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वर्षा ऋतुचर्या -डॉ. सत्येन्द्र तोमर, बी.ए.एम.एस, एम.डी.

>> Sunday, June 20, 2010


      वर्षा ऋतु के आते ही वर्षा का जल जब गर्मी से तप्त भूमि पर पड़ता है तो भूमि से भपके छूटते हैं। इन दिनों पाचक अग्नि क्षीण हो जाती है। वर्षा काल में विशेषकर वात दोष कुपित रहता है। पित्त और कफ भी कुपित हो सकते हैं, परन्तु वात दोष प्रधान रूप से कुपित रहता है। 
     गर्मी से राहत मिलने के कारण वर्षा ऋतु सुहावनी लगती है। रिमझिम फुहारें गिरना, बादल गरजना और बिजली चमकना बहुत अच्छा लगता है। मोर तो बादलों की गर्जना सुनकर इतने प्रसन्न हो उठते हैं कि वे नाचने लगते हैं। कोयल की कूक की जगह मेंढकों की र्टर-र्टर सुनाई देने लगती है।
वर्षाकाल तभी सुहावना लग सकता है जब स्वास्थ्य अच्छा और शरीर निरोग हो। इन दिनों में भुट्टे सेंक कर खाए जाते हैं और भजिए खाए जाते हैं। लेकिन तभी खा सकेंगे जब पाचन शक्ति अच्छी हो। यदि अच्छी नहीं होगी तो दस्त, अतिसार आदि की शिकायत हो जाएगी। 
     इस ऋतु में ध्यान देने के लिए सबसे अधिक आवश्क है कि जल शुद्ध हो। इन दिनों में पानी उबाल कर या देखभाल कर पीना चाहिए।
वर्षाकाल में आहार कैसा हो?
     इन दिनों ऐसा आहार नहीं लेना चाहिए जो देर से पचता हो, अपच करता हो। वरना वात कुपित होने से गैस-ट्रबल, पेट फूलना, जोड़ों में दर्द, दमा या श्वास रोग, गठिया आदि की शिकायत हो जाती है। बासी और उष्ण प्रकृति के पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। श्रावण मास में दूध दूषित रहता है इसीलिए श्रावण में दूध और हरी सब्जियां तथा भादों में छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकार हैं। इस ऋतु में छिलके वाली मूंग की दाल में पंचकोल का चूर्ण डालकर खाना हितकारी है। चित्राकोल क्या है? चित्रकोल सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य और चित्रक की छाल को कहते हैं। इन्हें सौ-सौ ग्राम लेकर पीसकर परस्पर मिलाकर सीसी में भरकर रख लेना चाहिए। दाल बनाते समय एक-दो चम्मच या 5-10 ग्राम डाल लेना चाहिए। इस ऋतु में आम व भुट्टे विशेष रूप से खाए जाते हैं। आम खाते समय ध्यान रखना चाहिए कि यह खट्टा न हो, पाल से उतरा हुआ, बदबू वाला और खराब स्वाद का न हो। इस चूसकर खाना चाहिए और ऊपर से मीठा दूध पीना चाहिए। 40दिन तक आम व दूध पीने से शरीर पुष्ट व सुडौल बनता है। दुबले लोगों के लिए यह रामबाण है। बच्चों को अमचूर और इमली की खटाई का सेवन कम ही करना चाहिए।
    इसी प्रकार भुट्टे भी ताजे और सेक कर खाने चाहिएं। नींबू व नमक लगाकर बहुत चबाचबाकर खाना चाहिए। इनको खाकर छाछ पीने से ये जल्दी हजम हो जाते हैं। वर्षाकाल के समाप्त होने पर मच्छर व कीड़े-मकोड़े उत्पन्न होते हैं। ऐसे में संचित पित्त कुपित होने लगता है। इस काल में मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए। पित्त कुपित करने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चहिए। शरीर की सफाई का विशेष ध्यान करना चाहिए। इस काल में चर्म, पीलिया, हैजा, अतिसार आदि रोग होते हैं। बड़ी हरड़ का चूर्ण सेंधा नमक मिलाकर सेवन करना चाहिए। एक दो चम्मच खाकर ऊपर से ठंडा पानी पी लेना चाहिए। यह करने से शरीर स्वस्थ रहता है।

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