यह ब्‍लॉग आपके लिए है।

स्‍वागत् है!

आपका इस ब्‍लॉग पर स्‍वागत है! यह ब्‍लॉग ज्‍योतिष, वास्‍तु एवं गूढ वि़द्याओं को समर्पित है। इसमें आपकी रुचि है तो यह आपका अपना ब्‍लॉग है। ज्ञानवर्धन के साथ साथ टिप्‍पणी देना न भूलें, यही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है। आपके विचारों एवं सुझावों का स्‍वागत है।

दुर्घटना क्यों घटी? -रतनलाल शर्मा(ज्योतिष रत्न)

>> Wednesday, July 14, 2010


एक दिन मैं बाहर को जाने के लिए चला तो छत पर खेलती मेरी पुत्री तृप्ति ने मुझे देख लिया। उसने जोर से आवाज लगायी-'पापा! बाजार जा रहे हो तो चाय-पत्ती ले आना।'
मैंने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा-'अच्छा. . .।'
इतना कहकर मैं घर का दरवाजा पार करके बाहर निकला ही था कि जोर से कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी-'धड़ाम...।'
आवाज सुनकर तेजी से वापिस पलटा और घर में घुस गया तो देखा मेरी बेटी सिर के बल नीचे फर्श पर गिरी पड़ी थी। उसका सिर फट चुका था। वह पूर्णतः लहुलुहान हो चुकी थी। कुछ समय के लिए तो लगा कि बालिका के प्राणान्त हो गया है। लेकिन तात्कालिक चिकित्सा मिलने के कारण वह बच गयी।
मैं ज्योतिष का व्यवाहारिक अध्ययन कर रहा हूँ। मैंने सोचा यह घटना जो एक दुर्घटना है क्यों कर घटी। यह सोचकर मैंने अपनी पुत्री की कुण्डली निकाली और उसका अध्ययन करके अपने मन में उभरते इस प्रश्न का उत्तर खोजने लगा।
मेरी पुत्री का जन्म 16.1.1996 को 11.40 प्रातः लालसोट में हुआ। जन्म के समय गुरु की शेष दशा 1वर्ष9मास7दिन थी। इसकी कुण्डली  एवं नवांश कुंडली इस प्रकार है-


जब यह घटना घटी तो मेरी पुत्री की आयु 3वर्ष 1मास 11दिन  4घंटे थी। उस समय बालिका की शनि महादशा में शनि अन्तर में शुक्र प्रत्यन्तर में गुरु सूक्ष्म  में शनि की प्राण दशा चल रही थी। प्राण दशा 28.2.1999 को दोपहर 12बजे से प्रारम्भ होकर दिनांक 2.3.1999 तक थी। यह दुर्घटना 28.2.1999 को सायं 3 बजकर 40 मिनट पर घटी थी।
दुर्घटना क्यों घटी?
जन्म कुंडली में चन्द्र नीच का है और मंगल उच्च का है जोकि नीचभंग राजयोग है। जन्म कुंडली में मीन लग्न है। मीन लग्न के लिए शनि, शुक्र, सूर्य, बुध अशुभ स्थितियां उत्पन्न करते हैं। शनि और शुक्र कुंडली में द्वादश भाव में स्थित हैं जिस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है। शुक्र अष्टमेश है और शनि भी त्रिकेश और त्रिषडायेश दोनो है। स्पष्ट है कि  त्रिकेश, त्रिषडायेश जहां स्थित होते हैं वहां परेशानियां उत्पन्न करते हैं। द्वादश भाव में बैठकर जहां धन का व्यय किया वहीं जातिका को अस्पताल का मार्ग भी दिखलाया। गुरु को केन्द्रत्व दोष लगा हुआ है जिससे उसने भी अपनी सूक्ष्म दशा में अशुभ फल ही दिखाया नाकि उसे रोकने का प्रयास किया। गुरु जन्म नक्षत्र का स्वामी भी है एवं जन्म से पांचवे व तेईसवें नक्षत्र का स्वामी शुक्र है जिन्होंने अशुभ फल देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। शनि तो पापफल देने में लीडर है। जब ये घटना घटी तो शनि की प्राण दशा मौजूद थी और गोचर में नीच राशि मेष में शनि परिभ्रमण करते हुए दुसरे भाव में स्थित था। यह स्थान मस्तक का है और इस पर गोचर का मंगल जोकि तुला राशि में था की पूर्ण दृष्टि पड़ रही थी। यह योग दुर्घटना कारक है और मस्तक पर चोट दे रहा है। गोचर का राहु उस समय सिंह राशि में छठे भाव में स्थित था। सूर्य बारहवें भाव में केतु के साथ स्थित था। ये सब कारण ही है जोकि बालिका के साथ यह दुर्घटना घटी।
बालिका क्यों बची?
जैमिनी सूत्रानुसार कुंडली में दीर्घायु योग है।
कुंडली में कालसर्प योग के घटित होने का अशुभ समय नहीं आया था।
नीचभंग राजयोग कुंडली में है जिससे अशुभ फल शुभफल में बदल गया था।
कुंडली में केदार योग है।
गुरु और शुक्र नवांश में समसप्तक योग बना रहे हैं एवं शनि त्रिकोण भाव में मित्र राशि में स्थित है।
शरीर का स्वामी केन्द्र में स्वराशि में स्थित है।
नवांश कुंडली में चन्द्रमा स्वराशि का होकर बालिका की रक्षा कर रहा है
सुदर्शन पद्वति से दूसरे भाव का स्वामी जोकि दूसरे वर्ष का भी स्वामी है जोकि राहु से दृष्ट है और गोचर में नीच के शनि से मंगल दृष्ट था।
    अतः स्पष्ट है कि इतना सबकुछ होने के कारण  ही बालिका  की मृत्यु नहीं हुई अपितु मृत्युतुल्य कष्ट हुआ और इस दुर्घटना से बालिका बच गयी

0 comments:

आगुन्‍तक

  © Blogger templates Palm by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP