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कुण्डली और योग(भाग-6)-पं. यायावर

>> Wednesday, June 30, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व पांच भागों में 55 योगों की चर्चा कर चुके हैं, अब आगे!
तीन सौ ज्योतिष योग
56. गजकेसरी योग-चन्द्रमा से केन्द्र स्थान 1, 4, 7, 10 में गुरु स्थित हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक तेजस्वी, धन-धान्य से युक्त, मेधावी, गुणी एवं राजप्रिय होता है। जातक केसरी(शेर) सदृश निज शत्रुओं को नष्ट करता है। ऐसा व्यक्ति सभाओं में प्रौढ़ भाषण करने वाला, राजसिक वृत्ति वाला, दीर्घायु, तीव्र बुद्धि, महा यशस्वी और अपने स्वाभाविक तेज से ही दूजों को जीत लेता है। यहां योगकारक ग्रह चन्द्रमा एवं गुरु है। 
गजकेसरी योग कई प्रकार से बनता है, जैसे-
चन्द्रमा एवं गुरु की युति हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक शक्तिशाली, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, गुणवान, धनवान, चंचल मन वाला एवं प्रेम में समान रूप होता है।
चन्द्रमा से चतुर्थ में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक को घर का तथा माता का अच्छा सुख मिलता है। मानसागरी के अनुसार यह योग जातक को घर व माता के सुख से वंचित करता है और दूजों के लिए कार्य करने की मनोवृत्ति देता है।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वह दीर्घायु होता है। परिवार के सदस्यों द्वारा मान्य होता है। वह मितव्ययी होता है। मानसागरी के अनुसार जातक नपुंसक, पीलिया रोग से पीड़ित एवं वैवाहिक सुख प्राप्त करता है।
 चन्द्रमा से दशम में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक मनोनुकूल कार्य करता है। सम्मानित पद एवं धन प्राप्त करता है। प्रबल आदर्शवाद तथा आध्यात्मिकता में रुचि होती है। मानसागरी के अनुसार जातक पत्नी और बच्चों का परित्याग करके सन्यासी या सन्यासी सदृश हो जाता है। यह योग महात्मागांधी की कुण्डली में था।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति पहले भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक देखने में सुन्दर, मित्रों, पति/पत्नी, सन्तान से युक्त होता है। जातक को स्वास्थ्य सुख मिलता हे, सम्मानित  होता है एवं सबको प्रभावित करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति चतुर्थ भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक राजा या मन्त्री होता है, विद्वान एवं उसक घर का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति सप्तम भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक विद्वान, कुशल, व्यवसायी, धनी, वैवाहिक सुख पाने वाला, भाग्यशाली एवं व्यवसाय में साझेदारी से धन प्राप्त करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति नवम भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक प्रतिष्ठित, भाग्यशाली, धनी और सन्तोषी होता है। भाग्य उत्तम होता है। जातक सत्कर्मी एवं धार्मिक कार्य करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति दसवें भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक विद्वान, धनी, अहंकारी, सम्मानित होता है। वह कर्म के क्षेत्र में उच्च पदस्थ एवं आर्थिक रूप से समृद्ध होता है।
57. सुनफा योग-सूर्य के अलावा चन्द्र से दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो सुनफा योग होता है। यहां योगकारक ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि हैं।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक राजा या राजा सदृश होता है। धनी, विख्यात एवं निज बाहुबल से धन उपार्जित करने वाला होता है। 
अन्य फलानुसार जातक धनी, निज भुजाओं से धन अर्जित करने वाला, धार्मिक, शास्त्रज्ञाता, यशस्वी, सुन्दर, गुणवान, शान्त स्वभाव, सुखी, राजा या मन्त्री एवं बुद्धिमान होता है।
यहां एक बार पुनः बता दें कि योग का फल योगकारक ग्रहों की दशा, अन्तर्दशा एवं प्रत्यन्तर दशा में होता है। फल कहते समय इसका भी ध्यान रखना चाहिए।

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