ब्रह्म मुद्रा-ज्ञानेश्वर
>> Saturday, July 31, 2010
मुद्रा बनाने की रीति
पद्मासन या वज्रासन में स्थिर होकर बैठ जाएं और गर्दन, सिर व कंधों को ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं, गोलाई में चारों ओर, फिर उल्टे चारों ओर घुमाते हैं। प्रत्येक क्रिया पांच से दस बार करनी चाहिए। कब करें-इसका अभ्यास कभी भी कर सकते हैं। प्रातः और सायं करने से लाभ होता है। आवश्यकता पड़ने पर कभी भी कर सकते हैं।
लाभ
यह मुद्रा चक्कर आना, सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस, गर्दन की अकड़न व दर्द दूर करने में सहायक है। इसके अभ्यास से गले के रोग नहीं होते हैं। सिर दर्द बन्द हो जाता है। मस्तिष्क के स्नायु मजबूत हो जाते हैं।
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