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वास्तु के अनमोल सूत्र-पं जटाशंकर चतुर्वेदी

>> Tuesday, June 29, 2010


     वर्तमान में कौन ऐसा है जो सुख-शान्ति न चाहता हो, सफलता न चाहता हो, धन सम्पन्न न होना चाहता हो, बाधा-रहित जीवन जीना चाहता हो। मेरे अनुसार सभी ऐसा चाहते हैं। आजकल घर बनाते समय वास्तु नियमों का ध्यान गृहस्वामी, कारीगरों, बिल्डरों एवं इंजीनियरों द्वारा रखा जाता है।  शतप्रतिशत वास्तु नियमों का पालन नहीं हो पाता है। लेकिन कुछ वास्तु के अनमोल सूत्र ऐसे हैं जिनको ध्यान में रखा जाए तो जीवन बाधा रहित, सुख-समृद्धि एवं शान्ति सम्पन्न हो सकता है। वास्तु सूत्रों के पालन से घर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।  वास्तु नियमों का ध्यान रखा जाए तो ये स्वतः उत्पन्न हो जाती है और घर में धन, सुख व समृद्धि का वास होने लगता है।
वास्तु के अनमोल सूत्र
     यह जान लें कि उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व(ईशान) अत्यन्त महत्वपूर्ण दिशाएं हैं। ये उन्नतिकारक व धनकारक हैं। अतः इन दिशाओं में पूर्ण स्वच्छता रखी जाए एवं अस्त-व्यस्तता न हो। ये दिशाएं हल्की, साफ एवं खुली होनी चाहिएं। यह स्थान पूजा एवं अध्ययन कक्ष के लिए सर्वोत्तम है।
कुछ भी सेवन करते समय मुख उत्तर-पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।
पूजा करते समय भी मुख उत्तर-पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।
नगदी जिस अलमारी में रखें वह दक्षिण या दक्षिण-पूर्व कोने में होनी चाहिए। अलमारी का मुख सदैव उत्तर की ओर खुलना चाहिए।
सदैव दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए। पूर्व या उत्तरपूर्व की ओर सिर करके विद्यार्थी या पढ़ने वाले बच्चे सो सकते हैं, इससे स्मरण शक्ति अच्छी रहती है।
रसोईघर सदैव दक्षिण या दक्षिणपूर्व में बनाएं। गैस सदैव दक्षिण या दक्षिणपूर्व दिशा में जलाएं। रसोईघर में पानी सदैव उत्तर या उत्तरपूर्व में रखें। किचन में रात्रि में झूठे बर्तन न रखें। गैस के स्लैब पर पानी का प्रबन्ध कदापि नहीं करना चाहिए, वरना घर पर  अधिक क्लेश रहता है और पति-पत्नी के मध्य टकराहट रहती है। यहां तक परिवार का प्रत्येक सदस्य की सोच अलग होती है। 
उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व दिशा जल का सर्वोत्तम स्थान है। इन दिशाओं में खुलापन एवं जल की स्थापना अवश्य करनी चाहिए। आकाश तत्त्व की स्थापना के लिए भी यह सर्वोत्तम स्थान है।   
निराशा उत्पन्न करने वाले चित्रों व पेन्टिग को घर में नहीं लगाना चाहिए।
पूर्व व उत्तर को हल्का एवं खुला रखना चाहिए। भारी समान इन दीवारों के साथ नहीं लगाना चाहिए। यहां स्वच्छता की विशेष आवश्यकता है। ये दिशाएं नीची रखनी चाहिएं।
पश्चिम व दक्षिण दिशा को ऊंचा व भारी रखना चाहिए। इस दिशा की दीवारों के साथ भारी सामान रख सकते हैं।
कांटेदार पेड़ या पौधे घर में नहीं लगाने चाहिएं। ये घर में विवाद, बाधाएं व तनाव उत्पन्न करते हैं। 
तुलसी का पौधा उत्तर या पूर्व मे घर में अवश्य लगाना चाहिए। यह पौधा डेढ़ मीटर से अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए।
पूर्व या पूर्व-उत्तर में शौचालय या जीना कदापि नहीं होना चाहिए।
वास्तु का मुख्य लक्ष्य गृह में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाना है जोकि वास्तु नियमों के पालन से बढ़ायी जा सकती है। सकारात्मकता जीवन में उन्नति लाती है और श्रद्धा भावना व सकारात्मक विचार से इसे बढ़ाया जा सकता है। उक्त अनमोल सूत्रों से सुख-समृद्धि एवं सम्पन्नता बढ़ायी जा सकती है। आप करके देखें और लाभ हो तो दूजों को बताकर लाभ कराएं व प्रशंसा पाएं।

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