धनता से दुःखी होता है। 
25. यूप योग-यह आकृति योग है। लग्न से चौथे भाव तक सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक आत्मज्ञानी, यज्ञ कार्य करने वाला, स्त्रीयुक्त, पराक्रमी, व्रत, यम, नियम पर चलने वाला विशिष्ट पुरुष होता है।
26. शर योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चौथे से सप्तम तक स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक तीर बनाने वाला, जेलर, शिकार से धनी, हिंसक तथा बुरे कार्य करने वाला होता है।
अन्य योगों की चर्चा अगले अंक में करेंगे।(क्रमशः)

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