क्या वास्तु सम्मत निमार्ण से भाग्य बदल जाता है? -डॉ.उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर'
>> Friday, July 16, 2010
क्या वास्तु सम्मत निमार्ण से भाग्य बदल जाता है? यह प्रश्न वास्तु के प्रचलन को देखकर सभी के मन में आता होगा। आजकल सभी यह सोचकर वास्तु सम्मत निर्माण करने लगे हैं कि शायद ऐसा करने से भाग्य बदल जाए। प्रत्येक व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है।
कार्य कोई भी करें यदि वो सही ढंग लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है तो अपना फल पूर्ण और शुभ देता है और कार्य यदि अनुचित ढंग से शीघ्रता सहित बिना-सोचे समझें लक्ष्य को ध्यान में रखे बिना किया है तो फल अपूर्ण और अशुभता लिए हुए होता है।
वास्तु शास्त्र रहने या कार्य करने के लिए ऐसे भवन का निर्माण करना चाहता है, जिसमें पंच महाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का सही अनुपात हो अर्थात् एक सन्तुलन हो, इसके अतिरिक्त गुरुत्व शक्ति, चुम्बकीय शक्ति एवं सौर ऊर्जा का समुचित प्रबन्ध हो। जब ऐसा होगा तो उस भवन में रहने वाला व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक क्षमता उन्नत कर सकेगा।
यह जान लें कि वास्तु का सम्बन्ध वस्तु या ऐसे निर्माण से है जिसमें पंचमहाभूत का सही अनुपात हो, जबकि भाग्य का सम्बन्ध कर्म से है।
कर्म संचित होते हैं जोकि भाग्य में परिवर्तित हो जाते हैं।
वर्तमान हमारे भूतकाल के कर्मों पर आधारित होता है।
हमारा भविष्य उन कर्मों पर आधारित होगा जो हम वर्तमान में कर रहे हैं।
कर्म गति टारे नहीं टरे, जैसा बोए वैसा ही पाए। कर्मों का फल शुभाशुभ जैसा भी हो हमें भोगना अवश्य पड़ेगा। इतना है कि सुकर्म कष्ट को कम कर देते हैं।
प्रकृति में जब भी पंच तत्त्चों का असन्तुलन होता है तो प्रकृति में विकृति आ जाती है जिस कारण भूकम्प, ज्वालामुखी का फटना, तूफान, बाढ़, दैवीय आपदा आदि आती है।
सभी जानते हैं कि शरीर पंच तत्त्वों से निर्मित है। जब हमारे शरीर में भोज्य पदार्थों का या बाह्य प्रभावों से पंच महाभूतों का शरीर में असन्तुलन होता है तो शरीर में भी परिवर्तन होते हैं जिसके फलस्वरूप अस्वस्थता रहती है और शारीरिक असुविधा महसूस होती है।
आप स्वयं सोचें कि यदि शरीर के साथ-साथ भवन में भी पंच महाभूतों का असन्तुलन है तो व्यक्ति के स्वस्थ होने के अवसर न के बराबर हैं और हैं भी तो उसके स्वस्थ होने में अधिक विलम्ब होगा।
कुल मिलाकर प्रकृति और शरीर में पंचमहाभूतों का समुचित मिश्रण है जिस कारण दोनों ही सन्तुलित एवं स्वस्थ रहते हैं। पंच महाभूतों के असन्तुलन से प्रकृति और व्यक्ति का शरीर दोनों ही अस्वस्थ हो जाते हैं जिससे प्राकृतिक प्रकोप जगत् में आते हैं और जन व धन की हानि होती है। इसी प्रकार शरीर भी अस्वस्थ हो जाए तो उसके समस्त कार्य जहां के तहां रुक जाते हैं और उसे चहुं ओर से जो लाभ हो रहा होता है वह बन्द हो जाता है, मूलतः उसके सम्बन्ध अपने आसपास की प्रकृति से टूट जाते हैं और वह अपने को असन्तुलित, अस्वस्थ, अस्थिर और निराश सा होकर ऋणात्मक प्रभाव को पूर्णतः ओढ़ लेता है। फलस्वरूप उसे ऐसा लगता है कि वह भाग्यहीन हो गया है। अभी तक तो सबकुछ ठीक चल रहा था और यह अचानक ही सब कुछ अव्यवस्थित हो गया है।
भाग्य और वास्तु अलग-अलग हैं!
वास्तु का सम्बन्ध वस्तु की उचित व्यवस्था और प्रकृति के पंच महाभूतों के सन्तुलन से है। वास्तुशास्त्र प्रकृति से पूर्ण लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था करता है न कि भाग्य को बदलने की। वास्तु व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा को उन्नत कर सकता है। वास्तु भाग्य के फल को प्राप्त करने में उचित वातावरण की व्यवस्था कर सकता है। भाग्य यदि आपको फल में 100 में से 70 प्रतिशत परिणाम पाने की क्षमता देता है तो आप उचित वातावरण में वास्तु सम्मत भवन में रह रहे हैं तो भाग्य द्वारा प्राप्त 70प्रतिशत को अधिक मात्रा में पा सकते हैं क्योंकि आप वास्तु सम्मत भवन में रहकर मानसिक एवं शारीरिक रूप से उन्नत जो हो चुके हैं और अवसर को पकड़ने की सामर्थ्य भी बढ़ चुकी है।
भाग्य का सम्बन्ध कर्मों से है। जैसे कर्म होंगे वैसा फल होगा। कर्म अनुचित तो फल भी अशुभ और कार्य उचित तो फल भी शुभ। कर्मफल तीन प्रकार के होते हैं-संचित, प्रारब्ध एवं क्रियमाण। इस जन्म या पूर्वजन्म में किए जा चुके कर्म संचित कहे जाते हैं। संचित कर्म का जो भाग भुक्त अवस्था में रहता है उसे प्रारब्ध(भाग्य/दैव) कहते हैं और जो कर्म वर्तमान में कर रहे हैं या भविष्य में करने हैं उन्हें क्रियमाण कहते हैं। क्या भाग्य को बदला जा सकता है? जो कर्म अपरिवर्तनीय हैं और उनका फल दैवीय शक्ति या भाग्यानुरूप मिलना आवश्यक है वे कदापि परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं। ऐसे कर्मों का फल अशुभ होता है और भोगना ही पड़ता है। जो कर्म परिवर्तनीय हैं वे अशुभ होते हैं और उपायों द्वारा टाले जा सकते हैं। वे कर्म जो शुभाशुभ अर्थात् मिश्रित हैं और यह बता पाना कठिन होता है कि किसका प्रभाव अधिक है दैवीय शक्ति का या पुरुषार्थ का। ये उचित आराधना द्वारा शान्त किए जा सकते हैं।
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि वास्तु सम्मत निर्माण से भाग्य बदला नहीं जा सकता है। वास्तु तो आपकी सामर्थ्य या ऊर्जा को बढ़ा सकता है। समुचित स्वास्थ्य मानसिक सबलता और भरपूर आत्मविश्वास देता है। जब यह है और भाग्य भी अवसर दे रहा है तो ऐसे में वास्तु का सहयोग फल को अधिक अनुपात में पकड़ने में सहायक है। फल अधिक मात्रा में मिलेगा तो उन्नति भी अधिक होगी। अधिक उन्नति और अधिक फल जीवन के स्तर को उठाने में सहायक है। भाग्य भी पूर्णतः नहीं बदला जा सकता है और वास्तु भी भाग्य को बदल नहीं सकता है। वास्तु भाग्य से अधिक अनुपात में पाने का सहायक है। भाग्य जो भी फल दे यदि वह शुभ है और वास्तु सम्मत भवन में रह रहे हैं तो उसे अधिक अनुपात में पा सकेंगे। यदि भाग्य अशुभ फल दे रहा है और भवन भी वास्तु सम्मत नहीं है तो अधिक दुःख व तनाव मिलेगा।
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