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वर्षा विचार और वराहमिहिर -बाबा ज्ञानदेव तपस्वी

>> Friday, July 2, 2010


     आप ने वराहमिहिर का नाम सुना होगा। वराहमिहिर वैदिक ज्योतिष के प्रसिद्ध दैवज्ञ हैं। इन्होंने अपने ग्रन्थ वाराहीसंहिता में वृष्टि  लक्षणं के अन्तर्गत वर्षा का विचार करते हुए बहुत से सूत्र बताएं हैं। इनकी चर्चा इस लेख में करेंगे। इन योगों का व्यवहारिक प्रयोग आप करके देख सकते हैं। विचार करते समय किसी एकाधिक योग जिस प्रकार के हों उसी प्रकार का फल समझना चाहिए। 
     प्रश्नकर्त्ता द्वारा वर्षा का प्रश्न पूछे जाने पर उस समय चन्द्रमा या शुक्र यदि जल राशि कर्क, कुम्भ, मीन, कन्या और मकर के उत्तरार्द्ध में लग्न या केन्द्र में स्थित हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो बहुत वर्षा होती है, जबकि पापग्रह से दृष्ट हो तो थोड़ी वर्षा होती है या दीर्घ अवधि तक वर्षा ही नहीं होती है।
    प्रश्नकर्त्ता जिस समय प्रश्न करता है उस समय यदि वह जल संबंधी द्रव्य को स्पर्श करे या किसी जल संबंधी कार्य में संलग्न हो या प्रश्न काल में कोई जल वाचक शब्द हो तो उससे निःसन्देह कहना चाहिए कि बहुत शीघ्र वर्षा होगी।
    वर्षाकाल(मानसून आने पर) में जिस दिन सूर्यदेव निज कान्ति से दृष्टि को संताप पहुचाने वाले हों, पिघले हुए स्वर्ण सदृश या वैडूर्यमणि के सदृश चिकनी कांति युक्त हों तो उस दिन जल बरसेगा या आकाश के मध्य में जाकर तीक्ष्ण किरणों  से तपें तो उस समय जल अवश्य बरसेगा। 
   जल का स्वाद बदल जाना, गाय के नेत्रा सदृश आकाश का रंग हो जाए, दिशाएं विमल हों, संभर का पसीज जाना, काग के अंड़ों के रंग सदृश मेघ उदय हो, वायु थम जाए या बिल्कुल न बहे, मछलियों का जल में से बार-बार उछलना और मेढकों का बार-बार टर्राना वर्षा के आने का लक्षण है।
    बिल्लियां अपने पंजों से पृथ्वी को कुरेदें, लोहे पर मैल जम जाए और उसमें से कच्चे मांस जैसी गन्ध आए, बच्चे मार्ग में रेत का पुल बांधें तो समझ लें कि ये सब लक्षण वर्षा के आने के हैं।
    समस्त पर्वत अंजन राशि के सदृश रंग वाले हो जाएं, उनकी कंदराओं में बाफ भर जाए और चन्द्रमा का परिवेष कुक्कुट के नेत्रा के रंग सदृश हो जाए तो वर्षा होगी। 
    बिना किसी उपद्रव के चींटियों का अपने अंडों को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर ले जाना, सर्पों का मैथुन करना और वृक्षों पर चढ़ना, गायों का उछलना-कूदना वर्षा के आने का लक्षण है। 
     वृक्षों के ऊपर गिरगट चढ़कर आकाश की ओर देखे और गायें भी ऊपर की ओर दृष्टि उठाकर सूर्य को देखें तो शीघ्र ही वर्षा होगी। 
    जब पशु गृह से बाहर जाने की इच्छा न करे और कान व खुरों को कंपायमान करते रहें और कुत्ते भी इनकी तरह करें तो कहना चाहिए कि वर्षा होगी। 
   जब घरों की छतों पर कुत्ते बैठें या निरन्तर आकाश की ओर देखें और जब दिन के समय ईशानकोण में बिजली चमके तो अधिक वर्षा से पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। 
    जब तोते या कबूतर के नेत्र सदृश चन्द्रमा का रंग हो जाए या शहत के सदृश रंग हो और आकाश में दूसरा चन्द्रमा दिखायी दे तो समझना चाहिए कि शीघ्र जल बरसेगा।
    रात्रि में बिजली की कड़कड़ाहट हो, दिन रक्त सदृश बिजली की रेखा दीख पड़े और हवा आगे से शीतल हो तो वह समय  वर्षा होने का है।
    लताओं के नए पत्ते आकाश की ओर उठ जाएं, पक्षीगण जल या धूरी से स्नान करें और सर्पादि, कीड़े-मकोडे तृणों की नोक पर चढ़कर बैठें तो शीघ्र वर्षा होगी। 
    सूर्य के उदयास्त के समय इन्द्रधनुष, परिध, दूसरा सूर्य, दण्डाकार या बिजली सदृश परिवेष प्रकाशित हो तो शीघ्र जल बरसेगा।
    सूर्य के उदयास्त के समय यदि आकाश का रंग तीतर के पंखों के सदृश हो जाए और पक्षीगण आनंदित होकर कलरव करें तो मेघ शीघ्र जल बरसाता है। 
    वर्षाकाल में चन्द्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर शुक्र से सप्तम राशि में या शनि से नवम, पंचम  या सप्तम राशि में हो तो वर्षा होने का लक्षण है।  
    ग्रहों के उदयास्तकाल में मंडल संक्रमण और समागम होने पर और पक्षक्षय में, अयन के अन्त में, सूर्य के आर्द्रा में जाने पर बहुधा वर्षा होती है।
    बुध-शुक्र के समागम से, बुध-गुरु के समागम से, बाल गुरु और शुक्र के संगम से जल बरसता है। यदि शुभग्रह की दृष्टि न होकर शनि व मंगल की युति या दृष्टि हो  तो अग्नि का भय होता है। 
    जब सूर्य का अवलम्बन करने वाले ग्रह सूर्य के पूर्व में भी पश्चिम में रहें तो वे पृथ्वी को समुद्र सदृश कर देते हैं। 
    ये लक्षण वर्षा विचार बताते हैं।

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