पत्नी वाम व दक्षिण भाग में कब बैठती है!-व्रतानन्द शास्त्री
>> Wednesday, July 28, 2010
पत्नी को वाम या दक्षिण भाग में कब बैठाते हैं। यह जानना आवश्यक है तो उसे जान लेना चाहिए। जब ज्ञान नहीं होता है तो विद्वान या पंडित से पूछना पड़ता है।
सिन्दूर का दान करते समय, द्विरागमन के समय, भोजन के समय, शयन व सेवा के समय पत्नी को सदैव वाम भाग में रहना चाहिए। आशीर्वाद लेते समय, अभिषेक के समय, विप्र के पांव धोते समय पत्नी को वाम भाग में ही रहना चाहिए। ऐसा इन श्लोकों में कहा गया है-
वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने। वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाए प्रियार्थिनी॥
आशीर्वादे अभिषेके च पादप्रक्षालेन तथा। शयने भेजने चैव पत्नी तूत्तरतो भवेत॥
कन्यादान करते समय, विवाह के समय, प्रतिष्ठा करते समय, यज्ञकर्म एवं अन्य धार्मिक कार्यों में पत्नी को सदैव दक्षिण में बैठना चाहिए। इसी प्रकार जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन और निष्क्रमण संस्कार करते समय पत्नी और बालक दोनों को दक्षिण अर्थात् दायें भाग में बैठना चाहिए। ऐसा इस श्लोक में कहा गया है-
कन्यादाने विवाहे च प्रतिष्ठा-यज्ञकर्मणि। सर्वेषु धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणतः स्मृता॥
यह बाएं और दाएं का चक्कर क्यों है? वामांग या दक्षिण में बैठना क्योंकर है? हिन्दू मान्यता में यह सब मान्य है।
जो कर्म स्त्री प्रधान होते हैं, उसमें स्त्री वामांग में बैठती है। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि मांग में सिन्दूर भरना, सेवा, शयन आदि कर्मों में स्त्री को वामांग रहना चाहिए।
परन्तु यज्ञ, जातकर्म, कन्यादान, विवाह आदि पुण्यदायक कार्य पुरुष प्रधान होते हैं इसलिए इन कार्यों में पत्नी दक्षिण भाव में अवस्थित रहती है। आज के आधुनिक युग में यह सब कौन मानता है जो मानते हैं वे संस्कारी लोग होते हैं।
(ज्योतिष निकेतन सन्देश से साभार) Welcome on http://jyotishniketansandesh.blogspot.com or mail to :jyotishniketan@gmail.com
1 comments:
कृपया श्लोक लेखन में टन्कण दोष है कृपया उसकी शुद्धि कर लें। नमोनमः
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