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स्वास्थवर्धक दिनचर्या-डॉ.सत्येन्द्र तोमर बी.ए.एम.एस., एम.डी.

>> Sunday, July 4, 2010


           स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या हो तो आप स्वस्थ रहेंगे यह सत्य है। स्वस्थ शरीर कौन नहीं चाहता है? किन्तु व्यस्त जीवन में इसकी देखभाल के लिए किसी के पास समय नहीं है। आप अपनी दिनचर्या को ध्यान से विश्लेषित करेंगे तो पाएंगे कि चौबीस घन्टे में से 10मिनट भी इस शरीर के लिए आपके पास नहीं है। ऐसे में स्वास्थ्य की कामना करना व्यर्थ है। स्वस्थ्य रहने के लिए दिनचर्या भी स्वास्थ्यवर्धक होनी चाहिए। इसके लिए आपको अधोलिखित नियमों का पालन करना चाहिए-
नींद हमारे जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। यदि आप रात्रि में गहन नींद नहीं लेते हैं तो समझ लें आपका दिन बेकार सा ही बीतेगा। रात्रि में जल्दी सोएं और प्रातः जल्दी उठें। प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठें।
सर्वप्रथम कुल्ला करके खाली पेट तांबे के बर्तन में रखा आधा लीटर जल पीएं। इसके बाद शौच जाएँ। प्रतिदिन नियमित समय पर शौच जाएँ। कब्ज रहने पर भी शरीर में स्फूर्ति नहीं रहती है।
शौच के उपरान्त अल्पतम एक घण्टा व्यायाम करें, इतना नहीं तो कम से कम 15मिनट तो अवश्य दें!
दो भोजन (दोपहर व रात्रि) के मध्य कुछ न खाएँ। पेट में एक भोजन पड़ा हो और दूसरा फिर डोलेंगे तो बीमार पडेंगे। दो भोजनों के मध्य यदि भूख लगे तो सूप, सब्जी, सलाद का रस, मौसमी फल आदि ले सकते हैं। भोजन एक निश्चित समय पर खाने की आदत डालें।
भोजन को पचाने के लिए अग्नि चाहिए और पानी अग्नि को बुझाता है। अतः कभी भी भोजन के साथ पानी न पिएं। निरोग रहना चाहते हैं तो भोजन और पानी को अलग कर देने से भूख की कमी, वायु-विकार, अपच एवं जल्द बुढ़ापा (झुर्री पड़ना) आदि कष्ट दूर होते हैं।
बहु व्यंजन का सेवन करने वाले अधिकतर रोगी रोगी रहते हैं। अतः भोजन में कम से कम व्यंजन लें।
स्वस्थ एवं निरोगी रहने के लिए सन्तुलित और पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन लें। शरीर में 80 प्रतिशत क्षार और 20 प्रतिशत अम्ल होना चाहिए। वस्तुतः चार भाग क्षार प्रधान और एक भाग अम्ल प्रधान भोजन का सेवन करना चाहिए।
भोजन की मात्रा पर ध्यान दें। अधिक भोजन करने वाला किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। आप अपनी आयु, शरीर, कद, काम के प्रकार, मौसम एवं भोजन के प्रकार के अनुसार उसकी मात्रा निर्धारित करें। भोजन की मात्रा ठीक होने का लक्षण यह है कि उसके सेवन के उपरान्त शरीर हल्का एवं फुर्तीला रहेगा और अगले भोजन के समय अच्छी भूख लगे।
ऋतु के अनुसार भोजन में परिवर्तन लाएँ।
स्वास्थ्य के लिए जितना भोजन का महत्व है उतना ही विश्राम का भी। भोजनोपरान्त आधा घण्टे का विश्राम कर लें।
दिन भर के कार्य के बाद रात्रि में आयु व कार्य के अनुसार कम से कम छह से आठ घण्टे की नींद लें। रात्रि ग्यारह बजे तक सोने की आदत डालें अथवा रात्रि  दस बजे सोकर प्रातः चार बजे अवश्य उठें।
तनाव और ईर्ष्या रहित जीवन जिएँ।
सात्‍विक व पौष्टिक आहार लें क्योंकि इससे भी शरीर स्वस्थ रहेगा। भोजन में अवस्था के अनुरूप परिवर्तन लाएं-किशोरावस्था 13 से 19 में हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिएं। भोजन विटामिनों से भरपूर होना चाहिए। अनाज व पत्ते वाली सब्जियां खूब खानी चाहिएं। इस आयु में खाया गया कैल्शियम जीवन भर हड्डियों को मजबूत रखता है। युवावस्था 20 से 35 में कुसंगति वश लोग एल्कोहल लेते हैं। इससे बचना चाहिए और भरपूर पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। इस आयु में विटामिन बी और सी अधिक मात्रा में लेना चाहिए। प्रौढ़ावस्था 35 से 49 में पाचन संस्थान कमजोर हो जाता है। हल्का भोजन खाना चाहिए। गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। शरीर में जल का उचित सन्तुलन एवं वसा युक्त भोजन लेना चाहिए। चिकनाई से बचना चाहिए। वृद्धावस्था 50 से ऊपर में साग व पत्ते वाली सब्जियां अधिक खानी चाहिए। चिकनाई व गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। अल्पाहारी बनना चाहिए। बहुत से रोग भोजन के कारण आते हैं।
      वस्तुतः स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या से स्वास्थ्य को अपना साथी बनाएं।

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