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आपकी कुण्डली और योग (भाग-4)-पं. यायावर

>> Monday, June 14, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व में 44 योगों की चर्चा कर चुके हैं।
तीन सौ ज्योतिष योग
45. शूल योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब तीन भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक प्रखर स्वभाव, आलसी, दरिद्र, हिंसक, समाज से बहिष्कृत, शूर एवं युद्ध में विख्यात होता है।
46. केदार योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब चार भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक उपकारक, किसान, सत्यवादी, सुखी, चंचल स्वभाव वाला एवं धनी होता है। मतैक्य से धनी, कृषि से लाभ, सुस्त, बुद्धिमान, उपकारी, नौकरी से लाभ, जीवन के पूर्वाद्ध में कष्ट एवं उत्तरार्द्ध में कष्ट रहित जीवन, माता-पिता का सुख एवं दीर्घायु होता है। 
47. पाश योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब पांच भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जेल जाने वाला, कार्य में दक्ष, प्रपंची, बहुत बोलने वाला, शील रहित, अनेक सेवक वाला एवं विशाल परिवार वाला होता है। मतैक्य से दूजों से सदैव प्रशंसित, धनोपार्जन में रत, अधिक चतुर, बातूनी, पुत्रवान, जनकल्याण की इच्छा रखता है।  
48. दाम योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब छह भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जनता का उपकार करने वाला, न्याय से धन का उपार्जन करने वाला, महाऐश्वर्यशाली, विख्याता, अनेक पुत्र तथा रत्नों से युक्त, धीर एवं विद्वान होता है।  मतान्तर से उपकारी, उत्तम बुद्धि वाला, विद्य तथा धन से यशस्वी, पूर्वायु में बहुत कष्ट पाने वाला एवं उत्तरायु में सुख भोगने वाला, 36वर्ष तक माता-पिता का सुख भोगने वाला, 42वर्ष के बाद आय के अनेक स्रोत बनते हैं। लोगों के विरोध एवं शत्रुता से जीवन में कष्ट मिलता है।  
49. वीणा(वल्लकी) योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब सात भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक गीत, नृत्य तथा वाद्य का प्रेमी, कुशल, सुखी, धनी, नेता तथा अनेक सेवक से युक्त होता है। बृहत्पाराशर के अनुसार समस्त कार्यों में प्रवीण एवं गायन वादन आदि कलाओं का शौकीन और धनी होता है।  
50. रूचक योग-यह महापुरुष योग है। यदि मंगल अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित होकर केन्द्र में हो तो यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक सुगठित शरीर, धनी, शास्त्रज्ञ, मन्त्रों के जप एवं अभिचार में कुशल, राजा या राजा सदृश, लावण्य  एवं लालिमा युक्त शरीर वाला, शत्राुओं पर विजय पाने वाला, त्यागी,  70वर्ष की आयु पाने वाला, सुखी, सेना और घोड़ों का स्वामी होता है। यहां योगकारक ग्रह मंगल है।
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में मंगल स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में जो व सूर्य या चन्द्रमा बली  न हों तो जो रूचक योग बनता है उसके अनुसार जातक महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।  
51. भद्र योग-यह महापुरुष योग है। यदि बुध अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक का चेहरा सिंह सदृश, गति हाथी सदृश, पुष्ट ऊरू, उन्नत वक्षस्थल एवं बाहु लम्बे, गोल एवं पुष्ट होते हैं। जातक विख्यात, बन्धुजनों का उपकार करने वाला, विपुल प्रज्ञा, यश, धनी, राजा सदृश होता है और अस्सी वर्ष की आयु पाता है। यहां योगकारक ग्रह बुध है। शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार बुध स्व या उच्च राशि का लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो भद्र योग बनता है। लेकिन भद्र योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु बुध की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। यहां एक उदाहरण कुण्डली दे रहे हैं जिसमें भद्र महापुरुष योग है। (क्रमशः)

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