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आपकी कुण्डली और योग(भाग-1)-यायावर

>> Monday, June 7, 2010


    एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, 
संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
1. रज्जु योग-यह आश्रय योग है। चर राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक भ्रमण प्रेमी, सुन्दर, धनार्जन के लिए परदेश में जाने वाला और स्वस्थ रहने वाला, क्रूर तथा दुष्ट स्वभाव का होता है। 
2. रज्जु योग-यह आश्रय योग है। चर राशि लग्न हो तथा कई ग्रह चर राशि में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक महत्वाकांक्षी, प्रसिद्ध, यश के भ्रमण करने वाला, यात्राा प्रिय, त्वरित निर्णय लेने वाला,  उसका निर्णय ग्रहणशील, बौद्धिक रूप से सक्रिय, विस्तृत दिमाग वाला, होता है। कभी-कभी परिवर्तनशील स्वभाव वाला, अविश्वसनीय, अनिर्णय, अस्थिर मन, संघर्ष करने वाला और स्थिर सम्पत्ति बनाने में सफलता नहीं मिलती है। 
3. मुसल योग-यह आश्रय योग है। स्थिर राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक मानी, ज्ञानी, धनसम्पत्ति से युक्त, राजप्रिय, विख्यात, अनेक पुत्रा वाला, स्थिर बुद्धि से युक्त होता है।
4. मुसल योग-यह आश्रय योग है। स्थिर राशि लग्न हो एवं कई ग्रह स्थिर राशि में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक मानी, ज्ञानी, धनसम्पत्ति से युक्त, राजप्रिय, विख्यात, अनेक पुत्रा वाला, स्थिर बुद्धि से युक्त होता है। कुछ भी हो कभी-कभी जातक जिद्दी, निर्णय लेने मे असमर्थ तथा परिवर्तन स्वीकार करने में कठिनता महसूस करता है।
5. नल योग-यह आश्रय योग है। द्विस्वभाव राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक हीनांग, या अधिक धनसंचय कर्ता, अत्यन्त कुशल, बन्धुओं से प्रेम करने वाला एवं सुन्दर हाता है।
6. मुसल योग-यह आश्रय योग है। लग्न द्विस्वभाव राशि का हो और कई ग्रह द्विस्वभाव राशि में हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक हीनांग, या अधिक धनसंचय कर्ता, अत्यन्त कुशल, बन्धुओं से प्रेम करने वाला एवं सुन्दर हाता है। उसमें अवसर चूकने की प्रवृत्ति होती है जिस कारण उसे उदासी और निराशा होती है।
7. माला योग-यह दल योग है। सभी शुभग्रह तीन केन्द्र भावों में हो और पापग्रह केन्द्र से अतिरिक्त भावों में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक सुखी, वाहन, वस्त्रा, अन्न, आदि भोग्य सामग्री से युक्त व अनेक सुन्दर स्त्राी से युक्त होता है।
8. सर्पयोग-यह दल योग है। सभी अशुभग्रह तीन केन्द्र भावों में हो और शुभग्रह केन्द्र से अतिरिक्त भावों में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक कुटिल, दुष्ट, निर्धन, दुखी, दीन तथा दूसरों के अन्न जल पर जीवित रहता है।
9. गदा योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह पहले से चौथे भाव तक हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन अर्जन के लिए उद्योग रत्‌, यज्ञ कराने वाला, शास्त्रा तथा गान में प्रवीण और धन व स्वणार्दि रत्नों से परिपूर्ण होता है।
10. शंख योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चौथे से सातवें भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है। 
11. विभुक योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह सात से दसवें भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है।
12. ध्वज योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह दस से पहले भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है।
    अन्य योगों की चर्चा भाग 2 में करेंगे।(क्रमशः)

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