पारिवारिक सुख के लिए क्या करें? - पं. ज्ञानेश्वर
>> Friday, June 18, 2010
अष्टकूट मिलान(वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी) आवश्यक है और ठीक न हो तो भी वैचारिक मतभेद रहता है। इसके अलावा कुंडली मिलान को भी नकारना नहीं चाहिए, अपितु गम्भीरता से लेना चाहिए।
यदि जातक व जातिका की राशियों में षडाष्टक भकूट दोष हो तो दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जातिका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो तो खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है।
मिलान करते समय भकूट, योनि, गण, ग्रहमैत्री पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
नाडी दोष हो तो सन्तान पक्ष्ा में समस्या रहती है, सन्तान होती नहीं है, होती है तो बार बार मर जाती है। नाडी दोष का परिहार न मिले तो अष्टकूट ठीक नहीं है ऐसा समझना चाहिए।
भकूट दोष्ा हो तो परस्पर प्रेम भाव न रहते से ग़हक्लेश रहता है।
नाडी दोष हो तो सन्तान पक्ष्ा में समस्या रहती है, सन्तान होती नहीं है, होती है तो बार बार मर जाती है। नाडी दोष का परिहार न मिले तो अष्टकूट ठीक नहीं है ऐसा समझना चाहिए।
भकूट दोष्ा हो तो परस्पर प्रेम भाव न रहते से ग़हक्लेश रहता है।
यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। पति-पत्नी के गुणों में मिलान उचित न होने पर पारस्परिक मतभेद के कारण गृह क्लेश व आपसी तनाव की संभावना बनती है।
मेलापक में योनिकूट की महत्ता को भी समझना चाहिए। इससे वर और कन्या के काम पक्ष की जानकारी होती है। मेलापक पर पर्याप्त ध्यान न देने से जीवन निष्फल हो जाता है। योनिकूट के मेल खाने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। सर्वविदित है कि प्राणियों में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ये चार प्रवृत्तियां समान रूप से विद्यमान रहती हैं। मैथुन का महत्व आज के युग में अत्यधिक है। कन्या हो या वर, जिस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर पड़ता है। उसका मैथुन स्वभाव उसकी योनि के अनुरूप होता है। मेलापक करते समय यदि इस बात पर विचार किया जाए, तो दोनों का शारीरिक संबंध संतोषजनक रहेगा वरना वैवाहिक जीवन में असंतोष आएगा। आधुनिक युग में शुक्र विशेष प्रभावशाली हो रहा है। इससे भविष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐसे में योनिकूट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, जिस पर ध्यान देना ही चाहिए।
प्राय: 36 में से 18 गुण मिल जाएं तो 50 प्रतिशत मेलापक हो जाता है और दैवज्ञ ठीक बताते हैं। 36 में से 35 गुण वाले मिलान वाले जातक व जातिका पारिवारिक जीवन में दु:खी व तलाक होते देखे गए हैं। यह जान लें कि गुण मिलान ठीक होने के बाद भी यदि तलाक योग व अल्पायु योग, चरित्रहीनता का योग, सन्तान न होने का योग हो तो ये अवश्य घटित होते हैं और पारिवारिक जीवन जीना दूभर हो जाता है।
प्राय: 36 में से 18 गुण मिल जाएं तो 50 प्रतिशत मेलापक हो जाता है और दैवज्ञ ठीक बताते हैं। 36 में से 35 गुण वाले मिलान वाले जातक व जातिका पारिवारिक जीवन में दु:खी व तलाक होते देखे गए हैं। यह जान लें कि गुण मिलान ठीक होने के बाद भी यदि तलाक योग व अल्पायु योग, चरित्रहीनता का योग, सन्तान न होने का योग हो तो ये अवश्य घटित होते हैं और पारिवारिक जीवन जीना दूभर हो जाता है।
निष्कर्षत: पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है और इसे ध्यान से मिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुडली मिलान भी परमावश्यक हैं। बिना दोनों के मिलान के दैवज्ञ को हां नहीं करनी चाहिए कि कुडली मिल गयी। दोनों के साथ अनेक लोग जुडे होते हैं और वे सब परेशान रहते हैं।
2 comments:
Thanks Pt. Gyaneshver ji,
कृपया यह बताये ३५ गुण मिलने पर भी वर-वधू दुःख क्यो पाते है?
@)_चंशे-
क्योंकि गुणमिलान तो किया जाता है परन्तु कुण्डली मिलान ठीक से नहीं किया जाता है। गुण मिलान को ही सबकुछ समझकर मिलान श्रेष्ठ बता दिया जाता है।
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