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सूर्य उपासना का महत्व-पं. दयानन्द शास्त्री

>> Sunday, July 18, 2010


वेदों में सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता हैं। ऋग्वेद में सूर्य को स्थावर जंगम की आत्मा कहा जाता हैं- सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषच्च्च (ऋग्वेद 1/115) सूर्य को जीवन स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। छान्दोग्य उपनिषद में सूर्य को ब्रह्म कहा गया हैं-आदित्यों ब्रह्ममेती। पुराणों में द्वादच्च आदित्यों, सूर्यो की अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें उनका स्थान व महत्व वर्णित हैं। धारणा हैं, सूर्य संबंधी कथाओं को सुनकर पाप एवं दुर्गति से मुक्ति प्राप्त होती हैं एवं मनुष्य का अभ्युत्थान होता हैं। 
हमारे ऋषियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूप ईच्च्वर स्वीकारते हुए सूर्योपसना का निर्देच्च दिया हैं। तेत्तिरीय आरण्यक सूर्य पुराण में भागवत में उदय एवं अस्तगामी सूर्य की उपासना को कल्याणकारी बताया गया हें। प्रच्च्नोंपनिषद में प्रातःकालीन किरणों को अमृत वर्षी माना गया हैं (विच्च्वस्ययोनिम) जिसमें संपूर्ण विच्च्व का सृजन हुआ हैं। वैदिक पुरूष सूक्त में विराट पुरूष सूक्त में विराट पुरूष ब्रहम के नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ति का वर्णन हैं। 
सूर्य ब्रह्माण्ड की केन्द्रक शक्ति हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं। जगत को प्रकाच्च ज्ञान, ऊजा, ऊष्मा एवं जीवन शक्ति प्रदान करने वाला व रोगाणु, कीटाणु (भूत-पिचाच्च आदि) का नाच्चक कहा गया है। वेदों एवं पुराणों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी इन्ही निष्कर्षों को कहता हैं कि सूर्य मण्डल का केन्द्र व नियन्ता होने के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का ही सदस्य हैं। अतः पृथ्वी व पृथ्वीवासी सूर्य द्वारा अवच्च्य प्रभावीत होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इसी कारण इसे कालपुरूष की आत्मा एवं नवग्रहों में सम्राट कहा गया हैं। भारतीय संस्कृति में सूर्य को मनुष्य के श्रेय एवं प्रेय मार्ग का प्रवर्तक भी माना गया हैं। 
सूर्य की उपासना शीघ्र फलदायी होती हैं। भगवान राम के पूर्वज सूर्यवंच्ची महाराज राजधर्म को सूर्य की उपासना  से दीर्ध आयु प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की सूर्योपसना से ही कुष्ठ रोग से निवृत्ति हुई, ऐसी कथा प्रसिद्ध हैं। चाक्षुषोपनिषद के नित्य पाठ से नेत्र रोग ठीक होते हैं। हमारे यहां पंच उपासन पद्धतियों का विधान हैं, जिनमें च्चिव, विष्णु, गणेच्च सूर्य एवं शक्ति की उपासना की जाती हैं। उपासना विच्चेष के कारण उपासकों के पांच संप्रदाय प्रसिद्ध हैं। शैव, वैष्णव, गणपत्य एवं शक्ति। वैसे भारतीय संस्कृति एवं धर्म के अनुयायी  धार्मिक सामर्थ्य भाव से सभी की पूजा अर्चना करते हैं, किन्तु सूर्य के विच्चेष उपासक और संप्रदाय के लोग आज भी उड़ीसा में अधिक हैं।
नवग्रहों में सर्वप्रथम ग्रह सूर्य हैं जिसे पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया हैं। ग्रह देवता के साथ-साथ सृष्टि के जीवनयापन में सूर्य का महत्वपूर्ण योगदान होने से इनकी मान्यता पूरे विच्च्व में हैं। नेत्र, सिर, दांत, नाक, कान, रक्तचाप, अस्थिरोग, नाखून, हृदय पर सूर्य का प्रभाव होता है-ये तकलीफें व्यक्ति को सूर्य के अनिष्टकारी होने के साथ-साथ तब भी होती हैं जब सूर्य जन्मपत्रिका में प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम या अष्टम भाव पर विराजमान रहता हैं, तब व्यक्ति को इसकी शांति करनी चाहिये। जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ होता हैं। पिता-पुत्र के संबंधों में विच्चेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए। यदि कोई सूर्य का जाप मंत्र पाठ प्रति रविवार को 11 बार कर ले तो व्यक्ति यच्चस्वी होता हैं। प्रत्येक कार्य में उसे सफलता मिलती हैं। 
सूर्य की पूजा-उपासना यदि सूर्य के नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं कृतिका में की जाये तो बहुत लाभ होता हैं। सूर्य के इन नक्षत्रों में ही सूर्य के लिए दान पुण्य करना चाहिए। संक्रांति का दिन सूर्यसाधना एवं सूर्य की प्रसन्नता में दान पुण्य देने के लिए सर्वोत्तम हैं। सूर्य की उपासना के लिए कुछ महत्वपूर्ण मंत्र इस प्रकार से हैें-ऊँ सूर्याय नमः। ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ऊँ जुं सः सूर्याय नमः। जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम। तमोडरि सर्वपापनं प्रणतोडस्मि दिवाकरम्‌ ॥ सूर्य का वेदोक्त मन्त्र विनियोग-ऊँ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनदः सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः। मन्त्र-ऊँ आ कृष्णेन राजसा वर्त्तमानों निवेच्चयन्नमृतं मर्त्य च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पच्च्यन्‌। सूर्य गायत्री मन्त्र-ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्नः सूर्य प्रचोदयात्‌। ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात्‌। अर्थ मन्त्र-ऊँ एहि सूर्य! सहस्त्रांच्चो तेजोराच्चि जगत्पते। करूणाकर में देव गृहाणार्ध्य नमोस्तु ते। 
सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नमः व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में कभी भी करता रहे लाभ मिलता है। तंत्रोक्त मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का ग्यारह हजार जाप पूरा करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। नित्य एक माला पौराणिक मंत्र का पाठ करने से यच्च प्राप्त होता हैं। रोग शांत होते हैं। सूर्य गायत्री मंत्र के पाठ जाप या 24000 मंत्र के पुनच्च्चरण से आत्मच्चुद्धि, आत्म-सम्मान, मन की शांति होती हैं। आने वाली विपत्ति टलती हैं, शरीर में नये रोग जन्म लेने से थम जाते हैं। रोग आगे फैलते नहीं, कष्ट शरीर का कम होने लगता हैं। अर्ध्य मंत्र से अर्ध्य देने पर यच्च-कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा पदोन्नति होती हैं। नित्य स्नानोपरान्त एक तांबे के लोटे में जल लेकर थोड़ा कुमकुम मिलाकर सूर्य की ओर लोटा मस्तक तक ऊपर करके सूर्य को जल की धार में देखकर अर्ध्य जल चढाना चाहिये। सूर्योदय के समय सूर्योपासना लाभदायक सिद्ध होती हैं। 
जन्मांक में सूर्य द्वारा जातक की आरोग्यता, राज्य, पद, जीवन-शक्ति, कर्म, अधिकार, महत्वाकांक्षा, सामर्थय, वैभव, यच्च, स्पष्टता, उग्रता, उत्तेजना, सिर, उदर, अस्ति, एवं शरीर रचना, नेत्र, सिर, पिता तथा आत्म ज्ञान आदि का विचार किया जाता हैं। जातक का दिन में जन्म सूर्य द्वारा पिता का तथा रात्रि में जन्म, सूर्य द्वारा चाचा एवं दाए नैत्र का कारक कहा गया हैं। यात्रा प्रभाव व उपासना आदि के विचार में भी सूर्य की भूमिका महत्वपूर्ण हैं। कुछ ज्योतिर्विद सूर्य को उग्र-क्रूर होने के कारण पापग्रह भी मानते हैं। किन्तु कालपुरूष की आत्मा एवं सर्वग्रहों में प्रधान होने के कारण ऐसा मानना तर्कसंग नहीं हैं। सर्वविदित हैं कि सूर्य की अपने पुत्र शनि से नहीं बनती। इसका भाग्योदय वर्ष 22 हैं । 
सूर्य के अनिष्ट निवारण हेतु उपाय 
सूर्य के उपाय इस प्रकार हैं-1.ढाई किलो गुड़ ले और जिस रविवार को भी सूर्य के नक्षत्रों में से एक भी नक्षत्र पड़े उस दिन सूर्य उदय के समय गुड़ के टुकड़े-टुकड़े करके सूर्य मंत्र का पाठ करके गुड़ को बहाकर सूर्य देव की कृपा प्राप्ति हेतु प्रार्थना करें । ऐसा 9 बार लगातार करना चाहिए । दुर्लभ कार्य भी सफल होते हैं और रोग नियंत्रण में हो जाते हैं। 2.सूर्य की प्रसन्नता के लिए आदित्य हृदय स्त्रोंत, सूर्य स्त्रोत एवं च्चिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं का नियमानुसार पाठ करना चाहिए। 3. प्रति रविवार को अग्नि में दूध इतना उबाले की दूध उबलकर अग्नि में गिरे और जलने लगे। अनिष्ट सूर्य की शांति के लिए ऐसा प्रति रविवार को 100 ग्राम दूध अग्नि में होम करना चाहिए। 4.+सूर्य नमस्कार नामक व्यायाम प्रातः सूर्योदय के समय करें। विष्णु भगवान का पूजन करें। 11 या 21 रविवार तक गणेच्चजी को लाल फूलों का अर्पण करें। गुलाबी वस्त्र, नारंगी, चन्दन की लकड़ी आदि का दान करें। 5.रविवार का अथवा च्चिवजी का व्रत रखें, इस दिन नमक का प्रयोग न करें। व्रत में पूर्ण ब्रम्हचर्य से रहें सत्‌कार्य करें। च्चिवपुराण या सूर्य पुराण पढें । पूजा या स्वाध्याय में अधिक से अधिक समय व्यतीत करें। रविवार को गायत्री मंत्र की एक माला कम से कम सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर जपे और सूर्योदय के समय सूर्यनमस्कार कर, सूर्य को अर्ध्य देकर विष्णुसहस्त्र नाम का पाठ करें। 6.लाल वस्त्र, लाल चन्दन, ताम्र पात्र, केसर, गुड़, गेहूं, अनाज, रोटी, सोना व माणिक्य रत्न का दान करे रविवार को प्रातः गाय को गाजर, टमाटर, गाजर का हलवा (लाल रंग का भोज्य पदार्थ) खिलावें। 7.कहीं भी घर से बहार जावे तो थोड़ा से गुड़ का टुकड़ा मुह में खाते हुए जाए।

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