यह ब्‍लॉग आपके लिए है।

स्‍वागत् है!

आपका इस ब्‍लॉग पर स्‍वागत है! यह ब्‍लॉग ज्‍योतिष, वास्‍तु एवं गूढ वि़द्याओं को समर्पित है। इसमें आपकी रुचि है तो यह आपका अपना ब्‍लॉग है। ज्ञानवर्धन के साथ साथ टिप्‍पणी देना न भूलें, यही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है। आपके विचारों एवं सुझावों का स्‍वागत है।

गण्डमाला रोग एवं निदान-डॉ.सत्येन्द्र तोमर

>> Thursday, July 22, 2010


गले के पार्श्व में होने वाली गांठ या गांठों को गण्डमाला कहा गया है और ये भी वात-कफ प्रधान है। इसमें गले के चहुं ओर आंवले के सदृश कई गांठे हो जाती है। दूषित कफ, मेद व रक्त को आश्रित करके गण्डमाला कहते हैं। एक गण्ड को गलगण्ड तथा अनेक गलगण्ड के समूह को गण्डमाला कहते हैं।
गण्डमाला की गांठे या ग्रन्थियां जब पककर एवं फूटकर एक हो जाती हैं तो नाड़ी का जख्म बन जाता है जिसे अपची कहते हैं। इस रोग के कई कारण हैं किन्तु अधिकतर टीबी के कारण ही होती है।
जब अपची के साथ जुकाम, खांसी व श्वास रोग, उल्टी आदि  टीबी के लक्षण दृष्टिगोचर हो जाते हैं तब स्थिति असाध्य हो जाती है। 
गलगण्ड के भेद एवं लक्षण
गलगण्ड तीन प्रकार का होता है-
1. क्षतज-इसमें जख्म के समीप ही अवटुका ग्रन्थियों में सूजन हो जाती है। जख्म की चिकित्सा से रोग शान्त हो जाता है। 
2. फिर्रगज-प्राथमिक जख्म के पास की ग्रन्थियां पहले विकृत होती हैं। इसमें पाक नहीं होता है।
3. रक्तार्बुद अर्थात्‌ ल्यूकेमिया, दुष्टार्बुद अर्थात्‌ कैन्सर, वातालिका अर्थात्‌ प्लेग, इलीपद अर्थात्‌ फिलेरिया अदि के कारण भी यह व्याधि होती है। 
क्षयज टीबी का ही एक प्रकार है जोकि अपची स्वरूप का होता है। रोगी में मन्द ज्वर, क्षीणता, पाण्डुता आदि लक्षण मिलते हैं। यह चिरकालीन प्रकार की व्याधि है। चिकित्सक के पास इस तरह के रोगी अधिक आते हैं। 
रोग की चिकित्सा
इसकी चिकित्सा में गलगण्ड की तरह ही स्नेहन, स्वेदन, शोधन, शमन तथा लेपन करना चाहिए। पेट साफ रखना चाहिए तथा दीपन पाचन योग देना चाहिए।
कांचनार गुग्गुल, ताम्र भस्म, स्वर्ण मालती रस, चन्द्र प्रभावटी तथा मनःशिला का प्रयोग करना चाहिए।
कांचनार, गुग्गुल, ताम्रभस्म, मनःशिला तथा चन्द्रप्रभवटी का प्रयोग करना चाहिए।
कांचनार त्वक लेप, तुम्बी तैल या गुंजा तैल से मालिश करनी चाहिए।
बसन्त मालती रस 120मिग्रा., मृगश्रृंग भस्म 240मिग्रा. व कांचनार गुग्गल आधा ग्राम दिन में तीन बार कांचनार की छाल के क्वाथ से दिन में तीन बार दें।
सारिवाद्यासव या खदिरारिष्ट 20मिली. दिन में दो बार भोजन के बाद समान भाग जल के साथ दें।
प्रवालपिष्टी 120मिग्रा., रस माण्क्यि 30मिग्रा. व शुद्ध गन्धक 120मिग्रा. एक मात्रा एक बार रात को शहद के साथ दें।
छछुन्दरी तैल की मालिश करनी चाहिए।
कज्जली 120मिग्रा. एक मात्रा रात में दें।
रसमाणिक्य 120मिग्रा. एवं कांचनार गुग्गुल एक ग्राम सुबह और शाम कांचनार की छाल के क्वाथ से दें।

0 comments:

आगुन्‍तक

  © Blogger templates Palm by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP